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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

आनंद पर सबका अधिकार - स्वामी परमानंद जी महाराज | Anand par sabka adhikar -Swami Parmanand Ji Maharaj

संसार के प्रत्येक प्राणी को आनंद में रहने का पूर्ण अधिकार है तो सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आनंद में कोई भी प्राणी किस प्रकार रह सकता है ?क्योंकि हर प्राणी के हृदय में हर समय किसी ना किसी बात की चिंता , उद्योग,विकार जन्म लिए रहते हैं और इन्हीं समस्याओं में उलझा हुआ इंसान कभी अपने आप को आनंद प्रदान नहीं कर पाता।  आनंद पर सबका अधिकार - स्वामी परमानंद जी महाराज Swami Parmanand Ji Maharaj  अपने वेदांत प्रवचनों में हमे बताते है की हमारे सनातन धर्म में हमारे ऋषि-मुनियों ने परमानंद को प्राप्त करने के लिए जो साधन बताया वह अत्यंत ही सहज और सुलभ है। संसार का कोई भी प्राणी जो परम आनंद की प्राप्ति करना चाहता है, जो सदा रहने वाले आनंद को प्राप्त करना चाहता है उसे संसार के किसी भी वस्तु से लगाव नहीं रखना चाहिए अर्थात वह संसार में रहे परंतु उसमें लिप्त ना हो। संसार में रहते हुए भी सन्यासी की तरह अपने जीवन को जिए।  हम सब का सुख और दुःख स्वयं हमारे ही हाथ होता है। कोई दूसरा हमे कभी कोई सुख या दुःख नहीं दे सकता क्योकि किसी में छमता ही नहीं है की कोई किस...

Prakriti -Swami Parmanand Ji Maharaj | प्रकृति - स्वामी परमानन्द जी महाराज

प्रकृति प्रतिक्षण बदल रही है। आने वाला पल अगले ही पल में बीता हुआ पल कहलाता है। यह संसार भी  प्रति पल-पल बदल रहा है क्योंकि यह संसार प्रकृति के अधीन है। समस्त सृष्टि इस प्रकृति की गोद से ही उत्पन्न हुई है। इसलिए हम सभी को प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।  प्रकृति ने हमें जितने भी प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराएं हैं हमें उन प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए अर्थात प्रकृति से हमें केवल उतना ही लेना चाहिए जितना हमारी आवश्यकता के अनुसार हो।  पेड़ों की लकड़ियों के अलावा प्रकृति हमें बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है जिसमें तेल, खनिज, धातु इत्यादि अलग प्रकार की वस्तुएं हैं। यह प्रकृति ही है जो हमें सांस लेने के लिए शुद्ध वायु प्रदान करती है पर क्या प्रकृति द्वारा प्राप्त समस्त संसाधनों का हमने सदुपयोग किया ? ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबके पास है पर हममे से कोई भी इस प्रश्न का उत्तर देना नहीं चाहता।  आज के भौतिक समाज की सत्यता केवल इतनी है की हमे जिससे जो चाहिए बस वो हमें प्...

सत्य दर्शन क्या होता है Satya Darshan Kya Hota Hai | Swami Parmanand Ji Maharaj

सत्य का दर्शन हम सभी ने सदगुरुदेव Swami Parmanand Ji Maharaj के आशीर्वचनो में किया है। गुरुदेव ने वेदांत व्याख्या के माध्यम से हम सभी को सत्य के दर्शन कराने का प्रयास किया है। हम सभी लोग जब किसी से वार्तालाप करते हैं तो किसी न किसी बात पर सत्य और असत्य अवश्य बोलते हैं। हम उसी को सत्य मान लेते है जो दिखता है परन्तु सत्य वो होता है जो दिखता ही नहीं। असत्य को सत्य समझने की भूल आज सारी मानव जाती कर रही है।   जब हम कोई सत्कर्म करते है तब आपके मन में उनके प्रति कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता की क्या आपने जो किया वह सही था या गलत। जैसे मंदिर के यदि दानपात्र में ₹1 डाला जाए तो उस एक रुपए के प्रति किसी के मन में कभी कोई शंका उत्पन्न नहीं होगी की ₹1 मंदिर के दानपात्र में डालकर हम ने सही किया या गलत। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी अंतरात्मा जानती है कि हमने इस एक रुपए को किसी धर्म स्वरूप कार्य में लगाया है इसलिए हमारे मन में कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है।  जब प्राणी कोई गलत कर्म करता है तो जीवात्मा स्वरुप परमेश्वर हमे सचेत क...

