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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

पीपल का पूजन क्यों? | सनातन धर्म में पीपल को पूजनीय क्यों माना जाता है?

पौराणिक काल से ही सनातन धर्म में वृक्षों को पूजनीय माना जाता है। शास्त्रों पुराणों में आनेको ऐसे वृक्षों की व्याख्या मिलती है जिनकी सनातन धर्म में आज भी पूजा होती है। हिंदू धर्म में पीपल, बरगद, आम, बिल्व, और अशोक को पवित्र माना गया है। इनके अलावा, भारत में पीपल, तुलसी, वट वृक्ष, केला, और बेलपत्र जैसे पेड़ों की पूजा की जाती है।  Peepal Ka Ped ( Ficus religiosa or sacred fig plant) शास्त्रों में पीपल को देव वृक्ष कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ के हर पत्ते पर देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है। तैत्तिरीय संहिता में प्रकृति के सात पावन वृक्षों में पीपल की गणना है और ब्रह्मवैवर्तपुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी उल्लेख मिलता है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् विष्णु का रूप है। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् व...

Ekadashi: Mokshada Ekadashi Vrat Katha | मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

संसार के सभी व्रतों में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है। यू तो सनातन धर्म में बताए गए प्रत्येक व्रत को करने से प्राणी के सतोगुण की वृद्धि होती है, उसका चित शुद्ध होता है और साधक का आध्यातिक कल्याण होता है परंतु जो प्राणी ज्यादा व्रत इत्यादि न कर सके उनको एकादशी का व्रत करने का अनुग्रह शास्त्रों द्वारा किया गया है। ॥ अथ मोक्षदा एकादशी महात्म्य ॥ श्री युधिष्ठर बोले कि हे भगवान! आप सबको सुख देने वाले हैं और जगत के पति हैं इसलिये मैं आपको नमस्कार करता हूँ। कृपाकर मेरे एक संशय को दूर कीजिये। मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम क्या है। उस दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है और उसकी विधि क्या है? भगवन मेरे इन प्रश्नों का उत्तर देकर मेरे संदेह को दूर कीजिये। भगवान श्री कृष्णजी बोले हे राजन! आप ने अन्यन्त उत्तम प्रश्न किया है। आप ध्यान पूर्वक सुनिये मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन श्रीदामोदर भगवान की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिये। अब मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से नरक मे...

कुबेर कौन है? | कुबेर की पूजा कैसे और कब की जती है? | कुबेर पूजन विधि क्या है? | कुबेर पूजन मंत्र क्या है?

सनातन धर्म में अनेको देवी-देवता हैं जिनकी पूजा करके मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है। मनुष्य की अनगिनत इच्छाएं हैं जिनमें से एक उसकी आर्थिक संपनन्नता की इच्छा होती है। इस इच्छा की पूर्ति के लिए सभी सनातन धर्म प्रेमी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं पर साथ ही साथ कुबेर देवता की भी पूजा करते हैं। आज हम जानेंगे की कुबेर कौन है? उन्हें यह उपाधि किसने दी? और उनकी पूजा क्यों की जाती है? कुबेर कौन है? कुबेर एक हिन्दू पौराणिक पात्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर महाराज को स्थायी धन का स्वामी माना जाता है। कुबेर देव धन को स्थिर रखने का कार्य करते हैं और देवी लक्ष्मी धन को गतिमान रखती हैं। कुबेर महाराज को खजाने के रूप में स्थायी धन का देवता भी कहा जाता है, इसलिए कुबेर जी को भी मां लक्ष्मी की तरह पूजा जाता है। कुबेर को भगवान शिव का अधिपति माना जाता है। इसलिए दिवाली के दिन उनकी पूजा का विधान है।  धार्मिक मान्यता के अनुसार धनतेरस (Dhanteras) के दिन धन के देवता कुबेर की विशेष पूजा होती है। साथ ही भगवान धनवंतरी (Lord Dhanvantari) तथा यमदेव (Yam Puja) की पूजा भी की जाती है। क...

धनतेरस पर किसी पूजा करते है? धनतेरस पूजन विधि?

धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा होती है। इस दिन सोना, चांदी, बर्तन, झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है साथ ही, नमक भी खरीदना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस पर खरीदारी करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद सबसे अंत में अमृत की प्राप्ति हुई थी। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र से अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए वह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। धनतेरस पर पूजा करने की विधि: शाम के समय उत्तर दिशा की ओर कुबेर और धनवंतरी की स्थापना करें। दोनों के सामने एक-एक मुख का घी का दीपक जलाएं। भगवान कुबेर को सफ़ेद मिठाई और धनवंतरी को पीली मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के दौरान "ॐ ह्रीं कुबेराय नमः" का जाप करें। पूजा में सबसे पहले आचमन, फिर ध्यान, फिर जाप, इसके बाद आहुति होम और आखिर में आ...

