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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

Original Mahakal Bhairavam in Hindi | सम्पूर्ण महाकाल भैरवम | महाकाल भैरवम स्तोत्रम

धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक, महाकाल भैरव स्तोत्र एक बहुत ही असरदार स्तोत्र है। भैरव अष्टमी, भैरव जयंती, या फिर हर रविवार या बुधवार को इसका पाठ करने से हर तरह की परेशानी दूर होती है।

Bhagwan Kaal Bhairav 

काल भैरव, भगवान शिव का एक रूप हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव, काल भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। भैरव, परमात्मा के जंगली और शक्तिशाली पक्ष को दर्शाते हैं।
काल भैरव की जयंती मंगलवार या रविवार को मनाई जाती है। इसे महाकाल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि काल भैरव की कृपा जिस पर हो जाए, उस पर कभी कोई संकट नहीं आता।
काल भैरव की उत्पत्ति के बारे में एक कहानी यह है कि ऋषि-मुनियों की बातें सुनकर ब्रह्मा जी का एक सिर क्रोध से जलने लगा। वे क्रोध में आकर भगवान शंकर का अपमान करने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित होकर रौद्र रूप में आ गए और उनसे ही उनके रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने घमंड में चूर ब्रह्म देव के जलते हुए सिर को काट दिया।

काल भैरव जयंती कब है?

हिंदू पंचांग के मुताबिक, मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव का अवतरण हुआ था। 
काल भैरव जयंती को महाकाल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि काल भैरव की कृपा जिस पर हो जाए, उस पर कभी कोई संकट नहीं आता।

भैरव के दो स्वरूप हैं:

(१) बटुक भैरव, जो शिव के बालरूप माने जाते हैं। यह सौम्य रूप में प्रसिद्ध है।
(२) काल भैरव, जिन्हें दंडनायक माना गया है।

काल भैरव की उत्पत्ति की कहानी क्या है?

काल भैरव की उत्पत्ति के बारे में एक और कहानी यह है कि अंधकासुर नाम का दैत्य अपने अत्याचारों की सीमाएं पार कर रहा था। एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। 
पुराणों में उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पाँचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है।

महाकालभैरवाष्टकम् 

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरंचन्द्रबिम्बम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥

रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं
तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥

लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं, रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालम्
नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥

वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं
खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् ।
चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं
मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥

शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मोक्ष सम्पूर्ण तेजं
मं मं मं मं महान्तं, कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् ।
यं यं यं भूतनाथं, किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रदहानं
आं आं आं आन्तरिक्षं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥

खं खं खं खड्गभेदं, विषममृतमयं कालकालं करालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं, दहदहदहनं, तप्तसन्दीप्यमानम् ।
हौं हौं हौंकारनादं, प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं
बं बं बं बाललीलं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥

वर वं वं वं वाललीलं
सं सं सं सिद्धियोगं, सकलगुणमखं, देवदेवं प्रसन्नं
पं पं पं पद्मनाभं, हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं, सततभयहरं, पूर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्ररूपं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥
हं हं हं हंसयानं, हसितकलहकं, मुक्तयोगाट्टहासं, ?
धं धं धं नेत्ररूपं, शिरमुकुटजटाबन्ध बन्धाग्रहस्तम् ।
तं तं तंकानादं, त्रिदशलटलटं, कामगर्वापहारं,
भ्रुं भ्रुं भ्रुं भूतनाथं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥

इति महाकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।

नमो भूतनाथं नमो प्रेतनाथं
नमः कालकालं नमः रुद्रमालम् ।
नमः कालिकाप्रेमलोलं करालं
नमो भैरवं काशिकाक्षेत्रपालम् ॥

काल भैरव का मंत्र क्या है?

काल भैरव के कुछ मंत्र ये हैं:
ॐ भयहरणं च भैरव:
ॐ कालभैरवाय नम:
ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं
ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्
ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम: 
काल भैरव की पूजा के लिए ॐ काल भैरवाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान काल भैरव प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। 
अगर कोई काम कई कोशिशों के बाद भी नहीं बन पा रहा है, तो “ओम ब्रह्म काल भैरवाय फट” मंत्र का जाप करना सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होता है।
इसके अलावा, ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि मंत्र का जाप करने से शत्रु से मुक्ति मिलती है।
काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए, सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ़ कपड़े पहनने चाहिए। भगवान काल भैरव को काले तिल, उड़द और सरसों के तेल का दीपक अर्पित करना चाहिए। मंत्र जाप और उनकी विधिवत पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

काल भैरव के पास कुत्ता क्यों है?

हिन्दू धर्म के मुताबिक, काल भैरव का वाहन काला कुत्ता है। ऐसा माना जाता है कि कुत्ते को पालना और रोटी खिलाना शुभ होता है। कुत्ते को भोजन देने से काल भैरव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को हर तरह के आकस्मिक संकटों से बचाते हैं। मान्यता है कि कुत्ते को प्रसन्न रखने से वह यमदूत को भी पास नहीं फटकने देता। कुत्ते को देखकर हर तरह की आत्माएं दूर भागने लगती हैं। 
कुत्ते को काल भैरव का वाहन क्यों माना जाता है, इसके कई कारण हैं:
कुत्ता बहुत वफ़ादार होता है। यह भैरव के साथ उनके संबंध का प्रतीक है, जो भक्तों के लिए एक दयालु और सहायक देवता हैं।
कुत्ता बहुत साहसी होता है।
कुत्ता अपने स्वामी के प्रति पूर्ण वफ़ादार रहता है। अपने जीवित रहते अपने स्वामी पर कोई भी आंच नहीं आने देता।
कुत्ते की घ्राण (सूंघने) शक्ति बहुत तीव्र होती है। कोई होने वाली घटना का यह पूर्वानुमान कर लेती है और इसी शक्ति के कारण कुत्ता हमेशा सतर्क रहता है।
ज्योतिषशास्त्र में कुत्ते को शनि और केतु का प्रतीक भी माना जाता है।
कुत्ता धर्म का प्रतीक है। इसी धर्म रुपी श्वान ने महर्षि वेदव्यास रचित पंचम वेद कहे जाने वाले महाभारत के आखिर में युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग में प्रवेश किया।
हिन्दू मान्यता के मुताबिक, काले कुत्ते को रोटी खिलाने से कालभैरव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति आकस्मिक मृत्यु के भय से दूर रहता है।

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