ध्यान क्या है ? - परमानन्द गिरी जी महाराज | Dhyan kya hai - Parmanand Giri Ji Maharaj

ध्यान क्या है ? - परमानन्द गिरी जी महाराज | Dhyan kya hai - Parmanand Giri Ji Maharaj साधना की दृस्टि से ध्यान सुगम है।ध्यान में किसी धारणा की आवश्यकता नहीं है। ध्यान में अपने संस्कारो की आवश्यकता नहीं है। ध्यान में हमें अपनी समझ लगाने और योजना बनाने की भी आवश्यकता नहीं है। ध्यान बहुत स्वाभाविक प्रक्रिया है।  अब मन में यह  प्रश्न उठता है की ध्यान क्या है ?  ध्यान  सावधानी है।   ध्यान का तात्पर्य परमात्मा का स्मरण करना है अर्थात उस चैतन्य परम पिता परमात्मा ,साक्षी, उस परब्रह्म का स्मरंण करना है। जब ध्यान साधना के समय साधक के मन के भीतर न कोई द्वन्द हो न ख़याल हो , उस अवस्था को ही ध्यान की अवस्था कहा जाता है।  भीतर कोई भी चुनाव की स्तिथि न हो और यदि हो तो केवल साक्षित्व भाव मात्र। आप यू समझ सकते है की निर्द्वँदता की स्तिथि को ही परम ध्यान की स्तिथि कहते है। इस तथ्य को पूर्ण रूप से आप तभी समझ सकते है जब आप ध्यान करना आरम्भ कर देंगे। यहां मैंये भी बता देना उचित समझता हूँ की ध्यान और वेदांत एक दूसरे के पूरक...

परिवर्तन का सिद्धान्त | Parivartan Ka Siddhant

परिवर्तन का सिद्धान्त  |  Parivartan Ka Siddhant भगवान् श्री कृष्ण ने भागवत गीता में स्पष्ट रूप से बोला की परिवर्तन संसार का नियम है अर्थात जो आज है वो कल नहीं होगा और जो कल होगा वो परसो नहीं होगा। हर पल को पूर्ण जागृत अवस्था में जीने का नाम जीवन है। आने वाला कल अनिश्चित है पर आने वाला अग्ला पल हमारे हाथो में है और अगर हम चाहे तो आने वाले अगले पल को पूर्णरूप से जी कर अपने भविष्य के लिए सुनहरे सपने बो सकते है।  इस संसार में हर प्राणी में भगवान् का निवास है और हर आत्मा भगवान् के होने की सूचक है क्योंकि बिना उस अदृश्य शक्ति के संसार का स्वतः चलना असंभव था। प्राणी के जन्म से लेकर उसके मरण तक हर क्षण कोई ना कोई परिवर्तन उसके जीवन में होता रहता है । परिवर्तन के सिद्धान्त को स्वीकार करना प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य होता है। मनुष्य का मानवीय स्वभाव होता है कि हम उन परिवर्तनों को स्वीकार कर लेते है जो मनुष्य के अनुकूल होते है पर जो परिवर्तन प्रतिकूल होते है उन्हें हम स्वीकार नहीं कर पाते। जबकी वेदांत ज्ञान कहता है कि मनुष्य को तटस्थ रहना चाहिए अर्थात समभाव में रहना चाहिए क...

