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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

पौष मास पुत्रदा एकादशी व्रत कथा हिंदी | पौष मास पुत्रदा एकादशी महात्म कथा हिंदी

पुत्रदा एकादशी कब है? पौष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी व्रत का प्रारंभ कैसे करे? पौष पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। पूजा से पहले घर को गंगाजल से शुद्ध कर लें। फिर मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा पीले रंग के साफ कपड़े पर स्थापित करें। भगवान विष्णु के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। पुत्रदा एकादशी के दिन श्रीहरी की पूजा-व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का क्या लाभ है? |  पुत्रदा एकादशी महात्म पुत्रदा एकादशी के  व्रत को करने से श्रीहरि विष्णु के अलावा मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता है कि यदि कोई जातक इस व्रत को विधि पूर्वक करता है, तो जल्द ही उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसके अलावा लंबे समय से रुके हुए काम पूरे होते हैं।  इस व्रत को करने से श्रद्धालुओं को तेजस्वी व दीर्घायु संतान की प...

होई की असली कहानी | अहोई अष्टमी की सच्ची कहानी | स्याऊ माता की सच्ची कहानी | बिन्दायकजी की कहानी

अहोई अष्टमी की दुर्लभ कथा एक साहूकार का सात बेटा, सात बहुवां और एक बेटी थी। एक दिन सातू बहूवां और बेटी खन्द माटी ल्या न गई। माटी खोद न क समय नणद क हाथ स स्याऊ का बच्चा मरगा। स्याऊ माता बोली की अब म तेरी  कूख  बांदूगी। नणद आपकी सारी भाभियां न कयो कि मे र बद ल कूख बंधवाल्यो। छ भाभियां तो नटगी, पर छोटी भाभी थी, जिकी सोची कि नहीं बंधवागां तो सासुजी नाराज हो जासी, सो बा आपकी कृख बंधवाली दिक टाबर होता और होई सा त क दिन मर जाता।  एक दिन वा पण्डितां न बुला कर पुछ्यो कि यो के दोष ह, मे र टावर होतां ही मर जा व पण्डित बोल्या कि तूं सुरही गाय की सेवा किया कर, बा स्याऊ माता की भावली ह, जिको तेरी कूख छुड़वा देसी, जद ही तेरा टावर जीसी वा खूब सुदियां उठ कर सुरही गाय को सारो काम कर क आ जाती। एक दिन गऊ माता सोची कि आजकल कुण मेरो इतनो काम कर ह, बहूवां तो लड़ाई करती रहती थी। आज देखनो चाहिये कि कुनसी काम कर ह। गऊ माता खूब सुदियां उठ कर बैठगी, देख तो साहूकार क बेटा की बहू सारी काम कर ह। गऊ माता पूछी कि त न के चाहिये ह, सो मेरो इतनो काम कर ह वा बोली की मन बाचा दे, गऊ माता ऊन बाचा दे...

मतंग ऋषि कि शिष्या शबरी | माता शबरी की कहानी | नवधा भक्ति का दान

त्रेता की शबरी के राम | Treta Ki Shabri Ke Ram भगवान श्री राम के असंख्य भक्त हुए हैं। उन भक्तों की भक्ति भी अपरंपार रही है और भक्तों की भक्तों के अनुरूप ही भगवान का अपने भक्तों के प्रति प्रेम भी करुणा की खान के समान ही रहा है क्योंकि भगवान करुणामय हैं। भगवान अपने भक्तों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। किसी भी प्रकार के कष्ट को सहन कर सकते हैं। यही कारण है कि भारत के दक्षिण में रहने वाली एक भीलनी जिसका नाम शबरी था, उसको दर्शन देने के लिए भगवान ने वनवास को स्वीकार कर लिया।   साधारण मनुष्य ये समझता है कि श्री राम ने दशरथ जी के वचन को निभाने के लिए वनवास को स्वीकार किया। कोई यह समझता है कि श्री राम ने रावण का वध करने के लिए वनवास को स्वीकार किया परंतु इस गूढ़ रहस्य को बहुत कम लोग समझ पाते हैं कि भगवान ने अपनी भक्त शबरी को दर्शन देने के लिए बनवास को स्वीकार  किया था।  भगवान की भक्त शबरी भील समुदाय से आती थी। शबरी के पिता भीलो के मुखिया थे और शबरी के गुरु महर्षि मतंग थे। उन्हीं के नाम पर दक्षिण में मतंगवन पढ़ता था। उसी मतंगवान में शबरी की एक छोटी सी कुटिया थी।  उस कुटिया म...

