सत्य दर्शन क्या होता है Satya Darshan Kya Hota Hai | Swami Parmanand Ji Maharaj
सत्य का दर्शन हम सभी ने सदगुरुदेव Swami Parmanand Ji Maharaj के आशीर्वचनो में किया है। गुरुदेव ने वेदांत व्याख्या के माध्यम से हम सभी को सत्य के दर्शन कराने का प्रयास किया है।
हम सभी लोग जब किसी से वार्तालाप करते हैं तो किसी न किसी बात पर सत्य और असत्य अवश्य बोलते हैं। हम उसी को सत्य मान लेते है जो दिखता है परन्तु सत्य वो होता है जो दिखता ही नहीं। असत्य को सत्य समझने की भूल आज सारी मानव जाती कर रही है।
जब हम कोई सत्कर्म करते है तब आपके मन में उनके प्रति कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता की क्या आपने जो किया वह सही था या गलत। जैसे मंदिर के यदि दानपात्र में ₹1 डाला जाए तो उस एक रुपए के प्रति किसी के मन में कभी कोई शंका उत्पन्न नहीं होगी की ₹1 मंदिर के दानपात्र में डालकर हम ने सही किया या गलत। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी अंतरात्मा जानती है कि हमने इस एक रुपए को किसी धर्म स्वरूप कार्य में लगाया है इसलिए हमारे मन में कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है।
जब प्राणी कोई गलत कर्म करता है तो जीवात्मा स्वरुप परमेश्वर हमे सचेत करने के लिए हमारे मन में प्रश्न बनकर उत्पन्न हो प्रकट हो जाते है पर हम उनकी कभी नहीं सुनते क्योकि हमने सत्य को देखना ,समझना और बोलना कब का छोड दिया है।
वास्तव में सत्य केवल वह होता है जो किसी भी कार्य को करते समय हमारी आत्मा, हमाराअंतर्मन हमसे बोलता है। जब हम किसी सत्कर्म को करते हैं तो संसार की समस्त सकारात्मक उर्जा Positive Energyउस कार्य को पूर्ण करने के लिए हमारे साथ लग जाती हैं।
Note: आप सभी भक्तो से अनुरोध है की ये आर्टिकल आपको कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर लिख कर बताये। जय गुरुदेव।
हम सभी लोग जब किसी से वार्तालाप करते हैं तो किसी न किसी बात पर सत्य और असत्य अवश्य बोलते हैं। हम उसी को सत्य मान लेते है जो दिखता है परन्तु सत्य वो होता है जो दिखता ही नहीं। असत्य को सत्य समझने की भूल आज सारी मानव जाती कर रही है।
जब हम कोई सत्कर्म करते है तब आपके मन में उनके प्रति कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता की क्या आपने जो किया वह सही था या गलत। जैसे मंदिर के यदि दानपात्र में ₹1 डाला जाए तो उस एक रुपए के प्रति किसी के मन में कभी कोई शंका उत्पन्न नहीं होगी की ₹1 मंदिर के दानपात्र में डालकर हम ने सही किया या गलत। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारी अंतरात्मा जानती है कि हमने इस एक रुपए को किसी धर्म स्वरूप कार्य में लगाया है इसलिए हमारे मन में कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है।
जब प्राणी कोई गलत कर्म करता है तो जीवात्मा स्वरुप परमेश्वर हमे सचेत करने के लिए हमारे मन में प्रश्न बनकर उत्पन्न हो प्रकट हो जाते है पर हम उनकी कभी नहीं सुनते क्योकि हमने सत्य को देखना ,समझना और बोलना कब का छोड दिया है।
वास्तव में सत्य केवल वह होता है जो किसी भी कार्य को करते समय हमारी आत्मा, हमाराअंतर्मन हमसे बोलता है। जब हम किसी सत्कर्म को करते हैं तो संसार की समस्त सकारात्मक उर्जा Positive Energyउस कार्य को पूर्ण करने के लिए हमारे साथ लग जाती हैं।
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