Skip to main content

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

त्याग की कथा रामकथा | Tyag Ki Katha Ram Katha

Sarvottam Tyag Ki Katha

प्रिय मित्रों, आज की कथा हम सभी के हृदय में त्याग की भावना के दीप को प्रज्वलित करने वाली है। दया और त्याग ये इसे गुण है जो हर प्राणी में होने चाहिए। शायद इसी लिए भगवान ने अवतार लेकर हम सभी को अपना मर्यादा पुरुषोत्तम का रूम दिखाया और दया और त्याग के aneko उदाहरण प्रस्तुत कर हम सभी के जीवन में नवचेतना का संचार करने का प्रयास किया।

ये घटना त्रेतायुग की है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था। वनवास केवल राम को मिला था पर सती नारी होने के कारण श्री राम के साथ सीता जी भी वनवास को गई और अपने बड़े भाई को अपना भगवान मानने वाले छोटे भाई लक्ष्मण जी भी अपने भाई भाभी के साथ 14 वर्ष तक वनवास के दुखो को झेलते हुवे उनकी सेवा करते रहे।
पिता के वचन का मान रखने के लिए से राम ने अपने राजपाठ का त्याग किया, अपने सुख और वैभव का त्याग किया। ठीक वैसे ही सीता जी और लक्ष्मण जी ने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने अपने सुखो का त्याग कर दिया और सब के सब चौदह वर्ष के लिए वनवास को चले गए।
धीरे धीरे समय बीतता चला गया। महाराज दशरथ का स्वर्गवास हो गया और मंथरा नई को जेल में डाल दिया गया। भरत जी नंदी ग्राम में वनवासी का वेश धारण कर राम जी की खड़ा को सिघासन पर रख के नंदी ग्राम से ही राजपाठ चलाने लगे।
ऐसे करते करते तेरह वर्ष बीत गए तब अचानक एक दिन माता कौशल्या सो रही थी कि तभी महल की छत पर किसी के चलने की आवाज आने लगी। माता को ताजुब हुवा की इतनी रात को महल की छत पे कौन हो सकता है। जब माता ने दासियो को देखने के लिए भेजा तब मालूम पड़ा कि महल की छत पर श्रुत्कीर्ति जी घूम रही थी।
इतनी रात को श्रुत्कीर्त को महल की छत पर अकेला घूमते देख माता कौशल्या को बहुत अचंभा हुवा और उन्होंने श्रुत्कीर्ति को अपने पास बुलाकर पूछा की तुम इस वक्त महल की छत पर अकेली क्यों घूम रही हो, शत्रुघ्न कहा है?
तब श्रुत्कीर्ति जो माता को बोलते बोलते भावुक हो उठी और बोली की हे माता स्वामी को देखे तो तेरह वर्ष बीत गए। ये सब सुनते ही माता कौशल्या की अश्रु धारा बहने लगी।
माता ने द्वारपाल को आज्ञा दी की हम अभी इसी वक्त राजकुमार शत्रुघ्न को ढूंढने के लिए जायेंगे। जब माता शत्रुघ्न की खोज के लिए महल से बाहर निकल गई तब मालूम पड़ा कि अयोध्या के जिस गेट के बाहर नंदी ग्राम पड़ता है और जिसमे भरत जी तपस्वी को भांति निवास करते है, उसी गेट के बाहर एक पत्थर की शिला पर शत्रुघ्न की भी सोते हुवे दिखाई पड़े।
माता कौशल्या शत्रुघ्न की के बगल में बैठ कर उनके सिर पर हाथ फेरने लगी और शत्रुघ्न जी की नींद खुल गई। उन्होंने कहा की माता इतनी रात गए आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया। मुझको अपने पास बुला लिया होता? 
माता बोली की की तुम पिछले तेरह वर्ष से ये दुख और पीड़ा क्यों सहन कर रहे हो। तब शत्रुघ्न जी बोले की हे माता भईया राम पिता जी के वचन की लाज केलिए वनवास को चले गए। भाभी पति धर्म निभाते वनवास को चली गई। लक्ष्मण भईया उन दोनो की सेवा के लिए वनवास चले गए और उन तीनो ने भयंकर दुखो का भोग होगा। सिर्फ इतना ही नहीं भरत भईया ने अयोध्या में रहते हुवे तेरह वर्ष वनवास में बीता दिए है।
अब आप ही बताइए माता किंक्या ये राज पाठ, ये सारा वैभव, ये राजसी सुख, ये धन दौलत सिर्फ मेरे लिए है। जिसका पूरा परिवार वनवास के दुखो को झेल रहा हो, ऐसे व्यक्ति को राजसी सुख का भोग करने का कोई अधिकार नहीं होता। उनका उत्तर सुनकर माता कौशल्या निशब्द रह गई और कुछ न कह सकी। 
रामायण के है पात्र ने अपनी मर्यादा में रहते हुवे ऐसे ऐसे त्याग किए है की हम उनका अनुसरण करने लगे तो हम भी अपने जीवन को सुखी कर सकते है। यही कारण है की रामायण किनराम कथा को त्याग की कथा का नाम दिया जाता है।