गुरु कृपा सागर - स्वामी परमानंद जी महाराज

गुरु कृपा गुरु की कृपा और उनकी महिमा का वर्णन पुरातन काल से हमारे वेद और शास्त्रों में अनेकों जगहों वर्णित है। गुरु की महिमा का सहज वर्णन नहीं किया जा सकता।  सहजोबाई एक साध्वी ने तो यहां तक कह डाला कि "गुरु न तजौ ,हरी हो ताज डारौ " अर्थात गुरु को मैं नहीं छोड़ सकती भले ही हरि को छोड़ना पड़े। इसीलिए गुरु को कृपा का सागर अर्थ गुरु कृपा सागर कहते है।  गुरु को मैं नहीं छोड़ सकता हरी को छोड़ सकता हूं क्योंकि हरी सदा साथ रहा और उसने मेरा कोई भी काम नहीं किया। हरि तो सदा से था। वह करता पुरुष ,अकाल पुरुष ,परमपिता तो सदा से था परंतु उसने हमारा क्या किया। इसलिए कहा गया है "हरी ने जन्म मरण दियो साथ "  अर्थात हरि ने तो जन्म और मरण दिया ,हरि के कारण ही सारा बंधन और दुख हुआ ,जो भोगना पड़ा परंतु गुरु ने कृपा करके मुझे छुड़ा लिया ,बंधन मुक्त कर दिया ,गुरु ने भाव बंधन से छुटकारा दिलाया और मेरे स्वरूप का बोध कराया। गुरु का काम बंधन मुक्त करना है।  गुरु की महिमा का गान करते हुए अन्य गुरुवो ने भी कहा "गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपन...

योग में सहजता और सरलता - स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज

प्राय देखा गया है की बहुत से साधक योग साधना के द्वारा अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रयास करते है पर कुछ त्रुटियों के कारण सफल नहीं हो पाते। स्वामी परमानन्द जी महाराज द्वारा बताये गए योग के सिद्ध्हांतो में से कुछ विशेष सिद्धांत यहाँ बताये गए है जिनका साधक को ज्ञान होना चाहिए।  योग साधना करते हुए साधक को चाहिए कि वह अपने शरीर को सहज स्थिति में रहने दे अर्थात शरीर को जैसी स्थिति अच्छी लगती है ,शरीर स्वाभाविक जैसे अच्छा अनुभव करता है साधक को उसी आसान में बैठना चाहिए लेकिन सहजता का अर्थ यह नहीं की योग करते समय आप निंद्रा की अवस्था में हो जाएं। आपको सतत स्मरण रहे ,आप क्षण प्रतिक्षण जागृत रहे अर्थात आप पूर्ण जागृत अवस्था में रहे।   इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तो शरीर में विभिन्न प्रकार की क्रियाएं होने लगती हैं। भीतर जो होता है उसे सहजता से होने दे। उसमें आपकी समझ व संकोच बाधक नहीं होनी चाहिए। साधक सरल हृदय होना चाहिए। जिनका हृदय सरल होता है वह गुरु के पास बैठभर जाते हैं तो उनकी कुंडलिनी जा...

परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय

सनातन धर्म सदैव से पूजनीय बना हुवा है क्युकी सनातन धर्म मानव जीवन को वो सिद्धांत प्रदान करता है जिनपे चलकर मानव अपने जीवन को शाश्त्रोक्त तरीके से जी सकता है। इसीकारण प्राचीनकाल से ही सम्पूर्ण BHARAT में ऋषि परंपरा चली आ रही है।  हिन्दू धर्म में ऋषियों को ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता है।   जब हम पुराणों और वेदों का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि जब-जब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार धारण किया तब-तब उन्होंने स्पष्ट रूप से समाज को ये संदेश दिया कि संत समाज सदैव ही पूजनीय माना जाता है। आज हम उसी संत समाज में से एक ऐसे दिव्य महापुरुष के बारे में जानेंगे जिनके बारे में जितना भी कहा जाए उसमें कोई भी अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि ये ऐसे दिव्य महापुरुष है जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता के नाम कर दिया।  परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय   स्वामी परमानंद जी महाराज सनातन धर्म और वेदांत वचनों और शास्त्रों के विश्वविख्यात ज्ञाता के रूप में आज संसार के प्रसिद्ध संतों में गिने जाते हैं। स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज ने वेदांत वचन को एक सरल और साधारण भाषा के अंदर परिवर्तित कर जनमान...

अंधकार से प्रकाश की ओर: स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज

परम पूज्य महामंडलेश्वर युगपुरुष स्वामी श्री परमानंद गिरि जी महाराज हम सभी को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि अंधेरा प्रकाश से ही जाता है अर्थात अगर अंधेरे को हटाना है तो हमें प्रकाश करना पड़ेगा परंतु उस प्रकाश को करने के लिए हमें कौन-कौन से कार्य करने पड़ेंगे जिससे हमेशा के लिए एक शाश्वत प्रकाश हमारे मार्ग को प्रकाशित करता रहे। अंधकार से प्रकाश   मनुष्य को जो भी कष्ट, जो भी पीड़ा होती है वह केवल इस शरीर के होने की वजह से है। अगर शरीर ना होता तो हमें कोई पीड़ा भी ना होती। जब तक शरीर है तब तक पीड़ा है जब शरीर ना होगा तो हमें पूर्ण आनंद होगा अर्थात हमें कभी भी मृत्यु से डरना नहीं चाहिए क्योंकि मृत्यु परमानंद तक प्राणी को पहुंचाती है अर्थात परमेश्वर में विलीन करके हमें ईश्वर के तत्व में समाहित कर जाती है।  वेदांत वचनो के प्रकांड विद्वान महाराज श्री के अमृत वाणी से हम सभी के अंतर्मन में उठ रहे अनेको द्वंदों का छेदन होता रहा है और आज भी महाराज श्री यही करने का प्रयास कर रहे हैं।  हमें पूर्ण आशा है कि उनके अमृत वचनों को सुनकर आप सभी के मन अर्थात हृदय के तमाम संशयो के जाल टूट ...

युगपुरुष परमानन्द जी महाराज की विरासत

युगपुरुष परमानंद जी महाराज एक श्रद्धेय आध्यात्मिक नेता थे जिन्होंने अपने जीवनकाल में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। उनकी शिक्षाएँ और ज्ञान लोगों को उनकी आध्यात्मिक यात्राओं के लिए प्रेरित और मार्गदर्शन करते रहते हैं। इस पोस्ट में, हम युगपुरुष परमानंद जी महाराज के जीवन और शिक्षाओं का पता लगाएंगे, उनके द्वारा साझा किए गए गहन ज्ञान और उनके द्वारा शुरू की गई आध्यात्मिक यात्रा के बारे में जानेंगे। युगपुरुष परमानंद जी महाराज की पृष्ठभूमि युगपुरुष परमानन्द जी महाराज अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता और पढ़ाई के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे। विभिन्न चुनौतियों और बाधाओं का सामना करने के बावजूद, युगपुरुष परमानंद जी महाराज आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मज्ञान की खोज में दृढ़ रहे। उनके प्रारंभिक जीवन के अनुभवों ने उनकी आध्यात्मिक यात्रा को आकार देने और उस विरासत की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे वे पीछे छोड़ेंगे। आध्यात्मिक जागृति और ज्ञानोदय युगपुरुष परमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा गहन जागृति और ज्ञानोदय से चिह्नित थी। वर्षों के समर्पित अभ्यास और ध्यान के माध्यम से, उन्होंने अस्तित्व की प्रकृति...