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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

कामघेनु : Gau Mata Ek Devi Ya Pashu | गाय के 108 नाम और उनकी महिमा

कामघेनु का स्वरुप  सनातन धर्म में पुरातन काल से ही गौ माता को विशेष स्थानीय विशेष दर्जा प्राप्त है।  गौ माता की उत्पत्ति समुद्र मंथन से मानी जाती है पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि समुद्र मंथन से पूर्व भी गौ माता का अस्तित्व था या यूं कहें कि सृष्टि के प्रारंभ से ही गौ माता का अस्तित्व पुराणों में व्याप्त है।  संसार की उत्पत्ति भगवान शिव से होती है तो उसी समय गौ माता की उत्पत्ति भी होती है और तभी से गौ माता को एक झूठ बोलने के कारण भगवान शिव से श्राप मिला कि आने वाले कलयुग में उन्हें अपने मुख से संसार में जूठन खानी पड़ेगी परंतु शिव बहुत दयालु है।  अतः इस श्राप के साथ ही साथ उन्हें यह वरदान भी मिला कि उनमें 33 कोटि देवताओं का वास होगा। समस्त संसार में एक देवी के रूप में उनकी पूजा की जाएगी और समस्त संसार उनके सामने सदैव नतमस्तक रहेगा। कामधेनु सुरभि गौमाता संसार की समस्त गउवों की माता और जननी है। इनका निवास स्थान स्वर्ग में होने के कारण अत्यधिक पूजनीय मानी जाती हैं। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक उसके प्रत्येक संस्कार में कहीं ना कहीं गाय का योगदान रहता है।  हम सभी...

Devshayani Ekadashi Vrat Katha | Chaturmas Vrat Katha

 ॥ अथ देवशयनी (पद्मा) एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उस दिन कौन से देवता की पूजा होती है तथा उसकी विधि क्या है? सो सविस्तार पूर्वक कहिये।  श्रीकृष्ण भगवान बोले- हे राजन! एक समय नारद जी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न पूछा था। तब ब्रह्माजी बोले कि हे नारद! इस एकादशी का नाम पद्मा है। इसके व्रत करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं। मैं यहाँ एक पौराणिक कथा कहता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो। सूर्यवंशी मान्धाता नाम का एक राजर्षि था। एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुवी जिससे राज्य में अकाल पड़ गया और प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यन्त दुःखी रहने लगी। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगी हे राजन! समस्त विश्व की पुष्टि का मुख्य कारण वर्षा है। इसी वर्षा के अभाव से राज्य में अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। हे राजन आप कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे हम लोगों का दुख दूर हो।  इस पर राजा मान्धाता बोला कि आप लोग ठीक कह रहे हैं। वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है। वर्षा न ...

Yogini Ekadashi Mahatma Ki Durlabh Katha | Apra Ekadashi Katha

Yogini ya Apra Ekadashi Mahatma ॥ अथ योगिनी एकादशी माहात्म्य ॥ धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है? सो सब वर्णन कीजिये। श्रीकृष्ण भगवान बोले-हे राजन! आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम योगिनी है। संसार में इस एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं जो  प्राणियों को इस लोक में दिव्य भोग देकर परलोक में मुक्ति देने वाली है। हे राज राजेश्वर! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। यु तो पुराणों में अपरा एकादशी जिसे हम सब योगिनी एकादशी भी कहते है, के बारे में अनेको पुण्य कथायें आती है परन्तु आज हम उस विशेष कथा का वर्णन करेंगे जिसके लिए पुराण भी साक्ष्य है, आप ध्यानपूर्वक सुने। योगिनी एकादशी व्रत कथा अलकापुरी नाम की नगरी में एक कुबेर नामक राजा राज्य करता था। वह शिवभक्त था। उसकी पूजा के लिये एक माली पुष्प लाया करता था। उसके विशालाक्षा नाम की अत्यन्त सुन्दर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प ले आया, परन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को ...

