Skip to main content

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

नवरात्रि प्रथम दिवस माता शैलपुत्री पूजन | नव दुर्गा का प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री

Navdurga-Pratham-Swaroop-Mata-Shailputri

नमस्कार मित्रों, नवरात्रि के प्रथम दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि माता आदिशक्ति को समर्पित उनके नौ स्वरूपों का दिन माना जाता है। नवरात्र के 9 दिन में माता आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा पूर्ण विधि विधान के साथ की जाती है।  शक्ति स्वरूपणी  माता आदिशक्ति का प्रथम स्वरूप जिसे हम माता शैलपुत्री के रूप में जानते हैं उन्हीं की उपासना नवरात्रि के पहले दिवस पर की जाती है अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिवस की देवी माता शैलपुत्री मानी जाती हैं। 

माता शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। इसीलिए इनका नाम शैल पड़ा है। माता शैलपुत्री ने ही अपने पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। उस जन्म में उनके पिता प्रजापति दक्ष द्वारा शिव का अपमान किए जाने पर माता सती ने आत्मदाह कर लिया था। वही माता सती अपने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में जन्मी और उनके पिता हिमालय राज हुए। 

माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। माता अपने एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे हाथ में कमल को धारण किए हुए हैं। माता के स्वरूप की बात करें तो माता का दिव्य स्वरूप इतना मनमोहक है जिसका वर्णन संसार की कोई भी वाणी सहजता के साथ नहीं कर सकती।

 माता का स्वरूप गौर वर्ण का है इसलिए माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। यही कारण है कि माता को भोग लगाने वाली सामग्रियों में भी सफेद रंग के पुष्प, सफेद रंग के मिष्ठान इत्यादि को भेंट किया जाता है। माता की पूजा करते समय भी साधक को चाहिए कि वह सफेद रंग के वस्त्र धारण करके माता की पूजा करें। इससे माता प्रसन्न होती है क्योंकि सफेद रंग माता को प्रिय होने के साथ ही साथ साधक द्वारा पूजा करने पर सफेद रंग की प्रिय वस्तुओं को भेंट चढ़ाने और सफेद रंग के वस्त्रों को धारण करके पूजा करने से माता सम्मोहित होती है और साधक पर अपनी कृपा करती हैं। माता शैलपुत्री नव दुर्गा का प्रथम स्वरूप माना जाता है। माता शैलपुत्री शुभता कि सूचक और सौभाग्य को देने वाली है। 

माता शैलपुत्री का निवास मूलाधार चक्र में माना जाता है। यदि प्राणी अपने मूलाधार चक्र को जागृत कर लेता है तो उसका अर्थ यह होता है कि उसने माता शैलपुत्री की शक्ति को अपने शरीर में जागृत कर लिया है और यदि शैलपुत्री शरीर में जागृत हो जाती है तो शनै-शनै ब्रह्मांड की समस्त सकारात्मक ऊर्जा शरीर में उत्पन्न होने लगते हैं और व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होना प्रारंभ हो जाता है। 

शरीर में मूलाधार चक्र के स्वरूप में माता शैलपुत्री के जागृत होने से साधक को मन की स्थिरता प्राप्त होती है। फिर उसका मन भटकना बंद कर देता है। माता शैलपुत्री ने अपने पूर्व जन्म में माता सती के रूप में असहनीय कष्ट को सहा था। पूर्व जन्म के पिता प्रजापति दक्ष के अपराध के कारण उन्होंने स्वयं आत्मदाह करके अपने पिता के के अपराधों के लिए स्वयं को दंडित किया था। वही माता सती अपने अगले जन्म में हिमालय राज के यहां जब पुत्री रूप में जन्मी तो उनके दिव्य विग्रह के दर्शन करके उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। 

माता आदिशक्ति के इस स्वरूप की पूजा करने से मनुष्य का धर्म, अर्थ, बल तीव्रता के साथ बढ़ने लगता है। उसकी इच्छा शक्ति प्रबल हो जाती है और उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा से योग के माध्यम से अपने मूलाधार चक्र को जागृत करने का प्रयास करें तो उसका मूलाधार चक्र जागृत हो सकता है। 

मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी माता शैलपुत्री को ही माना जाता है। मूलाधार चक्र के जाग्रत होने का मतलब है कि माता शैलपुत्री की दिव्य शक्तियों का शरीर में प्रवेश हो जाना और जब माता शैलपुत्री कि शक्तियां शरीर में प्रवेश हो जाती हैं तो मूलाधार चक्र से लेकर स्वाधिष्ठान चक्र तक और स्वाधिष्ठान चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक साधक को दिव्य अनुभव होने लगता हैं। 

माता शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र के द्वारा माता की आराधना करनी चाहिए:

"  ॐ  या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता, 

नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः "

इस मंत्र के द्वारा माता को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए। माता को धूप, दीप, नैवेद्य का भोग लगाएं। माता को जो भी मिष्ठान का भोग लगाएं तो सदैव ही प्रयास करना चाहिए कि वह सफेद रंग का हो और माता से अपने और अपने कुल के कल्याण के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। 

Popular Post-Swami Parmanand Ji Maharaj Ka Jivan Parichay 

Comments

Popular posts from this blog

परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय

सनातन धर्म सदैव से पूजनीय बना हुवा है क्युकी सनातन धर्म मानव जीवन को वो सिद्धांत प्रदान करता है जिनपे चलकर मानव अपने जीवन को शाश्त्रोक्त तरीके से जी सकता है। इसीकारण प्राचीनकाल से ही सम्पूर्ण BHARAT में ऋषि परंपरा चली आ रही है।  हिन्दू धर्म में ऋषियों को ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता है।   जब हम पुराणों और वेदों का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि जब-जब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार धारण किया तब-तब उन्होंने स्पष्ट रूप से समाज को ये संदेश दिया कि संत समाज सदैव ही पूजनीय माना जाता है। आज हम उसी संत समाज में से एक ऐसे दिव्य महापुरुष के बारे में जानेंगे जिनके बारे में जितना भी कहा जाए उसमें कोई भी अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि ये ऐसे दिव्य महापुरुष है जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता के नाम कर दिया।  परमानन्द जी महाराज का जीवन परिचय   स्वामी परमानंद जी महाराज सनातन धर्म और वेदांत वचनों और शास्त्रों के विश्वविख्यात ज्ञाता के रूप में आज संसार के प्रसिद्ध संतों में गिने जाते हैं। स्वामी परमानंद गिरि जी महाराज ने वेदांत वचन को एक सरल और साधारण भाषा के अंदर परिवर्तित कर जनमान...

Vishnu Shodasa Nama Stotram With Hindi Lyrics

विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति   विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान विष्णु को समर्पित एक महामंत्र के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में त्रिदेवो में भगवान श्री हरि विष्णु अर्थात भगवान नारायण एक विशेष स्थान रखते हैं। सभी प्राणियों को उनके कष्टों से मुक्ति पाने के लिए, उनकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु को समर्पित विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् का  प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।  विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान् श्री हरी के 16 नमो को मिलकर बनाया गया एक महामंत्र है जिकी शक्ति अतुलनीय है। जो साधक प्रतिदिन स्तोत्र का जाप करता है, भगवान श्री विष्णु उस साधक के चारों तरफ अपना सुरक्षा कवच बना देते हैं। उस सुरक्षा कवच के कारण साधक के भोजन से उसकी औषधियां तक भगवान की कृपा से ओतप्रोत हो जाती है और साधक भगवान के संरक्षण को प्राप्त करता है। अतः विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम को साधक को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ जपना चाहिए क्योंकि नियमित रूप से साधक द्वारा पाठ करने से साधक के समस्त रोगो का नाश हो जाता है और साधक दीर्घायु को प्राप्त करता है।  Vishnu Shodasa Nama Sto...

Narsingh Kavach Mahima Stotra | संपूर्ण नरसिंह कवच स्तोत्र

नरसिंह कवच का संपूर्ण इतिहास नमस्कार दोस्तों आज हम आप सभी के समक्ष नरसिंह कवच की महिमा को दर्शाएंगे। हम सभी ने कभी ना कभी नरसिंह कवच का नाम अवश्य सुना होगा परंतु नरसिंह कवच की महिमा उसके उच्चारण और उसके विषय में हम में से बहुत कम लोगों को ज्ञान है। चलिए शुरू करते हैं बोलिए भगवान नरसिंह की जय।  आप सभी को बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के ही अवतारों में से एक अवतार हैं। भगवान विष्णु ने भगवान नरसिंह का अवतार कब धारण किया इसके लिए आप सभी को भक्त प्रहलाद की कथा को याद करना होगा। भक्त पहलाद जिसके पिता एक राक्षस थे। इनका नाम का हिरण कश्यप। हिरण कश्यप भगवान विष्णु से बैर रखता था परंतु भगवान की कृपा के कारण हिरण कश्यप के पुत्र के रूप में स्वयं भगवान के भक्त ने जन्म लिया जिनका नाम आगे चलकर प्रहलाद रक्खा गया। प्रहलाद भगवान को अति प्रिय थे क्योंकि प्रह्लाद भी श्री हरी को अपना सर्वस्व मानते थे और सदैव श्री हरि का नाम का जाप किया करते थे। इसीलिए भगवान श्री हरि के भक्तों में प्रहलाद का नाम सर्वोपरि आता है और उन्हें भक्त प्रहलाद के नाम से जाना जाता है।  प्रहलाद के ...