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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों है?

भगवान अय्यप्पा स्वामी Ayyappa Sharnam   सबरीमाला मंदिर भगवान अय्यप्पा को समर्पित है और हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाते है। श्री भगवान अय्यप्पा स्वामी की भक्ति में अटूट आस्था देखने को मिलती है। भगवान अय्यप्पा स्वामी को हरिहर का पुत्र माना जाता है अर्थात इनको भगवान शिव और विष्णु स्वरूपनी मोहिनी का पुत्र माना जाता है।  हर मंदिर की अपनी परंपराएं होती है। जिनका सम्मान प्रत्येक श्रद्धालु को करना चाहिए। सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में भी कुछ नियम है जिनको लेकर कई विवाद सामने आ चुके है। सबरीमाला मंदिर Sabarimala Temple  केरल के पथानामथिट्टा ज़िले में स्थित सबरीमाला मंदिर में प्रजनन आयु की महिलाओं और लड़कियों को पारंपरिक रूप से पूजा करने की अनुमति नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां विराजमान भगवान अयप्पा को 'चिर ब्रह्मचारी' माना जाता है। इस वजह से रजस्वला महिलाएं मंदिर में उनके दर्शन नहीं कर सकतीं। मान्यता है कि मासिक धर्म के चलते महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकतीं, इसलिए 10 से 50 साल की मह

Prakriti -Swami Parmanand Ji Maharaj | प्रकृति - स्वामी परमानन्द जी महाराज

प्रकृति प्रतिक्षण बदल रही है। आने वाला पल अगले ही पल में बीता हुआ पल कहलाता है। यह संसार भी  प्रति पल-पल बदल रहा है क्योंकि यह संसार प्रकृति के अधीन है। समस्त सृष्टि इस प्रकृति की गोद से ही उत्पन्न हुई है। इसलिए हम सभी को प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। 
प्रकृति ने हमें जितने भी प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराएं हैं हमें उन प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कभी नहीं करना चाहिए अर्थात प्रकृति से हमें केवल उतना ही लेना चाहिए जितना हमारी आवश्यकता के अनुसार हो। पेड़ों की लकड़ियों के अलावा प्रकृति हमें बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है जिसमें तेल, खनिज, धातु इत्यादि अलग प्रकार की वस्तुएं हैं। यह प्रकृति ही है जो हमें सांस लेने के लिए शुद्ध वायु प्रदान करती है पर क्या प्रकृति द्वारा प्राप्त समस्त संसाधनों का हमने सदुपयोग किया ?
ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबके पास है पर हममे से कोई भी इस प्रश्न का उत्तर देना नहीं चाहता। 
आज के भौतिक समाज की सत्यता केवल इतनी है की हमे जिससे जो चाहिए बस वो हमें प्राप्त हो जाये लेकिन बदले में हमसे किसी के लिए कुछ नहीं होता। 
प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करने से हम सभी के ऊपर एक दायित्व आ जाता है कि हम सब प्रकृति में संतुलन बनाए रखने का प्रयास करते रहे। 
प्रकृति में संतुलन बनाए रखना कोई मुश्किल कार्य नहीं है अगर हम यह सोच ले तो प्रकृति हमेशा संतुलित रहेगी जिससे हमें बहुत सारे फायदे होंगे। सर्वप्रथम हम यह जानेंगे कि हमें प्रकृति में संतुलन कैसे बनाना है फिर हम यह जानेंगे कि उससे हमें क्या-क्या फायदे होंगे।
परम पूज्य Swami Parmanand Giri Ji Maharaj के श्रीमुख से हम सभी ने वेदांत ज्ञान की अमृत वाणी सुनी है। उन्ही के सदुपदेशों से हमसभी में प्रकृति को संतुलित बनाये रखने के लिए जो चेतना जागृत हुवी है उसका प्रकाश आप सभी  पहुंचने  है। 
प्राकृतिक संतुलन के उपाय :
(1 ) Tree Planting: हम सभी को वृक्षारोपण का नियम बनाना चाहिए।  "एक माह -एक वृक्ष " यदि हम सब एक माह में सिर्फ एक वृख लगाने का भी संकल्प कर ले तो ज़रा सोचिए की हम सब प्रकृति को कितनी आसानी से संतुलित कर लेंगे। 
जितनी Carbon dioxide हम बहार निकलते है वो समस्त दूषित वायु पेड़ो द्वारा शुद्ध वायु के रूप में परिवर्तित हो जाएगी और प्रदुषण भी कम हो जायेगा।
(2 )  Water is life : हम सभी को जल के महत्व को समझना होगा। जब तक हम जल के महत्व को नहीं समझेंगे तब तक स्वर्ण से भी अधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान इस जल को हम यूं ही बर्बाद करते रहेंगे।
हम सभी को याद रखना चाहिए की आपके पास चाहे कितना भी सोना और चांदी क्यों ना हो पर जब आपके तन को प्यास लगेगी तो आपकी वह प्यास केवल जल ही बुझा सकता है कोई सोना या चांदी का टुकड़ा नहीं। जल प्राकृतिक संसाधन है और सीमित मात्रा में उपलब्ध है। 
जल संकटआज विश्व के कई देशों में देखने को मिलता है। भारत के कई राज्यों के कई शहरों में जल की इतनी कमी है कि वहां रहने वाले स्थानीय लोगों को पेयजल प्राप्त करने के लिए कई किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। 
अतः जल की कीमत को समझे और सदगुरुदेव स्वामी परमानन्द जी महाराज के चरणों में आज से संकल्प ले की हम जल को बर्बाद नहीं करेंगे।
(3 ) Limited use of vehicles: हम सभी को इस बात का संकल्प करना चाहिए कि हम वाहनों को अपनी आवश्यकता के अनुसार ही चलाएंगे। व्यर्थ में वाहनों में पेट्रोल और डीजल को डलवा--डलवा कर उन्हें व्यर्थ में चलाकर प्रदूषण नहीं फैलाएंगे क्योंकि आपके द्वारा जो वाहन चलाए जाते हैं उन से निकलने वाले धुएं से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न होती है जिससे प्रकृति के नियमों का उल्लंघन होता है। 
हम सभी को वाहन तो चलाना है लेकिन अपनी आवश्यकतानुसार। अगर हमारा कोई कार्य थोड़ी सी दूर पैदल चलने पर ही पूरा हो सकता है तो हमें उस कार्य के लिए वाहन का इस्तेमाल न करते हुए पदयात्रा ही करनी चाहिए। 

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