गुरु कृपा सागर - स्वामी परमानंद जी महाराज

गुरु कृपा

गुरु की कृपा और उनकी महिमा का वर्णन पुरातन काल से हमारे वेद और शास्त्रों में अनेकों जगहों वर्णित है। गुरु की महिमा का सहज वर्णन नहीं किया जा सकता। 
सहजोबाई एक साध्वी ने तो यहां तक कह डाला कि "गुरु न तजौ ,हरी हो ताज डारौ "अर्थात गुरु को मैं नहीं छोड़ सकती भले ही हरि को छोड़ना पड़े। इसीलिए गुरु को कृपा का सागर अर्थ गुरु कृपा सागर कहते है। 
गुरु कृपा सागर - स्वामी परमानंद जी महाराज
गुरु को मैं नहीं छोड़ सकता हरी को छोड़ सकता हूं क्योंकि हरी सदा साथ रहा और उसने मेरा कोई भी काम नहीं किया। हरि तो सदा से था। वह करता पुरुष ,अकाल पुरुष ,परमपिता तो सदा से था परंतु उसने हमारा क्या किया। इसलिए कहा गया है "हरी ने जन्म मरण दियो साथ " अर्थात हरि ने तो जन्म और मरण दिया ,हरि के कारण ही सारा बंधन और दुख हुआ ,जो भोगना पड़ा परंतु गुरु ने कृपा करके मुझे छुड़ा लिया ,बंधन मुक्त कर दिया ,गुरु ने भाव बंधन से छुटकारा दिलाया और मेरे स्वरूप का बोध कराया। गुरु का काम बंधन मुक्त करना है। 
गुरु की महिमा का गान करते हुए अन्य गुरुवो ने भी कहा "गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए" 
सहजोबाई हरी को तजने के लिए तैयार थी क्योंकि गुरु को यदि नहीं छोड़ोगे तो हरी तो जा ही नहीं सकते। हरि तो उन्हीं को छोड़ते हैं जिन्हें गुरु छोड़ देते हैं। गुरु से विमुख को श्री हरी छोड़ते हैं। जो गुरुमुख है उन्हें हरी छोड़ ही नहीं सकते। हरी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। इसलिए गुरु की अखंड महिमा का मैं क्या वर्णन करू। 
आपने पारस की महिमा तो सुनी ही होगी। सुना है कि पारस लोहे को सोना बना देता है। पारस लोहे को सोना बनाता है पारस नहीं बनाता किंतु गुरु चरणों का प्रभाव तो इतना है कि गुरु अपने शिष्य को गुरु में ही परिवर्तित कर देते हैं। कुछ भी अपने पास शेष नहीं रखते लेकिन गुरु तब ही कृपा करते हैं जब शिष्य कृपा करता है अर्थात जब साधक में सच्चा शिष्यत्व आ जाता है।

गुरु किसे चुने 

आप संसार में किसी को भी गुरु के रूप में स्वीकार कर सकते है परंतु गुरु होने की योग्यता भी सामने वाले में होनी चाहिए। 
आप चाहे तो अपने इस्ट देव को ही अपना गुरु मान सकते है क्योंकि गुरु उसी को बनाया जा सकता है जिसपर हम स्वयं से ज्यादा भरोसा और विश्वास करते हो । अतः अपने इस्ट देव पर हम समस्त संसार में सबसे अधिक भरोसा करते है। 
अपने इस्ट देव के अलावा यदि कोई दिव्य संत या महापुरुष भगवद कृपा से प्राप्त हो जाए, जिसपर आपको भरोसा या विश्वास हो, और आपका अंतर्मन उनके श्रीचरणों में लग रहा हो, तो इस संत या महापुरुष को भी उनकी आज्ञा लेकर गुरु बनाया जा सकता है ।
Note : गुरु कोई भी हो सकता है। चाहे कोई देवी देवता हो या कोई संत महापुरुष। उदाहरण के रूप में संसार में बहुत से साधक श्री हनुमान जी को अपना गुरु मानते है। 
साधक पुरुष या महिला कोई भी हो सकता है ।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

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