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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

गायत्री मंत्र: अनंत काल से परे पवित्र ध्वनि की खोज

गायत्री मंत्र, प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों से निकला एक पवित्र मंत्र है, जो समय को पार करने और हमें परमात्मा से जोड़ने की शक्ति रखता है। अपनी मनमोहक धुन और गहरे अर्थ के साथ, इसने सदियों से दुनिया भर के आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को मोहित किया है। गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्यों? केवल कुछ शक्तिशाली छंदों में, गायत्री मंत्र सार्वभौमिक सत्य के सार को समाहित करता है और हमें अपने आंतरिक ज्ञान को जागृत करने के लिए आमंत्रित करता है। इन पवित्र शब्दों के भीतर एक गहरा रहस्य छिपा है - कहा जाता है कि गायत्री मंत्र में अपार परिवर्तनकारी ऊर्जाएँ हैं। जप करने से या यहां तक कि केवल इसके कंपन को सुनने से, व्यक्ति शांति, आध्यात्मिक विकास और उच्च लोकों से जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव कर सकता है। अपने रहस्यमय गुणों से परे, गायत्री मंत्र हमारे दैनिक जीवन के लिए व्यावहारिक लाभ प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि यह मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देता है और करुणा और प्रेम जैसे दिव्य गुणों को विकसित करता है। इसके दिव्य स्पंदन के प्रति समर्पण करके, हम अपने आप को अनंत संभावन...

वृन्दावन में प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा का अनावरण: भक्ति और ज्ञान

संपूर्ण वृंदावन कृष्ण की भूमि है। कृष्ण का जन्म स्थान है क्योंकि वृंदावन में मथुरा बसा हुवा है और मथुरा में वृंदावन। कृष्ण ने मथुरा की जेल में जन्म लिया और वृंदावन के हर कण में वास किया। कृष्ण के हृदय में राधा ने निवास किया और राधा के हृदय में कृष्ण ने सदा निवास किया। यही कारण है की इतने युगों के बीतने के बाद भी आज कृष्ण के प्रेम की गूंज संपूर्ण वृंदावन में सुनाई पड़ती है राधा के नाम से।  आज जितने भक्त भगवान श्री कृष्ण को पूजते हैं उससे कहीं अधिक भक्त भगवती लाडली श्री राधे के अनुयाई है, जो हर पल राधे-राधे बोलते हैं। वृंदावन में हर किसी के मुख से आपको श्री राधे का नाम सुनाई पड़ जाएगा क्योंकि वह जानते हैं की यदि परम गति को प्राप्त करना है और कृष्ण की कृपा को प्राप्त करना है तो राधा का नाम जपना पड़ेगा। राधा की वो देवी है जिन्होंने कृष्ण के ह्रदय पटल पर सदैव राज किया है।  वृन्दावन: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय पवित्र नगरी वृन्दावन में, शांत मंत्रों और फूलों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू के बीच, एक आध्यात्मिक प्रकाश का उदय हुआ, जिसने अनगिनत भक्तों के दिलों को मंत्रमुग्ध क...

पितृपक्ष विशेष: पिंडदान करने की परंपरा क्यों?

पितृपक्ष विशेष में जानेंगे की पिंडदान करने की परंपरा क्यों है और इसके क्या लाभ हैं? क्या पिंडदान अनिवार्य होता है? पिंडदान न करने से क्या होता है? पिंडदान क्यों करना चाहिए? हिंदूधर्म में पिंडदान की परंपरा वेदकाल से ही प्रचलित है। मरणोपरांत पिंडदान किया जाता है। दस दिन तक दिए गए पिंडों से शरीर बनता है। क्षुधा का जन्म होते ही ग्यारहवें व बारहवें दिन सूक्ष्मजीव श्राद्ध का भोजन करता है। ऐसा माना जाता है कि तेरहवें दिन वह यमदूतों के इशारे पर नाचता हुआ यमलोक चला जाता है। पितरों के मोक्ष के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है और इसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। योगवासिष्ठ में बताया गया है- आदी मृता वयमिति बुध्यन्ते तदनुक्रमात् ।  बंधु पिण्डादिदानेन प्रोत्पन्ना इवा वेदिनः ॥   - योगवासिष्ठ 3/35/27 अर्थात् प्रेत अपनी स्थिति को इस प्रकार अनुभव करते हैं कि हम मर गए हैं और अब बंधुओं के पिंडदान से हमारा नया शरीर बना है। चूंकि यह अनुभूति भावनात्मक ही होती है, इसलिए पिंडदान का महत्त्व उससे जुड़ी भावनाओं की बदौलत ही होता है। ये भावनाएं प्रेतों-पितरों को स्पर्श करती हैं। पिंडदानादि पाकर...

