सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...
प्राय देखा गया है की बहुत से साधक योग साधना के द्वारा अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने का प्रयास करते है पर कुछ त्रुटियों के कारण सफल नहीं हो पाते। स्वामी परमानन्द जी महाराज द्वारा बताये गए योग के सिद्ध्हांतो में से कुछ विशेष सिद्धांत यहाँ बताये गए है जिनका साधक को ज्ञान होना चाहिए। योग साधना करते हुए साधक को चाहिए कि वह अपने शरीर को सहज स्थिति में रहने दे अर्थात शरीर को जैसी स्थिति अच्छी लगती है ,शरीर स्वाभाविक जैसे अच्छा अनुभव करता है साधक को उसी आसान में बैठना चाहिए लेकिन सहजता का अर्थ यह नहीं की योग करते समय आप निंद्रा की अवस्था में हो जाएं। आपको सतत स्मरण रहे ,आप क्षण प्रतिक्षण जागृत रहे अर्थात आप पूर्ण जागृत अवस्था में रहे। इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है तो शरीर में विभिन्न प्रकार की क्रियाएं होने लगती हैं। भीतर जो होता है उसे सहजता से होने दे। उसमें आपकी समझ व संकोच बाधक नहीं होनी चाहिए। साधक सरल हृदय होना चाहिए। जिनका हृदय सरल होता है वह गुरु के पास बैठभर जाते हैं तो उनकी कुंडलिनी जा...