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Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?

Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?  तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं अपितु सनातन धर्म में तुलसी को देवी अर्थात माता का स्थान प्रदान किया गया है। तुलसी के महत्व की बात करें तो बिन तुलसी के भगवान भोग भी स्वीकार नहीं करते, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है। तुलसी माला का आध्यात्मिक महत्व हिंदू और बौद्ध परंपराओं में गहराई से निहित है। यहाँ कुछ प्रमुख पहलू हैं: देवताओं से संबंध भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण: तुलसी को हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है, जो अक्सर भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़ा होता है, जिसमें भगवान कृष्ण भी शामिल हैं। माना जाता है कि तुलसी माला पहनने के लिए उनके आशीर्वाद और सुरक्षा को आकर्षित करने के लिए माना जाता है। पवित्रता और भक्ति का प्रतीक शुद्धता: तुलसी संयंत्र अपनी पवित्रता के लिए श्रद्धा है। तुलसी माला पहनने से विचारों, शब्दों और कार्यों में पवित्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भक्ति: यह आध्यात्मिक प्रथाओं के प्रति समर्पण और समर्पण का एक निशान है। भक्तों ने मंत्रों और प्रार्थनाओं का जप करने के लिए...

आनंद पर सबका अधिकार - स्वामी परमानंद जी महाराज | Anand par sabka adhikar -Swami Parmanand Ji Maharaj

संसार के प्रत्येक प्राणी को आनंद में रहने का पूर्ण अधिकार है तो सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आनंद में कोई भी प्राणी किस प्रकार रह सकता है ?क्योंकि हर प्राणी के हृदय में हर समय किसी ना किसी बात की चिंता , उद्योग,विकार जन्म लिए रहते हैं और इन्हीं समस्याओं में उलझा हुआ इंसान कभी अपने आप को आनंद प्रदान नहीं कर पाता। 
आनंद पर सबका अधिकार - स्वामी परमानंद जी महाराज
Swami Parmanand Ji Maharaj अपने वेदांत प्रवचनों में हमे बताते है की हमारे सनातन धर्म में हमारे ऋषि-मुनियों ने परमानंद को प्राप्त करने के लिए जो साधन बताया वह अत्यंत ही सहज और सुलभ है। संसार का कोई भी प्राणी जो परम आनंद की प्राप्ति करना चाहता है, जो सदा रहने वाले आनंद को प्राप्त करना चाहता है उसे संसार के किसी भी वस्तु से लगाव नहीं रखना चाहिए अर्थात वह संसार में रहे परंतु उसमें लिप्त ना हो। संसार में रहते हुए भी सन्यासी की तरह अपने जीवन को जिए। 
हम सब का सुख और दुःख स्वयं हमारे ही हाथ होता है। कोई दूसरा हमे कभी कोई सुख या दुःख नहीं दे सकता क्योकि किसी में छमता ही नहीं है की कोई किसिस को सुख ा दुःख दे सके। 

जरा सोचिये की अगर किसी को सुख देने या दुःख देने की छमता किसी प्राणी में होती तो आज संसार में कोई दुखी नहीं होता और सबके पडोसी दुखी होते। पर ऐसा है नहीं। आपका सुख और आपका दुःख केवल आपकी संपत्ति है अतः उस पर केवल आपका अधिकार है। आप किसी के कहे अपशब्द से आहत न हो और प्रतिकूल समय में भी अनुकूल बने रहे।  फिर देखिये आपको परम शांति की प्राप्ति होगी ही होगी।  
अब कोई हमे बुरा कहे तो हमे समत्व भाव में होना चाहिए और जब कोई हमारी प्रशंशा करें तब भी हमे समत्वभाव में होकर अपना जीवन जीना चाहिए अर्थात किसी के द्वारा किया गया मान या अपमान आपके लिए शून्य के बराबर होना चाहिए। 
श्री राम जय राम जय जय राम 

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