पितृपक्ष विशेष: मृतक का तर्पण क्यों?

पितृपक्ष विशेष में आज हम जानेंगे कि संसार में किसी भी प्राणी के मरने के बाद उसका तर्पण क्यों किया जाता है? तर्पण करने से मृतक के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है।  मृतक का तर्पण जो संसार में आया है उसको एक दिन संसार को छोड़कर जाना पड़ेगा यह सत्य है इसे मानव जानता तो है पर स्वीकार नहीं करना चाहता। सनातन धर्म में मनुष्य के जीवन को 16 संस्कारो में विभक्त किया जाता है जिसमे सोलुवा संस्कार अंतिम संस्कार है जिसे मृतक के पुत्र द्वारा किया जाता है।  यदि मृतक का अंतिम संस्कार पूर्ण विधान से न किया जाए तो जीवात्मा को मुक्ति नहीं मिलती है।  इसीलिए सनातन कॉल से ही ये नियम प्रजापति दक्ष ने बनाया था की जब भी कोई प्राणी संसार में मरेगा तो उसका तर्पण करना अनिवार्य होगा। विधि विधान से किया गया तर्पण जीवात्मा को सद्गति प्रदान करने में सक्षम होता ह्यै।  म नुस्मृति में तर्पण  म नुस्मृति में तर्पण को पितृ-यज्ञ बताया गया है और सुख-संतोष की वृद्धि हेतु तथा स्वर्गस्य आत्माओं की तृप्ति के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण का अर्थ पितरों का आवाहन, सम्मान और क्षुधा मिटाने से ही है।...

पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म पुत्र द्वारा ही क्यों?

आज के इस लेख के माध्यम से आपको ज्ञान होगा कि पितृपक्ष में पुत्र द्वारा किए गए श्राद्ध से पितरों को प्रसन्न का क्यों होती है? पुत्र के द्वारा श्राद्ध किए जाने से क्या लाभ है? पुत्र द्वारा ही श्राद्ध   आधुनिक समय में लिंग भेद को नहीं माना जाता और हमारा भी यही मानना है कि पुत्र या पुत्री में कोई फर्क नहीं होता। पुत्र और पुत्री समान रूप से अपने परिवार और समाज के प्रेम के अधिकारी होते हैं। जिस प्रकार माता-पिता का संबंध उनके पुत्र से होता है ठीक उसी प्रकार पुत्री से भी प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होता है।  संतान के विषय में लड़का और लड़की का कोई भेद नहीं होता और न ही होना चाहिए। फिर भी हमारे सनातन धर्म में हमारे शाश्त्र और वेद इस बात का प्रमाण देते है की पित्र पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का पहला अधिकारी पुत्र ही होता है।  इस्त्री में सेहेनशीलता का गन होता है तो पुरुष में बड़े से बड़े दुःख को सेहेन करने की अपार शक्ति होती है। यही कारण का की स्त्रियो का शमशान जाना भी वर्जित होता है।  ईश्वर ने जो भी नियम बनाये उन सभी नियमो को शास्त्रों में समाहित कर दिया जिससे मनुष्य शास्त्रोक...

पूर्वजों का श्राद्धकर्म करना आवश्यक क्यों ?

पितृपक्ष अर्थात वह समय जो हमे उनके लिए कुछ करने का अवसर प्रदान करता है जिनकी वजह से आज हमारा अस्तित्व है अर्थात हमारे पूर्वज। यदि हमारे पूर्वज न होते तो आज हम भी ना होते, न ही ये परिवार होता, न यह सुख, समृद्धि, वैभव और ये जीवन ही होता। पितृ पक्ष में पितरो की अपनी सन्तानो से आशा और उनकी सन्तानो के कर्तवो की समस्त पौराणिक जानकारी आज आपको इस लेख के माध्यम से प्राप्त होगी।  Pitra Paksha विशेष महत्त्व | P itru Paksha Rituals ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है। कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। ये लहरें, तरंगें न केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती हैं। श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति सद्गति, मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है। इसके अलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।  मनुस्मृति में लिखा है- यदाति विधिवत् सम्यक् श्रद्धासमन्वितः ।  तत्त...

Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu Hoti Hai | सर्वप्रथम गणेश पूजन क्यों | गणेश जी की आरती

हिंदूधर्म में किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेशजी की पूजा करना आवश्यक माना गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व्  ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व् विघ्नो का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है।  Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu गणेश  का अर्थ है गणो का ईश अर्थात गणो का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान कार्य में गणेश जी के गुण- कोई विघ्न न पहुंचाएं, इसलिए उनकी आराधना करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व श्रीगणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता- वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः ।  निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ अर्थात विशाल आकार और टेढ़ी सूंड वाले, करोड़ों सूर्यो के समान तेज वाले हे देव (गणेश जी): मेरे समस्त कार्यों को सदा विघ्नरहित पूर्ण (सम्पन्न) करें। वेदों में भी गणेश की महत्ता व उनके विघ्नहर्ता स्वरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व आवाहन करते हुए कहा गया है- गणानां त्वा गणपतिं...

Vishnu Shodasa Nama Stotram With Hindi Lyrics

विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति   विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान विष्णु को समर्पित एक महामंत्र के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में त्रिदेवो में भगवान श्री हरि विष्णु अर्थात भगवान नारायण एक विशेष स्थान रखते हैं। सभी प्राणियों को उनके कष्टों से मुक्ति पाने के लिए, उनकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु को समर्पित विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् का  प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।  विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान् श्री हरी के 16 नमो को मिलकर बनाया गया एक महामंत्र है जिकी शक्ति अतुलनीय है। जो साधक प्रतिदिन स्तोत्र का जाप करता है, भगवान श्री विष्णु उस साधक के चारों तरफ अपना सुरक्षा कवच बना देते हैं। उस सुरक्षा कवच के कारण साधक के भोजन से उसकी औषधियां तक भगवान की कृपा से ओतप्रोत हो जाती है और साधक भगवान के संरक्षण को प्राप्त करता है। अतः विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम को साधक को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ जपना चाहिए क्योंकि नियमित रूप से साधक द्वारा पाठ करने से साधक के समस्त रोगो का नाश हो जाता है और साधक दीर्घायु को प्राप्त करता है।  Vishnu Shodasa Nama Sto...

पद्मिनी एकादशी माहात्म्य: अधिक लौंध मास में महत्व

॥ अथ पद्मिनी एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान! अब आप अधिक (लौंद) मास शुक्लपक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइये। उस एकादशी का क्या नाम है तथा उसके व्रत की विधि क्या है सो समझाकर कहिये । श्रीकृष्ण बोले कि हे राजन अधिक (लौंद) मास की एकादशी का नाम पद्मिनी है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को जाता है। हे राजन! इस विधि को मैंने सबसे प्रथम नारदजी से कहा था। यह विधि अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाली है। आप ध्यान पूर्वक श्रवण कीजिए। दशमी के दिन व्रत को शुरू करना चाहिये और कांसे के पात्र में भोजन, मांस, मसूर, चना, कोदों, शहद, शाक और पराया अन्न दशमी के दिन नहीं खाना चाहिए। इस दिन हविष्य भोजन करना चाहिए और नमक भी नहीं खाना चाहिये। उस रात्रि को भूमि पर शयन करना चाहिये और ब्रह्मचर्य पूर्वक रहना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर दाँतुन करनी चाहिये और बारह कुल्ला करके पुण्य क्षेत्र में स्नान करके चला जाना चाहिए। उस समय गौमय मृतिका, तिलकुश तथा आमल की चूर्ण से विधि पूर्वक स्नान करना चाहिए। स्नान करने से प्रथम शरीर में ...

माघ शुक्ल पक्ष जया एकादशी व्रत कथा माहात्म्य सहित

॥ अथ जया एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले-हे भगवान! आपने माघ माह की कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है। अब कृपा कर माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिये। इस एकादशी का नाम, विधि और देवता क्या और कौन सा है? श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे राजन! माघ माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम जया है। इस एकादशी व्रत से मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से छूट जाते हैं और अन्त में उनको स्वर्ग प्राप्ति होती है। इस व्रत से मनुष्य कुयोनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है। अतः इस एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिये। हे राजन! मैं एक पौराणिक कथा कहता हूँ। जया एकादशी व्रत कथा एक समय की बात है जब देवराज इंद्र स्वर्गलोक में अन्य देवताओं के साथ गायन और नृत्य का आनंद ले रहे थे। उस सभा में गंदर्भो में प्रसिद्ध पुष्पवन्त नाम का गंदर्भ अपनी पुत्री के साथ उपस्थित था।  देवराज इंद्र की सभा में चित्रसेन की पत्नी मलिन अपने पुत्र के साथ जिसका नाम पुष्पवान था और पुष्पवान भी अपने लड़के माल्यवान के साथ उपस्थित थे। उस समय गंधर्भो में सुंदरता से भी सुन्दरतम स्त्र...