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परमानंद जी महाराज ने बताया मन्त्र जाप कैसे करें

मन्त्र जाप- Parmanand Maharaj  हिंदू धर्म में मंत्र जाप का बहुत महत्व है। शास्त्रों के मुताबिक, मंत्र का जाप करने से पहले और बाद में कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। साधकः- मन्त्र जाप कैसे करें? मन्त्र का अर्थ बतायें।   महाराजश्रीः - कोई भी मन्त्र हो लगातार उसे श्वास के साथ बोलें। मान लो नमः शिवाय। क्योंकि जो कोई मन्त्र लिया होता है, उस मन्त्र को बताने के लिए गुरु मना कर देते हैं। तो मान लो "नमः शिवाय"। कई बार मेरा श्वास लेते में नमः शिवाय, नमः शिवाय..... (अनन्तबार) हो गया। ऐसे ही श्वास निकालते में हो गया। और दूसरा होता है, दो भागों में, जैसे-राम-सीता, राधे-श्याम, सोऽहम्, जो दो भागों में बँटता है। आधा मन्त्र श्वास लेते में आधा मन्त्र श्वास निकालते में बोलते हैं। बोलते नहीं बल्कि केवल स्मरण करते हैं। जो जुबान या माला से करते हैं, वह जाप है, जो श्वास से करते हैं, वह अजपा है। केवल स्मरण, बोलना नहीं है। केवल शब्द का सुमिरन करना है। ऐसे ही लोग 'सोऽहम्' का अर्थ पूछते हैं। सोऽहम् का अर्थ समझना है। जब तक हम सोऽहम् का अजपा जाप करते हैं, तब तक यह योग साधना है। और जब स

आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय

कौटिल्य चाणक्य

चाणक्य (350-275 ईसा पूर्व) एक महान विद्वान थे। उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) में प्राप्त की थी। वह मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में प्रधानमंत्री थे।
चाणक्य ने एक सामान्य बालक चंद्रगुप्त को अपनी नीतियों से अखंड भारत का सम्राट बना दिया था। चाणक्य की नीतियों में जीवन में सुख-शांति और सफलता पाने के सूत्र हैं। उनकी नीतियों को आज भी माना जाता है।

चाणक्य के बारे में कुछ खास बातें:

वे स्वाभिमानी, संयमी, तीक्ष्ण बुद्धि एवं पक्के इरादे वाले युगदृष्टा थे।
उनका जीवन 'सादा जीवन उच्च विचार' का सही प्रतीक था.
वे तीन वेदों और राजनीति में पारंगत थे।
वह कैनाइन दांतों के साथ पैदा हुए थे, जिसे राजशाही की निशानी माना जाता था।
उन्होंने अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ लिखा।
उनकी नीतियों में सुखी जीवन के रहस्य छिपे हैं।
उनकी नीतियों और शिक्षाओं को लोग आज भी अच्छा जीवन बिताने के लिए अपनाते हैं।

चाणक्य का धर्म क्या है?

आचार्य चाणक्य ने सार्वजनिक रूप से धर्म के बारे में अपने विचार दिए हैं। उन्होंने किसी धर्म की निंदा या प्रशंसा नहीं की है. उनके विचार हर धर्म को मानने वाले लोगों के लिए उपयोगी हैं।
चाणक्य के मुताबिक, धर्म एक छोटे पात्र में रखा हुआ जल की तरह नहीं है। यह तो अथाह सागर की तरह है जो सबको अपने में समाहित कर लेता है। चाणक्य के मुताबिक, धर्मरहित इंसान मरे हुए इंसान के समान है।
चाणक्य के मुताबिक, व्यक्ति को हमेशा सत्य बोलना चाहिए। लेकिन अप्रिय लगे ऐसा सत्य भी नहीं बोलना चाहिए। इसके साथ ही प्रिय लगने वाला असत्य भी कभी नहीं बोलना चाहिए। यही सनातन धर्म है।
चाणक्य के मुताबिक, राज्य का हित सर्वोपरि है। इसके लिए कई बार वह नैतिकता के सिद्धांतों को भी परे रख देता है।
चाणक्य के मुताबिक, एक नेता को लोगों का समर्थन और विश्वास बनाए रखने के लिए नैतिकता और नैतिक मूल्यों को कायम रखना चाहिए।

चाणक्य ने चाणक्य नीति कब लिखी थी?

चाणक्य ने चाणक्य नीति या चाणक्य नीतिशास्त्र को ईसा पूर्व चौथी और तीसरी शताब्दी के बीच लिखा था। चाणक्य ने अर्थशास्त्र, लघु चाणक्य, वृद्ध चाणक्य, चाणक्य-नीति शास्त्र भी लिखा था।
चाणक्य की नीतियों में जीवन में सुख-शांति और सफलता पाने के सूत्र हैं। चाणक्य की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। नेतृत्व एवं प्रबंधन से लेकर संघर्ष समाधान और कूटनीति तक जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चाणक्य की शिक्षाओं को लागू किया जा सकता है।
चाणक्य की नीतियों का पालन कर कई लोगों ने दुनिया में एक बड़ा मुकाम हासिल किया है।

चाणक्य के प्रमुख सिद्धांत या विचारधारा क्या हैं?

