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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय

कौटिल्य चाणक्य चाणक्य (350-275 ईसा पूर्व) एक महान विद्वान थे। उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) में प्राप्त की थी। वह मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे। चाणक्य ने एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को अपनी नीतियों से अखंड भारत का सम्राट बना दिया था। चाणक्य की नीतियों में जीवन में सुख-शांति और सफलता पाने के सूत्र हैं। उनकी नीतियों को आज भी माना जाता है। चाणक्य के बारे में कुछ खास बातें: वे स्वाभिमानी, संयमी, तीक्ष्ण बुद्धि एवं पक्के इरादे वाले युगदृष्टा थे। उनका जीवन 'सादा जीवन उच्च विचार' का सही प्रतीक था. वे तीन वेदों और राजनीति में पारंगत थे। वह कैनाइन दांतों के साथ पैदा हुए थे, जिसे राजशाही की निशानी माना जाता था। उन्होंने अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ लिखा। उनकी नीतियों में सुखी जीवन के रहस्य छिपे हैं। उनकी नीतियों और शिक्षाओं को लोग आज भी अच्छा जीवन बिताने के लिए अपनाते हैं। चाणक...

Original Mahakal Bhairavam in Hindi | सम्पूर्ण महाकाल भैरवम | महाकाल भैरवम स्तोत्रम

धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक, महाकाल भैरव स्तोत्र एक बहुत ही असरदार स्तोत्र है। भैरव अष्टमी, भैरव जयंती, या फिर हर रविवार या बुधवार को इसका पाठ करने से हर तरह की परेशानी दूर होती है। Bhagwan Kaal Bhairav   काल भैरव, भगवान शिव का एक रूप हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव, काल भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। भैरव, परमात्मा के जंगली और शक्तिशाली पक्ष को दर्शाते हैं। काल भैरव की जयंती मंगलवार या रविवार को मनाई जाती है। इसे महाकाल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि काल भैरव की कृपा जिस पर हो जाए, उस पर कभी कोई संकट नहीं आता। काल भैरव की उत्पत्ति के बारे में एक कहानी यह है कि ऋषि-मुनियों की बातें सुनकर ब्रह्मा जी का एक सिर क्रोध से जलने लगा। वे क्रोध में आकर भगवान शंकर का अपमान करने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित होकर रौद्र रूप में आ गए और उनसे ही उनके रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए सिर को काट दिया। काल भैरव जयंती कब ह...

सफला एकादशी व्रत कथा | Safala Ekadashi Vrat Katha in hindi

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का जो महात्म हमारे पुराणों में बताया गया है उसके अनुसार संसार में एकादशी से बड़ा कोई दूसरा व्रत नहीं है। एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि नारायण को सर्वाधिक प्रिय है। एकादशी का पावन व्रत जो भी मनुष्य करता है, भगवान श्री हरि की कृपा सिर्फ उसपर ही नहीं अपितु उसके पूरे कुटुंब पर बनी रहती है। आज हम आपको उसी पावन एकादशियों में से एक सफल एकादशी की पवित्र कथा सुनाने जा रहे है। इस कथा के श्रावण मात्र से आपका चित शांत और आत्मिक सुख की अनुभूति करने लगेगा। ॥ अथ सफला एकादशी महात्म्य ॥ श्रीयुधिष्ठिर बोले-हे भगवान! पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस दिन कौन से देवता की पूजा व विधि क्या है? यह सब समझाइये। श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे राजन! मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देता हूँ। दान देने वाले की अपेक्षा मैं व्रत करने वाले से प्रसन्न हूं। अब आप इस एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनिए। पौष माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम सफला है। इस एकादशी के देवता नारायण हैं। इसका पूर्वोक्त विधि अनुसार व्रत करना चाहिए और नारायणजी की पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य एकादशी व्रत तथा मेरा पूजन क...

