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Showing posts from September, 2023

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म पुत्र द्वारा ही क्यों?

आज के इस लेख के माध्यम से आपको ज्ञान होगा कि पितृपक्ष में पुत्र द्वारा किए गए श्राद्ध से पितरों को प्रसन्न का क्यों होती है? पुत्र के द्वारा श्राद्ध किए जाने से क्या लाभ है? पुत्र द्वारा ही श्राद्ध   आधुनिक समय में लिंग भेद को नहीं माना जाता और हमारा भी यही मानना है कि पुत्र या पुत्री में कोई फर्क नहीं होता। पुत्र और पुत्री समान रूप से अपने परिवार और समाज के प्रेम के अधिकारी होते हैं। जिस प्रकार माता-पिता का संबंध उनके पुत्र से होता है ठीक उसी प्रकार पुत्री से भी प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होता है।  संतान के विषय में लड़का और लड़की का कोई भेद नहीं होता और न ही होना चाहिए। फिर भी हमारे सनातन धर्म में हमारे शाश्त्र और वेद इस बात का प्रमाण देते है की पित्र पक्ष में श्राद्ध कर्म करने का पहला अधिकारी पुत्र ही होता है।  इस्त्री में सेहेनशीलता का गन होता है तो पुरुष में बड़े से बड़े दुःख को सेहेन करने की अपार शक्ति होती है। यही कारण का की स्त्रियो का शमशान जाना भी वर्जित होता है।  ईश्वर ने जो भी नियम बनाये उन सभी नियमो को शास्त्रों में समाहित कर दिया जिससे मनुष्य शास्त्रोक...

पूर्वजों का श्राद्धकर्म करना आवश्यक क्यों ?

पितृपक्ष अर्थात वह समय जो हमे उनके लिए कुछ करने का अवसर प्रदान करता है जिनकी वजह से आज हमारा अस्तित्व है अर्थात हमारे पूर्वज। यदि हमारे पूर्वज न होते तो आज हम भी ना होते, न ही ये परिवार होता, न यह सुख, समृद्धि, वैभव और ये जीवन ही होता। पितृ पक्ष में पितरो की अपनी सन्तानो से आशा और उनकी सन्तानो के कर्तवो की समस्त पौराणिक जानकारी आज आपको इस लेख के माध्यम से प्राप्त होगी।  Pitra Paksha विशेष महत्त्व | P itru Paksha Rituals ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है। कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। ये लहरें, तरंगें न केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती हैं। श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति सद्गति, मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है। इसके अलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।  मनुस्मृति में लिखा है- यदाति विधिवत् सम्यक् श्रद्धासमन्वितः ।  तत्त...

Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu Hoti Hai | सर्वप्रथम गणेश पूजन क्यों | गणेश जी की आरती

हिंदूधर्म में किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेशजी की पूजा करना आवश्यक माना गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व्  ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व् विघ्नो का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है।  Ganesh Ji Ki Pratham Puja Kyu गणेश  का अर्थ है गणो का ईश अर्थात गणो का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, अनुष्ठान कार्य में गणेश जी के गुण- कोई विघ्न न पहुंचाएं, इसलिए उनकी आराधना करके उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व श्रीगणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता- वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः ।  निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ अर्थात विशाल आकार और टेढ़ी सूंड वाले, करोड़ों सूर्यो के समान तेज वाले हे देव (गणेश जी): मेरे समस्त कार्यों को सदा विघ्नरहित पूर्ण (सम्पन्न) करें। वेदों में भी गणेश की महत्ता व उनके विघ्नहर्ता स्वरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व आवाहन करते हुए कहा गया है- गणानां त्वा गणपतिं...

Vishnu Shodasa Nama Stotram With Hindi Lyrics

विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् की उत्पत्ति   विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान विष्णु को समर्पित एक महामंत्र के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में त्रिदेवो में भगवान श्री हरि विष्णु अर्थात भगवान नारायण एक विशेष स्थान रखते हैं। सभी प्राणियों को उनके कष्टों से मुक्ति पाने के लिए, उनकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु को समर्पित विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् का  प्रतिदिन पाठ करना चाहिए।  विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम् भगवान् श्री हरी के 16 नमो को मिलकर बनाया गया एक महामंत्र है जिकी शक्ति अतुलनीय है। जो साधक प्रतिदिन स्तोत्र का जाप करता है, भगवान श्री विष्णु उस साधक के चारों तरफ अपना सुरक्षा कवच बना देते हैं। उस सुरक्षा कवच के कारण साधक के भोजन से उसकी औषधियां तक भगवान की कृपा से ओतप्रोत हो जाती है और साधक भगवान के संरक्षण को प्राप्त करता है। अतः विष्णु षोडश नाम स्तोत्रम को साधक को पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ जपना चाहिए क्योंकि नियमित रूप से साधक द्वारा पाठ करने से साधक के समस्त रोगो का नाश हो जाता है और साधक दीर्घायु को प्राप्त करता है।  Vishnu Shodasa Nama Sto...