Skip to main content

Posts

Showing posts with the label शबरी के राम | माता शबरी की कहानी | नवधा भक्ति का दान

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

मतंग ऋषि कि शिष्या शबरी | माता शबरी की कहानी | नवधा भक्ति का दान

त्रेता की शबरी के राम | Treta Ki Shabri Ke Ram भगवान श्री राम के असंख्य भक्त हुए हैं। उन भक्तों की भक्ति भी अपरंपार रही है और भक्तों की भक्तों के अनुरूप ही भगवान का अपने भक्तों के प्रति प्रेम भी करुणा की खान के समान ही रहा है क्योंकि भगवान करुणामय हैं। भगवान अपने भक्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। किसी भी प्रकार के कष्ट को सहन कर सकते हैं। यही कारण है कि भारत के दक्षिण में रहने वाली एक भीलनी जिसका नाम शबरी था, उसको दर्शन देने के लिए भगवान ने वनवास को स्वीकार कर लिया।   साधारण मनुष्य ये समझता है कि श्री राम ने दशरथ जी के वचन को निभाने के लिए वनवास को स्वीकार किया। कोई यह समझता है कि श्री राम ने रावण का वध करने के लिए वनवास को स्वीकार किया परंतु इस गूढ़ रहस्य को बहुत कम लोग समझ पाते हैं कि भगवान ने अपनी भक्त शबरी को दर्शन देने के लिए बनवास को स्वीकार  किया था।  भगवान की भक्त शबरी भील समुदाय से आती थी। शबरी के पिता भीलो के मुखिया थे और शबरी के गुरु महर्षि मतंग थे। उन्हीं के नाम पर दक्षिण में मतंगवन पढ़ता था। उसी मतंगवान में शबरी की एक छोटी सी कुटिया थी।  उस कुटिया म...