त्याग की कथा रामकथा | Tyag Ki Katha Ram Katha

Sarvottam Tyag Ki Katha प्रिय मित्रों, आज की कथा हम सभी के हृदय में त्याग की भावना के दीप को प्रज्वलित करने वाली है। दया और त्याग ये इसे गुण है जो हर प्राणी में होने चाहिए। शायद इसी लिए भगवान ने अवतार लेकर हम सभी को अपना मर्यादा पुरुषोत्तम का रूम दिखाया और दया और त्याग के aneko उदाहरण प्रस्तुत कर हम सभी के जीवन में नवचेतना का संचार करने का प्रयास किया। ये घटना त्रेतायुग की है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था। वनवास केवल राम को मिला था पर सती नारी होने के कारण श्री राम के साथ सीता जी भी वनवास को गई और अपने बड़े भाई को अपना भगवान मानने वाले छोटे भाई लक्ष्मण जी भी अपने भाई भाभी के साथ 14 वर्ष तक वनवास के दुखो को झेलते हुवे उनकी सेवा करते रहे। पिता के वचन का मान रखने के लिए से राम ने अपने राजपाठ का त्याग किया, अपने सुख और वैभव का त्याग किया। ठीक वैसे ही सीता जी और लक्ष्मण जी ने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने अपने सुखो का त्याग कर दिया और सब के सब चौदह वर्ष के लिए वनवास को चले गए। धीरे धीरे समय बीतता चला गया। महाराज दशरथ का स्वर्गवास हो गया और मंथरा नई को जेल...

शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती हैं? | शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा क्या है?

Sharad Purnima Mahatma Katha प्रणाम मित्रों, आप सभी का आज शरद पूर्णिमा की अमृत मई रात्रि में स्वागत है। शरद पूर्णिमा का पर्व अपने आप में सनातन धर्म के लिए विशेष महत्व रखता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव अपनी सोलह कलाओं के साथ विद्यमान रहते है और उनके तेज से अमृत रूपी वर्षा का होती रहती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी का समुद्र से अवतरण हुवा था। अतः शरद पूर्णिमा को माता महा लक्ष्मी की विशेष कृपा को प्राप्त होती है। शरद पूर्णिमा को चंद्र की कांति और चमक देखते ही बनती है। यही कारण है की लोग शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र देव को खीर का भोग लगाते है क्योंकि ऐसी मान्यता है की इस दिन खुले आसमान के नीचे चंद्रमा को खीर का भोग लगाने से चंद्रमा की चांदनी से अमृत वर्षा होती है और उस अमृत वर्षा से खीर भी अमृत मई हो जाती है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन माता महालक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पपृथ्वी पर भ्रमण करती है और जो भी भक्त इस दिन अपने घर में खूब रोशनी रखता है और रात जाग कर माता का भजन कीर्तन करता है, माता महालक्ष्मी उस पर अपनी कृपा अवश्य करती है ...

नवरात्रि चतुर्थ दिवस माता कूष्मांडा पूजन | नव दुर्गा का चौथा स्वरूप माता कूष्मांडा

Navratri Fourth Day Pujan Mata Kushmanda  प्रिय भक्तों नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में हम माता आदिशक्ति की जिस स्वरूप की पूजा करते हैं उसे हम सभी माता कुष्मांडा के नाम से जानते हैं। माता कुष्मांडा के विषय में जो पुराणों में कथा व्याप्त है उसके अनुसार माता कुष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी।  माता कुष्मांडा के नाम की भी अपनी एक अलग महिमा है। माता को कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है और कुम्हड़ा प्रिय होने के कारण ही माता का नाम कुष्मांडा पड़ा। माता को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ा अत्यंत प्रिय है।  माता को भोग लगाने लगाते समय उन्हें विविध प्रकार के व्यंजनों को अर्पित करना चाहिए। माता के आशीर्वाद से साधक स्वस्थ शरीर को प्राप्त करके दीर्घायु हो सकता है। इस दिन माता की पूजा अर्चना करते समय माता से अच्छे स्वास्थ्य और चिरंजीवी होने की कामना करनी चाहिए।  माता को योग साधना की देवी माना जाता है। जो साधक योग साधना में लीन होते हैं, ध्यान साधना में लीन होते हैं, उन सभी साधकों को अपनी योग साधनाओं को सि...

नवरात्रि तृतीय दिवस माता चंद्रघंटा पूजन | नव दुर्गा का तीसरा स्वरूप माता चंद्रघंटा

