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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों है?

भगवान अय्यप्पा स्वामी Ayyappa Sharnam   सबरीमाला मंदिर भगवान अय्यप्पा को समर्पित है और हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाते है। श्री भगवान अय्यप्पा स्वामी की भक्ति में अटूट आस्था देखने को मिलती है। भगवान अय्यप्पा स्वामी को हरिहर का पुत्र माना जाता है अर्थात इनको भगवान शिव और विष्णु स्वरूपनी मोहिनी का पुत्र माना जाता है।  हर मंदिर की अपनी परंपराएं होती है। जिनका सम्मान प्रत्येक श्रद्धालु को करना चाहिए। सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में भी कुछ नियम है जिनको लेकर कई विवाद सामने आ चुके है। सबरीमाला मंदिर Sabarimala Temple  केरल के पथानामथिट्टा ज़िले में स्थित सबरीमाला मंदिर में प्रजनन आयु की महिलाओं और लड़कियों को पारंपरिक रूप से पूजा करने की अनुमति नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां विराजमान भगवान अयप्पा को 'चिर ब्रह्मचारी' माना जाता है। इस वजह से रजस्वला महिलाएं मंदिर में उनके दर्शन नहीं कर सकतीं। मान्यता है कि मासिक धर्म के चलते महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकतीं, इसलिए 10 से 50 साल की मह

Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu Hoti Hai | सर्वप्रथम गणेश पूजन क्यों | गणेश जी की आरती

हिंदूधर्म में किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेशजी की पूजा करना आवश्यक माना गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व्  ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व् विघ्नो का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है। 

Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu

गणेश  का अर्थ है गणो का ईश अर्थात गणो का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान कार्य में गणेश जी के गुण- कोई विघ्न न पहुंचाएं, इसलिए उनकी आराधना करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व श्रीगणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता-

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः । 
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

अर्थात विशाल आकार और टेढ़ी सूंड वाले, करोड़ों सूर्यो के समान तेज वाले हे देव (गणेश जी): मेरे समस्त कार्यों को सदा विघ्नरहित पूर्ण (सम्पन्न) करें।
वेदों में भी गणेश की महत्ता व उनके विघ्नहर्ता स्वरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व आवाहन करते हुए कहा गया है-

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपश्रवस्तमम् । 
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूत्तिभिः सीद सादनम् ॥
ऋग्वेद-2/23/1

अर्थात् 'तुम देवगणों के प्रभु होने से गणपति हो, ज्ञानियों में श्रेष्ठ हो, उत्कृष्ट रीतिवालों में श्रेष्ठ हो। तुम शिव के प्रिय पुत्र हो, अतः हम आदर से तुम्हारा आह्वान करते हैं। हे ब्रह्मणस्पते गणेश! आप अपनी समस्त दिव्य शक्तियों के साथ इस आसन पर विराजमान हो जाइये।

दूसरे मंत्र में कहा गया है-

नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम्। 
न ऋते त्वत् क्रियते किं चनारे महामर्क मध्वार्क मघवंचित्रमर्च ॥
-ऋग्वेद-10/112/9

अर्थात् 'हे गणपते! आप देव आदि समूह में विराजिए, क्योंकि समस्त बुद्धिमानों में आप ही श्रेष्ठ हैं। आपके बिना समीप या दूर का कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता। हे पूज्य आदरणीय गणपते! हमारे सत्कार्यों को निर्विघ्न पूर्ण करने की कृपा कीजिए।

गणेशजी विद्या के देवता हैं। साधना में उच्चस्तरीय दूरदर्शिता आ जाए, उचित-अनुचित, कर्त्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसीलिए सभी शुभकार्यों में गणेशपूजन का विधान बनाया गया है। श्री गणेश की पूजा का विधान सर्वोपरि क्यों है इसके पीछे कई पौराणिक कथाये आती है जिनमे से प्रमुख कथा निम्नलिखित है-

पद्मपुराण के अनुसार- सृष्टि के आरंभ में जब यह प्रश्न उठा कि प्रथमपूज्य किसे माना जाए, तो समस्त देवतागण ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने कहा कि जो कोई संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही प्रथम पूजा जाएगा। इस पर सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा है और उनका शरीर मोटा होने के कारन उनको परिक्रमा करने में समस्या उत्पन्न होने लगी। इस समस्या को सुलझाया देवर्षि नारद ने। नारद ने उन्हें जो उपाय सुझाया, उसके अनुसार गणेशजी ने भूमि पर 'राम' नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की और ब्रह्माजी के पास सबसे पहले पहुंच गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें प्रथमपूज्य बताया क्युकी भगवान् श्री राम का नाम उनका शब्द स्वरुप है और श्री राम में ही अखिल ब्रह्माण्ड व्याप्त है। 
शिवपुराण की एक अन्य कथा के अनुसार एक बार समस्त देवता भगवान् शंकर के पास यह समस्या लेकर पहुंचे कि किस देव को उनका मुखिया चुना जाए। भगवान् शिव ने यह प्रस्ताव रखा कि जो भी पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके कैलास लौटेगा, वही अग्रपूजा के योग्य होगा और उसे ही देवताओं का स्वामी बनाया जाएगा। श्री गणेश जानते थे की उनका वहां चूहा है जो अत्यंत धीमी गति से चलता है इसलिए परिक्रमा में वो जीत नहीं पाएंगे। इसलिए उन्होंने अपनी अतुलनीय बुद्धि का परिचय देते हुवे अपने माता-पिता अर्थात देवो के देव महादेव और माता पारवती की तीन परिक्रमा पूर्ण की और अपने हाथो को जोड़कर अपने  माता-पिता के चरणों में नतमस्तक हो गए। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढ़कर संसार में अन्य कोई इतना चतुर नहीं है। माता-पिता की तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा पुण्य है। इसलिए जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी। बस, तभी से गणेशजी अग्रपूज्य हो गए।

एक बार देवताओं ने गोमती के तट पर यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमें अनेक विघ्न पड़ने लगे। यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सका उदास होकर देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु से इसका कारण पूछा। दयामय चतुरानन ने पता लगाकर बताया कि इस यज्ञ में श्रीगणेशजी विघ्न उपस्थित कर रहे हैं। यदि आप लोग विनायक को प्रसन्न कर लें, तब यह पूर्ण हो जाएगा। विधाता की सलाह से देवताओं ने स्नान कर श्रद्धा और भक्तिपूर्वक गणेश का पूजन किया। विघ्नराज गणेशजी की कृपा से यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ। उल्लेखनीय है कि महादेव ने भी त्रिपुर वध के समय पहले गणेशजी का पूजन किया था।

गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश,  जय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेशजय गणेश देवा ।
माता जाँकि पार्वती, पिता महादेवा ॥

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