सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...
परिवर्तन का सिद्धान्त | Parivartan Ka Siddhant
भगवान् श्री कृष्ण ने भागवत गीता में स्पष्ट रूप से बोला की परिवर्तन संसार का नियम है अर्थात जो आज है वो कल नहीं होगा और जो कल होगा वो परसो नहीं होगा। हर पल को पूर्ण जागृत अवस्था में जीने का नाम जीवन है। आने वाला कल अनिश्चित है पर आने वाला अग्ला पल हमारे हाथो में है और अगर हम चाहे तो आने वाले अगले पल को पूर्णरूप से जी कर अपने भविष्य के लिए सुनहरे सपने बो सकते है।
इस संसार में हर प्राणी में भगवान् का निवास है और हर आत्मा भगवान् के होने की सूचक है क्योंकि बिना उस अदृश्य शक्ति के संसार का स्वतः चलना असंभव था। प्राणी के जन्म से लेकर उसके मरण तक हर क्षण कोई ना कोई परिवर्तन उसके जीवन में होता रहता है ।
परिवर्तन के सिद्धान्त को स्वीकार करना प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य होता है। मनुष्य का मानवीय स्वभाव होता है कि हम उन परिवर्तनों को स्वीकार कर लेते है जो मनुष्य के अनुकूल होते है पर जो परिवर्तन प्रतिकूल होते है उन्हें हम स्वीकार नहीं कर पाते। जबकी वेदांत ज्ञान कहता है कि मनुष्य को तटस्थ रहना चाहिए अर्थात समभाव में रहना चाहिए क्योंकि जो मनुष्य समभाव में रहता है को परम सुखी होता है। समत्वभाव में अपना जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य मान अपमान से परे होता है, सुख दुख से परे होता है , वो ना कभी परसान होता है और ना कभी दुखी होता है । सत्य तो ये है कि समभाव वाला मनुष्य हर परिस्थिति में तटस्थ बना रहता है।
भगवान् श्री कृष्ण ने भागवत गीता में स्पष्ट रूप से बोला की परिवर्तन संसार का नियम है अर्थात जो आज है वो कल नहीं होगा और जो कल होगा वो परसो नहीं होगा। हर पल को पूर्ण जागृत अवस्था में जीने का नाम जीवन है। आने वाला कल अनिश्चित है पर आने वाला अग्ला पल हमारे हाथो में है और अगर हम चाहे तो आने वाले अगले पल को पूर्णरूप से जी कर अपने भविष्य के लिए सुनहरे सपने बो सकते है।
इस संसार में हर प्राणी में भगवान् का निवास है और हर आत्मा भगवान् के होने की सूचक है क्योंकि बिना उस अदृश्य शक्ति के संसार का स्वतः चलना असंभव था। प्राणी के जन्म से लेकर उसके मरण तक हर क्षण कोई ना कोई परिवर्तन उसके जीवन में होता रहता है ।
परिवर्तन के सिद्धान्त को स्वीकार करना प्रत्येक प्राणी का कर्तव्य होता है। मनुष्य का मानवीय स्वभाव होता है कि हम उन परिवर्तनों को स्वीकार कर लेते है जो मनुष्य के अनुकूल होते है पर जो परिवर्तन प्रतिकूल होते है उन्हें हम स्वीकार नहीं कर पाते। जबकी वेदांत ज्ञान कहता है कि मनुष्य को तटस्थ रहना चाहिए अर्थात समभाव में रहना चाहिए क्योंकि जो मनुष्य समभाव में रहता है को परम सुखी होता है। समत्वभाव में अपना जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य मान अपमान से परे होता है, सुख दुख से परे होता है , वो ना कभी परसान होता है और ना कभी दुखी होता है । सत्य तो ये है कि समभाव वाला मनुष्य हर परिस्थिति में तटस्थ बना रहता है।
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