Navratri Third Day Pujan Mata Chandraghanta  प्रिय मित्रों नवरात्रि के तृतीय दिवस में आप सभी का स्वागत है। आप सभी को जानकर हर्ष होगा कि नवरात्रि के तीसरे दिन हम सभी माता चंद्रघंटा की उपासना करते हैं। माता चंद्रघंटा का यह स्वरूप माता आदिशक्ति के ही 9 रूपों में से एक स्वरूप है जिसे हम सभी चंद्रघंटा के रूप में जानते हैं।  माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा विराजमान है। इसीलिए माता का नाम चंद्रघंटा पड़ा है। माता का स्वरूप परम शांति और शांति दायक माना जाता है। माता का ध्यान रखते हुए जो भी साधक माता की आराधना करता है और माता को प्रसन्न करने का प्रयास करता है, उसकी भावना से प्रसन्न होकर माता उसके कुल को तार देती है। उसे परम सौभाग्यवान बनाती है।  माता चंद्रघंटा के तीन नेत्र और 10 भुजाएं शोभा पाती हैं। माता ने अपनी 10 भुजाओं में अनेक अस्त्र-शस्त्र धारण कर रखे हैं। जैसे त्रिशूल, खड़क, धनुष, बाण, चक्र, गदा इत्यादि। माता का वाहन सिंह है। माता का स्वरूप सदैव युद्ध के लिए तैयार रहने वाला है।  माता के मस्तक पर विराजमान घंटे के आकार के आधे चंद्र से जो ध्वनि निकलती है उसके...

नवरात्रि षष्टम दिवस माता कात्यायिनी पूजन | नव दुर्गा का छठा स्वरूप माता कात्यायिनी

Navratri Sixth Day Pujan Mata Katyayini  नमस्कार दोस्तों, नवरात्र के षष्टम दिवस अर्थात छठे दिन माता आदिशक्ति के जिस स्वरूप कि हम पूजा करते हैं उसे हम सभी माता कात्यायिनी के नाम से जानते हैं। माता कात्यायिनी को ही सारा संसार बे माता के नाम से जानता है।  माता कात्यायिनी के जन्म के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार महर्षि कात्यायन ने घोर तपस्या करके माता आदिशक्ति को प्रसन्न किया कि वे उनके घर पुत्री रूप में जन्म लें तब माता ने प्रकट होकर महर्षि कात्यायन की पुकार सुनी और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह महर्षि कात्यायन के घर में पुत्री रत्न के रूप में उत्पन्न होंगी। इसलिए महर्षि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायिनी  पड़ा।  माता कात्यायिनी को शहद अत्यंत प्रिय है। इसलिए भक्तगण माता कात्यायिनी की प्रसन्नता के लिए अलग-अलग स्वरूपों में माता को शहद का भोग लगाते हैं। माता कात्यायिनी को ही महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।  जब महिषासुर के अत्याचारों से पीड़ित होकर समस्त देवता यहां-वहां भटक रहे थे तब उन देवताओं की पुकार ...

नवरात्रि द्वितीय दिवस माता ब्रह्मचारिणी पूजन | नव दुर्गा का दूसरा स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी

Navdurga-Dwitiya-Swaroop-Mata-Brahmacharini प्रणाम भक्तों, नवरात्रि के द्वितीय दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता आदिशक्ति के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा का विधान है। माता ब्रह्मचारिणी माता पार्वती का ही एक रूप है। माता ब्रह्मचारि णी का रंग गौर वर्ण का माना जाता है। यही कारण है कि माता को श्वेत वस्त्र अत्यधिक प्रिय हैं। माता को श्वेत वस्तु का ही भोग भी लगाया जाता है। माता के स्वरूप के दर्शन करने से साधक के विभिन्न रोग नष्ट हो जाते हैं। उसे असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। नवरात्रि के दूसरे दिन में माता ब्रह्मचारिणी की पूजा पूर्ण विधि विधान के साथ करनी चाहिए।  शिव महापुराण के अनुसार जब माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया तब माता के उस कठोर तप वाले स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना गया अर्थात ब्रह्मचारिणी माता वही हैं जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।  माता के स्वरूप की विशिष्टता इस बात में है कि माता के दाएं हाथ में एक माला और बाएं हाथ में माता ने कमंडल को धारण कर रखा है। पौराणिक मान्यताओं के...

नवरात्रि प्रथम दिवस माता शैलपुत्री पूजन | नव दुर्गा का प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री

Navdurga-Pratham-Swaroop-Mata-Shailputri नमस्कार मित्रों, नवरात्रि के प्रथम दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि माता आदिशक्ति को समर्पित उनके नौ स्वरूपों का दिन माना जाता है। नवरात्र के 9 दिन में माता आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा पूर्ण विधि विधान के साथ की जाती है।  शक्ति स्वरूपणी  माता आदिशक्ति का प्रथम स्वरूप जिसे हम माता शैलपुत्री के रूप में जानते हैं उन्हीं की उपासना नवरात्रि के पहले दिवस पर की जाती है अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिवस की देवी माता शैलपुत्री मानी जाती हैं।  माता शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। इसीलिए इनका नाम शैल पड़ा है। माता शैलपुत्री ने ही अपने पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। उस जन्म में उनके पिता प्रजापति दक्ष द्वारा शिव का अपमान किए जाने पर माता सती ने आत्मदाह कर लिया था। वही माता सती अपने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में जन्मी और उनके पिता हिमालय राज हुए।  माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। माता अपने एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे हाथ में कमल को धारण किए हुए हैं। माता के स्वरूप की बात...