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Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?

Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?  तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं अपितु सनातन धर्म में तुलसी को देवी अर्थात माता का स्थान प्रदान किया गया है। तुलसी के महत्व की बात करें तो बिन तुलसी के भगवान भोग भी स्वीकार नहीं करते, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है। तुलसी माला का आध्यात्मिक महत्व हिंदू और बौद्ध परंपराओं में गहराई से निहित है। यहाँ कुछ प्रमुख पहलू हैं: देवताओं से संबंध भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण: तुलसी को हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है, जो अक्सर भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़ा होता है, जिसमें भगवान कृष्ण भी शामिल हैं। माना जाता है कि तुलसी माला पहनने के लिए उनके आशीर्वाद और सुरक्षा को आकर्षित करने के लिए माना जाता है। पवित्रता और भक्ति का प्रतीक शुद्धता: तुलसी संयंत्र अपनी पवित्रता के लिए श्रद्धा है। तुलसी माला पहनने से विचारों, शब्दों और कार्यों में पवित्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भक्ति: यह आध्यात्मिक प्रथाओं के प्रति समर्पण और समर्पण का एक निशान है। भक्तों ने मंत्रों और प्रार्थनाओं का जप करने के लिए...

नवरात्रि प्रथम दिवस माता शैलपुत्री पूजन | नव दुर्गा का प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री

Navdurga-Pratham-Swaroop-Mata-Shailputri

नमस्कार मित्रों, नवरात्रि के प्रथम दिवस में आप सभी का स्वागत है। नवरात्रि माता आदिशक्ति को समर्पित उनके नौ स्वरूपों का दिन माना जाता है। नवरात्र के 9 दिन में माता आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा पूर्ण विधि विधान के साथ की जाती है।  शक्ति स्वरूपणी  माता आदिशक्ति का प्रथम स्वरूप जिसे हम माता शैलपुत्री के रूप में जानते हैं उन्हीं की उपासना नवरात्रि के पहले दिवस पर की जाती है अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिवस की देवी माता शैलपुत्री मानी जाती हैं। 

माता शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। इसीलिए इनका नाम शैल पड़ा है। माता शैलपुत्री ने ही अपने पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। उस जन्म में उनके पिता प्रजापति दक्ष द्वारा शिव का अपमान किए जाने पर माता सती ने आत्मदाह कर लिया था। वही माता सती अपने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में जन्मी और उनके पिता हिमालय राज हुए। 

माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। माता अपने एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे हाथ में कमल को धारण किए हुए हैं। माता के स्वरूप की बात करें तो माता का दिव्य स्वरूप इतना मनमोहक है जिसका वर्णन संसार की कोई भी वाणी सहजता के साथ नहीं कर सकती।

 माता का स्वरूप गौर वर्ण का है इसलिए माता को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है। यही कारण है कि माता को भोग लगाने वाली सामग्रियों में भी सफेद रंग के पुष्प, सफेद रंग के मिष्ठान इत्यादि को भेंट किया जाता है। माता की पूजा करते समय भी साधक को चाहिए कि वह सफेद रंग के वस्त्र धारण करके माता की पूजा करें। इससे माता प्रसन्न होती है क्योंकि सफेद रंग माता को प्रिय होने के साथ ही साथ साधक द्वारा पूजा करने पर सफेद रंग की प्रिय वस्तुओं को भेंट चढ़ाने और सफेद रंग के वस्त्रों को धारण करके पूजा करने से माता सम्मोहित होती है और साधक पर अपनी कृपा करती हैं। माता शैलपुत्री नव दुर्गा का प्रथम स्वरूप माना जाता है। माता शैलपुत्री शुभता कि सूचक और सौभाग्य को देने वाली है। 

माता शैलपुत्री का निवास मूलाधार चक्र में माना जाता है। यदि प्राणी अपने मूलाधार चक्र को जागृत कर लेता है तो उसका अर्थ यह होता है कि उसने माता शैलपुत्री की शक्ति को अपने शरीर में जागृत कर लिया है और यदि शैलपुत्री शरीर में जागृत हो जाती है तो शनै-शनै ब्रह्मांड की समस्त सकारात्मक ऊर्जा शरीर में उत्पन्न होने लगते हैं और व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होना प्रारंभ हो जाता है। 

शरीर में मूलाधार चक्र के स्वरूप में माता शैलपुत्री के जागृत होने से साधक को मन की स्थिरता प्राप्त होती है। फिर उसका मन भटकना बंद कर देता है। माता शैलपुत्री ने अपने पूर्व जन्म में माता सती के रूप में असहनीय कष्ट को सहा था। पूर्व जन्म के पिता प्रजापति दक्ष के अपराध के कारण उन्होंने स्वयं आत्मदाह करके अपने पिता के के अपराधों के लिए स्वयं को दंडित किया था। वही माता सती अपने अगले जन्म में हिमालय राज के यहां जब पुत्री रूप में जन्मी तो उनके दिव्य विग्रह के दर्शन करके उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। 

माता आदिशक्ति के इस स्वरूप की पूजा करने से मनुष्य का धर्म, अर्थ, बल तीव्रता के साथ बढ़ने लगता है। उसकी इच्छा शक्ति प्रबल हो जाती है और उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा से योग के माध्यम से अपने मूलाधार चक्र को जागृत करने का प्रयास करें तो उसका मूलाधार चक्र जागृत हो सकता है। 

मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी माता शैलपुत्री को ही माना जाता है। मूलाधार चक्र के जाग्रत होने का मतलब है कि माता शैलपुत्री की दिव्य शक्तियों का शरीर में प्रवेश हो जाना और जब माता शैलपुत्री कि शक्तियां शरीर में प्रवेश हो जाती हैं तो मूलाधार चक्र से लेकर स्वाधिष्ठान चक्र तक और स्वाधिष्ठान चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक साधक को दिव्य अनुभव होने लगता हैं। 

माता शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र के द्वारा माता की आराधना करनी चाहिए:

"  ॐ  या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता, 

नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः "

इस मंत्र के द्वारा माता को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए। माता को धूप, दीप, नैवेद्य का भोग लगाएं। माता को जो भी मिष्ठान का भोग लगाएं तो सदैव ही प्रयास करना चाहिए कि वह सफेद रंग का हो और माता से अपने और अपने कुल के कल्याण के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। 

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