गायत्री मंत्र: अनंत काल से परे पवित्र ध्वनि की खोज

गायत्री मंत्र, प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों से निकला एक पवित्र मंत्र है, जो समय को पार करने और हमें परमात्मा से जोड़ने की शक्ति रखता है। अपनी मनमोहक धुन और गहरे अर्थ के साथ, इसने सदियों से दुनिया भर के आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को मोहित किया है। गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्यों? केवल कुछ शक्तिशाली छंदों में, गायत्री मंत्र सार्वभौमिक सत्य के सार को समाहित करता है और हमें अपने आंतरिक ज्ञान को जागृत करने के लिए आमंत्रित करता है। इन पवित्र शब्दों के भीतर एक गहरा रहस्य छिपा है - कहा जाता है कि गायत्री मंत्र में अपार परिवर्तनकारी ऊर्जाएँ हैं। जप करने से या यहां तक कि केवल इसके कंपन को सुनने से, व्यक्ति शांति, आध्यात्मिक विकास और उच्च लोकों से जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव कर सकता है। अपने रहस्यमय गुणों से परे, गायत्री मंत्र हमारे दैनिक जीवन के लिए व्यावहारिक लाभ प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि यह मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देता है और करुणा और प्रेम जैसे दिव्य गुणों को विकसित करता है। इसके दिव्य स्पंदन के प्रति समर्पण करके, हम अपने आप को अनंत संभावन...

वृन्दावन में प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा का अनावरण: भक्ति और ज्ञान

संपूर्ण वृंदावन कृष्ण की भूमि है। कृष्ण का जन्म स्थान है क्योंकि वृंदावन में मथुरा बसा हुवा है और मथुरा में वृंदावन। कृष्ण ने मथुरा की जेल में जन्म लिया और वृंदावन के हर कण में वास किया। कृष्ण के हृदय में राधा ने निवास किया और राधा के हृदय में कृष्ण ने सदा निवास किया। यही कारण है की इतने युगों के बीतने के बाद भी आज कृष्ण के प्रेम की गूंज संपूर्ण वृंदावन में सुनाई पड़ती है राधा के नाम से।  आज जितने भक्त भगवान श्री कृष्ण को पूजते हैं उससे कहीं अधिक भक्त भगवती लाडली श्री राधे के अनुयाई है, जो हर पल राधे-राधे बोलते हैं। वृंदावन में हर किसी के मुख से आपको श्री राधे का नाम सुनाई पड़ जाएगा क्योंकि वह जानते हैं की यदि परम गति को प्राप्त करना है और कृष्ण की कृपा को प्राप्त करना है तो राधा का नाम जपना पड़ेगा। राधा की वो देवी है जिन्होंने कृष्ण के ह्रदय पटल पर सदैव राज किया है।  वृन्दावन: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय पवित्र नगरी वृन्दावन में, शांत मंत्रों और फूलों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू के बीच, एक आध्यात्मिक प्रकाश का उदय हुआ, जिसने अनगिनत भक्तों के दिलों को मंत्रमुग्ध क...

पितृपक्ष विशेष: पिंडदान करने की परंपरा क्यों?

पितृपक्ष विशेष में जानेंगे की पिंडदान करने की परंपरा क्यों है और इसके क्या लाभ हैं? क्या पिंडदान अनिवार्य होता है? पिंडदान न करने से क्या होता है? पिंडदान क्यों करना चाहिए? हिंदूधर्म में पिंडदान की परंपरा वेदकाल से ही प्रचलित है। मरणोपरांत पिंडदान किया जाता है। दस दिन तक दिए गए पिंडों से शरीर बनता है। क्षुधा का जन्म होते ही ग्यारहवें व बारहवें दिन सूक्ष्मजीव श्राद्ध का भोजन करता है। ऐसा माना जाता है कि तेरहवें दिन वह यमदूतों के इशारे पर नाचता हुआ यमलोक चला जाता है। पितरों के मोक्ष के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है और इसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। योगवासिष्ठ में बताया गया है- आदी मृता वयमिति बुध्यन्ते तदनुक्रमात् ।  बंधु पिण्डादिदानेन प्रोत्पन्ना इवा वेदिनः ॥   - योगवासिष्ठ 3/35/27 अर्थात् प्रेत अपनी स्थिति को इस प्रकार अनुभव करते हैं कि हम मर गए हैं और अब बंधुओं के पिंडदान से हमारा नया शरीर बना है। चूंकि यह अनुभूति भावनात्मक ही होती है, इसलिए पिंडदान का महत्त्व उससे जुड़ी भावनाओं की बदौलत ही होता है। ये भावनाएं प्रेतों-पितरों को स्पर्श करती हैं। पिंडदानादि पाकर...

