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Vishnu Sahasranama Stotram in Sanskrit

Vishnu Sahasranama Stotram विष्णु सहस्रनाम , भगवान विष्णु के हज़ार नामों से बना एक स्तोत्र है। यह हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र और प्रचलित स्तोत्रों में से एक है। महाभारत में उपलब्ध विष्णु सहस्रनाम इसका सबसे लोकप्रिय संस्करण है। शास्त्रों के मुताबिक, हर गुरुवार को विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से जीवन में अपार सफलता मिलती है। इससे भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि आती है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से मिलने वाले फ़ायदे: मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य, और सौभाग्य मिलता है। बिगड़े कामों में सफलता मिलती है। कुंडली में बृहस्पति के दुष्प्रभाव को कम करने में फ़ायदेमंद होता है। भौतिक इच्छाएं पूरी होती हैं। सारे काम आसानी से बनने लगते हैं। हर ग्रह और हर नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है । विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने के नियम: पाठ करने से पहले पवित्र होना ज़रूरी है। व्रत रखकर ही पाठ करें। व्रत का पारण सात्विक और उत्तम भोजन से करें। पाठ करने के लिए पीले वस्त्र पहनें। पाठ करने से पहले श्रीहरि विष्णु की विधिवत पूजा

त्याग की कथा रामकथा | Tyag Ki Katha Ram Katha

Sarvottam Tyag Ki Katha

प्रिय मित्रों, आज की कथा हम सभी के हृदय में त्याग की भावना के दीप को प्रज्वलित करने वाली है। दया और त्याग ये इसे गुण है जो हर प्राणी में होने चाहिए। शायद इसी लिए भगवान ने अवतार लेकर हम सभी को अपना मर्यादा पुरुषोत्तम का रूम दिखाया और दया और त्याग के aneko उदाहरण प्रस्तुत कर हम सभी के जीवन में नवचेतना का संचार करने का प्रयास किया।

ये घटना त्रेतायुग की है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था। वनवास केवल राम को मिला था पर सती नारी होने के कारण श्री राम के साथ सीता जी भी वनवास को गई और अपने बड़े भाई को अपना भगवान मानने वाले छोटे भाई लक्ष्मण जी भी अपने भाई भाभी के साथ 14 वर्ष तक वनवास के दुखो को झेलते हुवे उनकी सेवा करते रहे।
पिता के वचन का मान रखने के लिए से राम ने अपने राजपाठ का त्याग किया, अपने सुख और वैभव का त्याग किया। ठीक वैसे ही सीता जी और लक्ष्मण जी ने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने अपने सुखो का त्याग कर दिया और सब के सब चौदह वर्ष के लिए वनवास को चले गए।
धीरे धीरे समय बीतता चला गया। महाराज दशरथ का स्वर्गवास हो गया और मंथरा नई को जेल में डाल दिया गया। भरत जी नंदी ग्राम में वनवासी का वेश धारण कर राम जी की खड़ा को सिघासन पर रख के नंदी ग्राम से ही राजपाठ चलाने लगे।
ऐसे करते करते तेरह वर्ष बीत गए तब अचानक एक दिन माता कौशल्या सो रही थी कि तभी महल की छत पर किसी के चलने की आवाज आने लगी। माता को ताजुब हुवा की इतनी रात को महल की छत पे कौन हो सकता है। जब माता ने दासियो को देखने के लिए भेजा तब मालूम पड़ा कि महल की छत पर श्रुत्कीर्ति जी घूम रही थी।
इतनी रात को श्रुत्कीर्त को महल की छत पर अकेला घूमते देख माता कौशल्या को बहुत अचंभा हुवा और उन्होंने श्रुत्कीर्ति को अपने पास बुलाकर पूछा की तुम इस वक्त महल की छत पर अकेली क्यों घूम रही हो, शत्रुघ्न कहा है?
तब श्रुत्कीर्ति जो माता को बोलते बोलते भावुक हो उठी और बोली की हे माता स्वामी को देखे तो तेरह वर्ष बीत गए। ये सब सुनते ही माता कौशल्या की अश्रु धारा बहने लगी।
माता ने द्वारपाल को आज्ञा दी की हम अभी इसी वक्त राजकुमार शत्रुघ्न को ढूंढने के लिए जायेंगे। जब माता शत्रुघ्न की खोज के लिए महल से बाहर निकल गई तब मालूम पड़ा कि अयोध्या के जिस गेट के बाहर नंदी ग्राम पड़ता है और जिसमे भरत जी तपस्वी को भांति निवास करते है, उसी गेट के बाहर एक पत्थर की शिला पर शत्रुघ्न की भी सोते हुवे दिखाई पड़े।
माता कौशल्या शत्रुघ्न की के बगल में बैठ कर उनके सिर पर हाथ फेरने लगी और शत्रुघ्न जी की नींद खुल गई। उन्होंने कहा की माता इतनी रात गए आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया। मुझको अपने पास बुला लिया होता? 
माता बोली की की तुम पिछले तेरह वर्ष से ये दुख और पीड़ा क्यों सहन कर रहे हो। तब शत्रुघ्न जी बोले की हे माता भईया राम पिता जी के वचन की लाज केलिए वनवास को चले गए। भाभी पति धर्म निभाते वनवास को चली गई। लक्ष्मण भईया उन दोनो की सेवा के लिए वनवास चले गए और उन तीनो ने भयंकर दुखो का भोग होगा। सिर्फ इतना ही नहीं भरत भईया ने अयोध्या में रहते हुवे तेरह वर्ष वनवास में बीता दिए है।
अब आप ही बताइए माता किंक्या ये राज पाठ, ये सारा वैभव, ये राजसी सुख, ये धन दौलत सिर्फ मेरे लिए है। जिसका पूरा परिवार वनवास के दुखो को झेल रहा हो, ऐसे व्यक्ति को राजसी सुख का भोग करने का कोई अधिकार नहीं होता। उनका उत्तर सुनकर माता कौशल्या निशब्द रह गई और कुछ न कह सकी। 
रामायण के है पात्र ने अपनी मर्यादा में रहते हुवे ऐसे ऐसे त्याग किए है की हम उनका अनुसरण करने लगे तो हम भी अपने जीवन को सुखी कर सकते है। यही कारण है की रामायण किनराम कथा को त्याग की कथा का नाम दिया जाता है।

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