Aryabhata: आचार्य आर्यभट का जीवन परिचय

जब बात भारत के इतिहास की होती है तो अनेको ऐसी बाते खुल कर सामने आती है जिनको जानने के बाद हमे ये अहसास होता है की हमारे पूर्वज कितने ज्ञानी थे।सनातन धर्म की नींव रखने वाले हमारे पूर्वजों ने संसार की प्रगति के लिए जो योगदान दिया था उसे कभी नकारा नहीं जा सकता। आज हम ऐसे ही एक महान विद्वान की बात करेंगे जिन्होंने समस्त संसार में अपनी प्रतिभा से भारत के नाम का झंडा गाड़ दिया। आइए जानते हैं उस महान विद्वान आर्यभट के बारे में। गणितज्ञ आर्यभट  Acharya Aryabhata आचार्य आर्यभट (476-550 ईस्वी) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। आर्यभट ने 'आर्यभटीय' नामक एक ग्रंथ लिखा था। इस ग्रंथ में उन्होंने ज्योतिषशास्त्र के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। आर्यभट ने अपने ग्रंथ में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है। आर्यभट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने 23 साल की उम्र में ही 'आर्यभटीय' नामक ग्रंथ लिखा था। आर्यभट के शिष्य प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर थे। आर्यभट ने वर्गमूल निकालना, द्विघात समीकरणों को हल करना, और ग्रहण की भविष्...

पीपल का पूजन क्यों? | सनातन धर्म में पीपल को पूजनीय क्यों माना जाता है?

पौराणिक काल से ही सनातन धर्म में वृक्षों को पूजनीय माना जाता है। शास्त्रों पुराणों में आनेको ऐसे वृक्षों की व्याख्या मिलती है जिनकी सनातन धर्म में आज भी पूजा होती है। हिंदू धर्म में पीपल, बरगद, आम, बिल्व, और अशोक को पवित्र माना गया है। इनके अलावा, भारत में पीपल, तुलसी, वट वृक्ष, केला, और बेलपत्र जैसे पेड़ों की पूजा की जाती है।  Peepal Ka Ped ( Ficus religiosa or sacred fig plant) शास्त्रों में पीपल को देव वृक्ष कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ के हर पत्ते पर देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है। तैत्तिरीय संहिता में प्रकृति के सात पावन वृक्षों में पीपल की गणना है और ब्रह्मवैवर्तपुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी उल्लेख मिलता है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् विष्णु का रूप है। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् व...

Ekadashi: Mokshada Ekadashi Vrat Katha | मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

संसार के सभी व्रतों में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है। यू तो सनातन धर्म में बताए गए प्रत्येक व्रत को करने से प्राणी के सतोगुण की वृद्धि होती है, उसका चित शुद्ध होता है और साधक का आध्यातिक कल्याण होता है परंतु जो प्राणी ज्यादा व्रत इत्यादि न कर सके उनको एकादशी का व्रत करने का अनुग्रह शास्त्रों द्वारा किया गया है। ॥ अथ मोक्षदा एकादशी महात्म्य ॥ श्री युधिष्ठर बोले कि हे भगवान! आप सबको सुख देने वाले हैं और जगत के पति हैं इसलिये मैं आपको नमस्कार करता हूँ। कृपाकर मेरे एक संशय को दूर कीजिये। मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम क्या है। उस दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है और उसकी विधि क्या है? भगवन मेरे इन प्रश्नों का उत्तर देकर मेरे संदेह को दूर कीजिये। भगवान श्री कृष्णजी बोले हे राजन! आप ने अन्यन्त उत्तम प्रश्न किया है। आप ध्यान पूर्वक सुनिये मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन श्रीदामोदर भगवान की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिये। अब मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से नरक मे...

कुबेर कौन है? | कुबेर की पूजा कैसे और कब की जती है? | कुबेर पूजन विधि क्या है? | कुबेर पूजन मंत्र क्या है?

सनातन धर्म में अनेको देवी-देवता हैं जिनकी पूजा करके मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य की अनगिनत इच्छाएं हैं जिनमें से एक उसकी आर्थिक संपनन्नता की इच्छा होती है। इस इच्छा की पूर्ति के लिए सभी सनातन धर्म प्रेमी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं पर साथ ही साथ कुबेर देवता की भी पूजा करते हैं। आज हम जानेंगे की कुबेर कौन है? उन्हें यह उपाधि किसने दी? और उनकी पूजा क्यों की जाती है? कुबेर कौन है? कुबेर एक हिन्दू पौराणिक पात्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर महाराज को स्थायी धन का स्वामी माना जाता है। कुबेर देव धन को स्थिर रखने का कार्य करते हैं और देवी लक्ष्मी धन को गतिमान रखती हैं। कुबेर महाराज को खजाने के रूप में स्थायी धन का देवता भी कहा जाता है, इसलिए कुबेर जी को भी मां लक्ष्मी की तरह पूजा जाता है। कुबेर को भगवान शिव का अधिपति माना जाता है। इसलिए दिवाली के दिन उनकी पूजा का विधान है।  धार्मिक मान्यता के अनुसार धनतेरस (Dhanteras) के दिन धन के देवता कुबेर की विशेष पूजा होती है। साथ ही भगवान धनवंतरी (Lord Dhanvantari) तथा यमदेव (Yam Puja) की पूजा भी की जाती है। क...

