Posts

Showing posts from March, 2022

माघ शुक्ल पक्ष जया एकादशी व्रत कथा माहात्म्य सहित

Image
॥ अथ जया एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले-हे भगवान! आपने माघ माह की कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। अब कृपा कर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिये। इस एकादशी का नाम, विधि और देवता क्या और कौन सा है? श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे राजन! माघ माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम जया है। इस एकादशी व्रत से मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से छूट जाते हैं और अन्त में उनको स्वर्ग प्राप्ति होती है। इस व्रत से मनुष्य कुयोनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है। अतः इस एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिये। हे राजन! मैं एक पौराणिक कथा कहता हूँ। जया एकादशी व्रत कथा एक समय की बात है जब देवराज इंद्र स्वर्गलोक में अन्य देवताओं के साथ गायन और नृत्य का आनंद ले रहे थे। उस सभा में गंदर्भो में प्रसिद्ध पुष्पवन्त नाम का गंदर्भ अपनी पुत्री के साथ उपस्थित था।  देवराज इंद्र की सभा में चित्रसेन की पत्नी मलिन अपने पुत्र के साथ जिसका नाम पुष्पवान था और पुष्पवान भी अपने लड़के माल्यवान के साथ उपस्थित थे। उस समय गंधर्भो में सुंदरता से भी सुन्दरतम स्त्री जि

पापमोचनी एकादशी महात्म्य कथा | पापमोचनी एकादशी महात्म्य | Papmochani Ekadashi Vrat Katha

Image
॥ अथ पापमोचनी एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे भगवान! मैंने फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य सुना अब आप चैत्र माह के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइये। इस एकादशी का नाम, इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है तथा विधि क्या है? सो सब सविस्तार पूर्वक कहिये । श्री कृष्ण भगवान बोले -हे राजन! एक समय मान्धाता ने लोमश ऋषि से ऐसा ही प्रश्न पूछा था तब लोमश ऋषि ने उत्तर दिया हे राजन! चैत्र माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है। प्राचीन समय में एक चैत्ररथ वन में अप्सरायें वास करती थीं। वहां हर समय बसन्त रहता था। उस वन में एक मेधावी नामक मुनि तपस्या करते थे। वे शिव भक्त थे। एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा उनको मोहित करने के लिए सितार बजाकर मधुर २ गाने गाने लगी। उस समय शिव के शत्रु अनंग (कामदेव) भी शिव भक्त मेधावी मुनि को जीतने के लिए तैयार हुए। कामदेव ने उस सुन्दर के भ्रू को धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यंचा (डोरी बनाई) उसके नेत्रों को उसने संकेत बनाया और कुचों को कुरी ब