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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

नवरात्रि चतुर्थ दिवस माता कूष्मांडा पूजन | नव दुर्गा का चौथा स्वरूप माता कूष्मांडा

Navratri Fourth Day Pujan Mata Kushmanda 

प्रिय भक्तों नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि के चतुर्थ दिवस में हम माता आदिशक्ति की जिस स्वरूप की पूजा करते हैं उसे हम सभी माता कुष्मांडा के नाम से जानते हैं। माता कुष्मांडा के विषय में जो पुराणों में कथा व्याप्त है उसके अनुसार माता कुष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति की थी। 

माता कुष्मांडा के नाम की भी अपनी एक अलग महिमा है। माता को कुम्हड़े की बलि अत्यंत प्रिय है और कुम्हड़ा प्रिय होने के कारण ही माता का नाम कुष्मांडा पड़ा। माता को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ा अत्यंत प्रिय है। 

माता को भोग लगाने लगाते समय उन्हें विविध प्रकार के व्यंजनों को अर्पित करना चाहिए। माता के आशीर्वाद से साधक स्वस्थ शरीर को प्राप्त करके दीर्घायु हो सकता है। इस दिन माता की पूजा अर्चना करते समय माता से अच्छे स्वास्थ्य और चिरंजीवी होने की कामना करनी चाहिए। 

माता को योग साधना की देवी माना जाता है। जो साधक योग साधना में लीन होते हैं, ध्यान साधना में लीन होते हैं, उन सभी साधकों को अपनी योग साधनाओं को सिद्ध करने के लिए और सिद्धियां प्राप्त करने के लिए माता कुष्मांडा की ही आराधना करनी चाहिए। 

माता कुष्मांडा को माता अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। यही कारण है कि माता प्राणियों की  उधरअग्नि को शांत करती है। माता को भोगो में सबसे प्रिय भोग मालपुए का भोग लगता है। जो भी साधक मालपुए का भोग माता को अर्पित करता है माता उसके जीवन के समस्त कष्टों का निवारण कर देती है और उस पर अपनी कृपा प्रदान करती है। 

माता कुष्मांडा को हरा रंग अति प्रिय है। अतः माता की पूजा करते समय हरे रंग के आसन पर ही माता को विराजमान करवाना चाहिए। माता कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए साधक को माता कुष्मांडा के मंत्र को पढ़ना चाहिए और पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ माता का ध्यान लगाना चाहिए। 

साधक को बोलना चाहिए:

ॐ या देवी सर्वभूतेषु कुष्मांडा रूपेण संस्थिता,

 नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः 

इस मंत्र का जाप करके माता कुष्मांडा के चरणों में नतमस्तक होकर साधक को अपना सर्वस्व माता के चरणों में अर्पित कर देना चाहिए। इसमें तनिक भी संदेह नहीं की यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ माता के चरणों में समर्पित हो जाता है तो माता उसके समस्त संकटों को हर लेती है, उसका कल्याण करती है। उसे स्वस्थ शरीर और दीर्घायु प्रदान करती है। सिर्फ इतना ही नहीं माता साधक के साथ-साथ उसके संपूर्ण परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखती है। 

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