धनतेरस पर किसी पूजा करते है? धनतेरस पूजन विधि?

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा होती है। इस दिन सोना, चांदी, बर्तन, झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है साथ ही, नमक भी खरीदना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस पर खरीदारी करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद सबसे अंत में अमृत की प्राप्ति हुई थी। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र से अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए वह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। धनतेरस पर पूजा करने की विधि: शाम के समय उत्तर दिशा की ओर कुबेर और धनवंतरी की स्थापना करें। दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जलाएं। भगवान कुबेर को सफ़ेद मिठाई और धनवंतरी को पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के दौरान "ॐ ह्रीं कुबेराय नमः" का जाप करें। पूजा में सबसे पहले आचमन, फिर ध्यान, फिर जाप, इसके बाद आहुति होम और आखिर में आ...

गायत्री मंत्र: अनंत काल से परे पवित्र ध्वनि की खोज

गायत्री मंत्र, प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों से निकला एक पवित्र मंत्र है, जो समय को पार करने और हमें परमात्मा से जोड़ने की शक्ति रखता है। अपनी मनमोहक धुन और गहरे अर्थ के साथ, इसने सदियों से दुनिया भर के आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को मोहित किया है। गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्यों? केवल कुछ शक्तिशाली छंदों में, गायत्री मंत्र सार्वभौमिक सत्य के सार को समाहित करता है और हमें अपने आंतरिक ज्ञान को जागृत करने के लिए आमंत्रित करता है। इन पवित्र शब्दों के भीतर एक गहरा रहस्य छिपा है - कहा जाता है कि गायत्री मंत्र में अपार परिवर्तनकारी ऊर्जाएँ हैं। जप करने से या यहां तक कि केवल इसके कंपन को सुनने से, व्यक्ति शांति, आध्यात्मिक विकास और उच्च लोकों से जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव कर सकता है। अपने रहस्यमय गुणों से परे, गायत्री मंत्र हमारे दैनिक जीवन के लिए व्यावहारिक लाभ प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि यह मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देता है और करुणा और प्रेम जैसे दिव्य गुणों को विकसित करता है। इसके दिव्य स्पंदन के प्रति समर्पण करके, हम अपने आप को अनंत संभावन...

वृन्दावन में प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा का अनावरण: भक्ति और ज्ञान

संपूर्ण वृंदावन कृष्ण की भूमि है। कृष्ण का जन्म स्थान है क्योंकि वृंदावन में मथुरा बसा हुवा है और मथुरा में वृंदावन। कृष्ण ने मथुरा की जेल में जन्म लिया और वृंदावन के हर कण में वास किया। कृष्ण के हृदय में राधा ने निवास किया और राधा के हृदय में कृष्ण ने सदा निवास किया। यही कारण है की इतने युगों के बीतने के बाद भी आज कृष्ण के प्रेम की गूंज संपूर्ण वृंदावन में सुनाई पड़ती है राधा के नाम से।  आज जितने भक्त भगवान श्री कृष्ण को पूजते हैं उससे कहीं अधिक भक्त भगवती लाडली श्री राधे के अनुयाई है, जो हर पल राधे-राधे बोलते हैं। वृंदावन में हर किसी के मुख से आपको श्री राधे का नाम सुनाई पड़ जाएगा क्योंकि वह जानते हैं की यदि परम गति को प्राप्त करना है और कृष्ण की कृपा को प्राप्त करना है तो राधा का नाम जपना पड़ेगा। राधा की वो देवी है जिन्होंने कृष्ण के ह्रदय पटल पर सदैव राज किया है।  वृन्दावन: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय पवित्र नगरी वृन्दावन में, शांत मंत्रों और फूलों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू के बीच, एक आध्यात्मिक प्रकाश का उदय हुआ, जिसने अनगिनत भक्तों के दिलों को मंत्रमुग्ध क...