राज्य में केंद्रीय व्यक्ति राजा या शासक होता है।
शासन में राजा की सहायता करने में मंत्री या सलाहकार अहम भूमिका निभाते हैं।
युद्ध में विजय पाने के लिए मित्र और शत्रु की सही पहचान करके उपयुक्त गठबंधन या सहबंध स्थापित करने चाहिए।
मेहनत ही सफलता का मूल मंत्र है।
दूसरों के लिए अपने दिल में ज़्यादा प्यार और सम्मान रखना सुखी जीवन की एक निशानी है।
मनुष्य अपने विवेक और ज्ञान की बदौलत ही अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है।

चाणक्य के अनुसार जीवन कैसे जीना चाहिए?

मुश्किल समय में भी धैर्य बनाए रखना चाहिए।
हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।
अनुभव के साथ-साथ ज्ञान भी ज़रूरी है।
मेहनत से ही सफलता मिलती है।
दूसरों के लिए प्यार और सम्मान रखना चाहिए। 
मूर्ख लोगों से विवाद नहीं करना चाहिए।
जहां इज़्ज़त न मिले, वहां नहीं रहना चाहिए।
भरोसे पर ही प्यार कायम रहता है।
जो अपने पार्टनर पर अपना फ़ैसला नहीं थोपता, वह हमेशा सुखी रहता है।
धर्म के रास्ते पर चलकर धन कमाना चाहिए।
जो व्यक्ति विष में से अमृत निकाल ले, वह धनवान बनता है।

चाणक्य नीति के मुताबिक, सफलता के लिए ये बातें ज़रूरी हैं:
किताबों से ज्ञान।
पारस्परिक कौशल।
बोलना आना।
सार्वजनिक रूप से बोलना आना।
उत्साह।

चाणक्य नीति में कितने सूत्र हैं?

आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में सफलता के लिए छह सूत्र बताए हैं. चाणक्य ने चाणक्य सूत्र नाम का ग्रंथ भी लिखा था. इस ग्रंथ के पहले अध्याय के 97 वें सूत्र में बताया गया है कि किसी शत्रु से हम 7 तरीकों से अपना काम करवा सकते हैं. चाणक्य नीति के कुछ और सूत्र ये हैं:
अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
अपनी कमजोरी और खूबी दोनों का बखूबी पता होना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति को अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
किसी शत्रु से अपना काम करवाने के लिए 7 तरीके बताए गए हैं।
दूसरों के लिए अपने दिल में ज़्यादा प्यार और सम्मान रखना सुखी जीवन की एक निशानी है।
जो लोग मोह-माया से बाहर निकल जाते हैं उन्हें कभी दुख का मुंह नहीं ताकना पड़ता।
परिस्थितियां हर समय एक जैसी नहीं हो सकती।
आचार्य चाणक्य को अर्थशास्त्र और नीति शास्‍त्र का जनक माना जाता है।

चाणक्य को भारत का क्या कहा जाता है?

चाणक्य को भारत का महान विद्वान कहा जाता है. 
 चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है।
चाणक्य एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे और उन्होंने अपनी शिक्षा तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) में प्राप्त की थी।
चाणक्य का गौत्र कोटिल था और इसलिए उनका नाम कौटिल्य भी पड़ गया। चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। चाणक्य ने नंदवंश का अंत किया और फिर चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया।

चाणक्य को कौटिल्य क्यों कहा जाता है?

चाणक्य को कौटिल्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि: 
उनका गौत्र कोटिल था।
राजनीति में अपने दूरदर्शिता और ज्ञान को कुटिल तरीके से व्यवहार करते थे।
अर्थशास्त्र के कुशाग्र होने के कारण।
उनकी चालों में इतनी कुटिलता रहती थी कि विरोधी भांप भी नहीं पाते थे।
चाणक्य एक दार्शनिक, न्यायविद् और शाही सलाहकार थे। उन्होंने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व और तीसरी शताब्दी ईस्वी के बीच राजनीति और अर्थशास्त्र के विज्ञान पर 'अर्थशास्त्र' लिखा। उन्होंने नैतिकता और शासन कला जैसी कई चीज़ों पर किताबें लिखीं।

आचार्य चाणक्य को किसका जनक माना जाता है?

आचार्य चाणक्य को अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र का जनक माना जाता है। कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, इस प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथ के लेखक होने के कारण उन्हें अर्थशास्त्र के जनक के रूप में जाना जाता है।
चाणक्य ने राजनीति पर एक उत्कृष्ट ग्रंथ, अर्थ-शास्त्र ("भौतिक लाभ का विज्ञान") लिखा, जो कि उनके समय तक भारत में अर्थ के संबंध में लिखी गई लगभग सभी चीजों का संकलन था। चाणक्य ने समाजशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र की शिक्षा ली थी और नालन्दा विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य भी किया।
चाणक्य का जन्म करीब 300 ईसा पूर्व हुआ था। चाणक्य का संबंध पाटलिपुत्र से था, जिसे उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। चाणक्य ने सम्राट पुरु के साथ मिलकर मगथ सम्राट धननंद के साम्राज्य के खिलाफ राजनीतिक समर्थन जुटाया और अंत में धनानंद के नाश के बाद उन्होंने चंद्रगुप्त को मगध का सम्राट बनाया और खुद महामंत्री बने।

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