Utpanna Ekadashi Krishna Paksha | उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा कृष्ण पक्ष

 Utpanna Ekadashi Vrat Krishna Paksha एकादशी व्रत माहात्म्य-कथा श्रीसूत जी महाराज शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषियों से बोले-हे महर्षियो! एक वर्ष के अन्दर बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं। सो एक वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं । जिस वर्ष लौंद ( अधिक) पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं। १. उत्पन्ना , २. मोक्षदा, ( मोक्ष प्रदान करने वाली), ३. सफला ( सफलता देने वाली), ४. पुत्रदा (पुत्र को देने वाली), ५. षट्तिला, ६. जया, ७. विजया, ८. आमलकी, ९, पाप मोचनी (पापों को नष्ट करने वाली), १०. कामदा, ११. बरूथनी, १२. मोहिनी, १३. अपरा, १४. निर्जला , १५. योगिनी, १६. देवशयनी, १७. कामिदा, १८. पुत्रदा, १९. अजा, २०. परिवर्तिनी, २१. इन्द्रर, २२. पाशांकुशा, २३. रमा, २४. देवोत्यानी।  लौंद (अधिक) की दोनोंं एकादशियों का नाम क्रमानुसार पदिमिनी और परमा है। ये सब एकादशी यथा नाम तथा गुण वाली हैं। इन एकादशियों के नाम तथा गुण उनके व्रत की फल कथा सुनने से मालूम होंगे। जो मनुष्य इन एकादशियों के व्रत को शास्त्रानुसार करते हैं ...

Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी करने से 12 एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है

॥ अथ निर्जला एकादशी माहात्म्य ॥ भक्तो यु तो संसार में  बतलाये गए है पर जो व्रत भगवान् श्री हरी को प्रिय है उसे एकादशी का व्रत कहा जाता है। एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप नस्ट होकर उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के लोक और परलोक दोनों  है। निर्जला एकादशी समस्त एकादशियो में सबसे बड़ी  जाती है क्योकि जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धा के साथ निर्जला एकादशी का व्रत करता है उसे १२ एकादशियो के फल की प्राप्ति होती है। अतः निर्जला एकादशी का व्रत हम सभी को अवश्य करना चाहिए।   निर्जला एकादशी कथा          श्रीभीमसेन बोले- हे पितामह ! भ्राता युधिष्ठि माता कुन्ती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दान व्रत करते हैं और मुझसे एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि भाई मैं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूँ, परन्तु मैं एकादशी के दिन भूखा नहीं सकता।  इस पर व्यास जी बोले- हे भीम सेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियो...

Vishnu Apamarjana stotram | रोग मुक्ति अपामार्जन स्तोत्र

विष्णु स्तोत्र पाठ |  पद्म पुराण अपामार्जन स्तोत्र महिमा  संसार के समस्त रोगो का नाश करने में सक्षम दिव्या मंत्र जिसका उल्लेख पौराणिक धर्म ग्रंथो में मिलता है। अपामार्जन स्तोत्र भगवान् विष्णु का स्तोत्र है जिसका प्रयोग विषरोगादि के निवारण के लिए किया जाता है। इस स्तोत्र के नित्य गायन या पाठन से सभी प्रकार के रोग शरीर से दूर रहते हैं, तथा इसका प्रयोग रोगी व्यक्ति के मार्जन द्वारा रोग निराकरण में किया जाता है। भगवान नारायण स्वरूप अपामार्जन स्तोत्र को शक्ति स्वयं नारायण से प्राप्त होती है। अतः पौराणिक धर्म शास्त्रों में अपामार्जन स्तोत्र का उल्लेख दो बार प्राप्त होता है: प्रथम विष्णुधर्मोत्तरपुराण में तथा द्वितीय पद्म पुराण में ६वें स्कन्द का ७९वाँ अध्याय। जहाँ विष्णुधर्मोत्तरपुराण में पुलत्स्य मुनि ने दाल्भ्य के लिए कहा है वहीं पद्मपुराण में इसे भगवान् शिव ने माता पार्वती को सुनाया है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण द्वारा प्रमाणित अपामार्जना स्तोत्र श्रीमान्वेंकटनाथार्यः कवितार्किककेसरी। वेदान्ताचार्यवर्यो मे सन्निधत्तां सदाहृदि॥ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भजम्। प्रस...