Comments

Popular posts from this blog

परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय

सनातन धर्म सदैव से पूजनीय बना हुवा है क्युकी सनातन धर्म मानव जीवन को वो सिद्धांत प्रदान करता है जिनपे चलकर मानव अपने जीवन को शाश्त्रोक्त तरीके से जी सकता है। इसीकारण प्राचीनकाल से ही सम्पूर्ण BHARAT में ऋषि परंपरा चली आ रही है।  हिन्दू धर्म में ऋषियों को ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता है।   जब हम पुराणों और वेदों का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि जब-जब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार धारण किया तब-तब उन्होंने स्पष्ट रूप से समाज को ये संदेश दिया कि संत समाज सदैव ही पूजनीय माना जाता है। आज हम उसी संत समाज में से एक ऐसे दिव्य महापुरुष के बारे में जानेंगे जिनके बारे में जितना भी कहा जाए उसमें कोई भी अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि ये ऐसे दिव्य महापुरुष है जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता के नाम कर दिया।  परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय   स्वामी परमानंद जी महाराज सनातन धर्म और वेदांत वचनों और शास्त्रों के विश्वविख्यात ज्ञाता के रूप में आज संसार के प्रसिद्ध संतों में गिने जाते हैं। स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज ने वेदांत वचन को एक सरल और साधारण भाषा के अंदर परिवर्तित कर जनमान...

Vishnu Shodasa Nama Stotram With Hindi Lyrics

विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति   विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान विष्णु को समर्पित एक महामंत्र के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में त्रिदेवो में भगवान श्री हरि विष्णु अर्थात भगवान नारायण एक विशेष स्थान रखते हैं। सभी प्राणियों को उनके कष्टों से मुक्ति पाने के लिए, उनकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु को समर्पित विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् का  प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।  विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान् श्री हरी के 16 नमो को मिलकर बनाया गया एक महामंत्र है जिकी शक्ति अतुलनीय है। जो साधक प्रतिदिन स्तोत्र का जाप करता है, भगवान श्री विष्णु उस साधक के चारों तरफ अपना सुरक्षा कवच बना देते हैं। उस सुरक्षा कवच के कारण साधक के भोजन से उसकी औषधियां तक भगवान की कृपा से ओतप्रोत हो जाती है और साधक भगवान के संरक्षण को प्राप्त करता है। अतः विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम को साधक को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ जपना चाहिए क्योंकि नियमित रूप से साधक द्वारा पाठ करने से साधक के समस्त रोगो का नाश हो जाता है और साधक दीर्घायु को प्राप्त करता है।  Vishnu Shodasa Nama Sto...

Narsingh Kavach Mahima Stotra | संपूर्ण नरसिंह कवच स्तोत्र

नरसिंह कवच का संपूर्ण इतिहास नमस्कार दोस्तों आज हम आप सभी के समक्ष नरसिंह कवच की महिमा को दर्शाएंगे। हम सभी ने कभी ना कभी नरसिंह कवच का नाम अवश्य सुना होगा परंतु नरसिंह कवच की महिमा उसके उच्चारण और उसके विषय में हम में से बहुत कम लोगों को ज्ञान है। चलिए शुरू करते हैं बोलिए भगवान नरसिंह की जय।  आप सभी को बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के ही अवतारों में से एक अवतार हैं। भगवान विष्णु ने भगवान नरसिंह का अवतार कब धारण किया इसके लिए आप सभी को भक्त प्रहलाद की कथा को याद करना होगा। भक्त पहलाद जिसके पिता एक राक्षस थे। इनका नाम का हिरण कश्यप। हिरण कश्यप भगवान विष्णु से बैर रखता था परंतु भगवान की कृपा के कारण हिरण कश्यप के पुत्र के रूप में स्वयं भगवान के भक्त ने जन्म लिया जिनका नाम आगे चलकर प्रहलाद रक्खा गया। प्रहलाद भगवान को अति प्रिय थे क्योंकि प्रह्लाद भी श्री हरी को अपना सर्वस्व मानते थे और सदैव श्री हरि का नाम का जाप किया करते थे। इसीलिए भगवान श्री हरि के भक्तों में प्रहलाद का नाम सर्वोपरि आता है और उन्हें भक्त प्रहलाद के नाम से जाना जाता है।  प्रहलाद के ...