पितृपक्ष विशेष: मृतक का तर्पण क्यों?

पितृपक्ष विशेष में आज हम जानेंगे कि संसार में किसी भी प्राणी के मरने के बाद उसका तर्पण क्यों किया जाता है? तर्पण करने से मृतक के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है।  मृतक का तर्पण जो संसार में आया है उसको एक दिन संसार को छोड़कर जाना पड़ेगा यह सत्य है इसे मानव जानता तो है पर स्वीकार नहीं करना चाहता। सनातन धर्म में मनुष्य के जीवन को 16 संस्कारो में विभक्त किया जाता है जिसमे सोलुवा संस्कार अंतिम संस्कार है जिसे मृतक के पुत्र द्वारा किया जाता है।  यदि मृतक का अंतिम संस्कार पूर्ण विधान से न किया जाए तो जीवात्मा को मुक्ति नहीं मिलती है।  इसीलिए सनातन कॉल से ही ये नियम प्रजापति दक्ष ने बनाया था की जब भी कोई प्राणी संसार में मरेगा तो उसका तर्पण करना अनिवार्य होगा। विधि विधान से किया गया तर्पण जीवात्मा को सद्गति प्रदान करने में सक्षम होता ह्यै।  म नुस्मृति में तर्पण  म नुस्मृति में तर्पण को पितृ-यज्ञ बताया गया है और सुख-संतोष की वृद्धि हेतु तथा स्वर्गस्य आत्माओं की तृप्ति के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण का अर्थ पितरों का आवाहन, सम्मान और क्षुधा मिटाने से ही है।...

पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म पुत्र द्वारा ही क्यों?

आज के इस लेख के माध्यम से आपको ज्ञान होगा कि पितृपक्ष में पुत्र द्वारा किए गए श्राद्ध से पितरों को प्रसन्न का क्यों होती है? पुत्र के द्वारा श्राद्ध किए जाने से क्या लाभ है? पुत्र द्वारा ही श्राद्ध   आधुनिक समय में लिंग भेद को नहीं माना जाता और हमारा भी यही मानना है कि पुत्र या पुत्री में कोई फर्क नहीं होता। पुत्र और पुत्री समान रूप से अपने परिवार और समाज के प्रेम के अधिकारी होते हैं। जिस प्रकार माता-पिता का संबंध उनके पुत्र से होता है ठीक उसी प्रकार पुत्री से भी प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होता है।  संतान के विषय में लड़का और लड़की का कोई भेद नहीं होता और न ही होना चाहिए। फिर भी हमारे सनातन धर्म में हमारे शाश्त्र और वेद इस बात का प्रमाण देते है की पित्र पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का पहला अधिकारी पुत्र ही होता है।  इस्त्री में सेहेनशीलता का गन होता है तो पुरुष में बड़े से बड़े दुःख को सेहेन करने की अपार शक्ति होती है। यही कारण का की स्त्रियो का शमशान जाना भी वर्जित होता है।  ईश्वर ने जो भी नियम बनाये उन सभी नियमो को शास्त्रों में समाहित कर दिया जिससे मनुष्य शास्त्रोक...

पूर्वजों का श्राद्धकर्म करना आवश्यक क्यों ?

पितृपक्ष अर्थात वह समय जो हमे उनके लिए कुछ करने का अवसर प्रदान करता है जिनकी वजह से आज हमारा अस्तित्व है अर्थात हमारे पूर्वज। यदि हमारे पूर्वज न होते तो आज हम भी ना होते, न ही ये परिवार होता, न यह सुख, समृद्धि, वैभव और ये जीवन ही होता। पितृ पक्ष में पितरो की अपनी सन्तानो से आशा और उनकी सन्तानो के कर्तवो की समस्त पौराणिक जानकारी आज आपको इस लेख के माध्यम से प्राप्त होगी।  Pitra Paksha विशेष महत्त्व | P itru Paksha Rituals ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है। कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। ये लहरें, तरंगें न केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती हैं। श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति सद्गति, मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है। इसके अलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।  मनुस्मृति में लिखा है- यदाति विधिवत् सम्यक् श्रद्धासमन्वितः ।  तत्त...