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सबरीमाला मंदिर में कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?

सबरीमाला Sabarimala सबरीमाला मंदिर, केरल के पथानामथिट्टा ज़िले में पेरियार टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित है। यह मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है और दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,000 फ़ुट ऊपर स्थित सबरिमाला नाम की पहाड़ी पर है। कहा जाता है कि रामायण काल में भगवान राम ने जिस शबरी के आदर और श्रद्धा से जूठे फल खाए थे, उसी शबरी के नाम पर इस मंदिर का नाम पड़ा है। सबरीमाला मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है।  सबरीमाला मंदिर, देश के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है। यहां हर साल 4 से 5 करोड़ श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर केवल कुछ खास अवधियों के दौरान ही भक्तों के लिए अपने दरवाज़े खोलता है। मंडलम-मकरविलक्कू सीज़न के दौरान, मंदिर जाति, पंथ या धर्म के बावजूद सभी के लिए खुला रहता है। यह सीज़न आम तौर पर नवंबर में शुरू होता है और जनवरी में खत्म होता है।  सबरीमाला मंदिर, पथानामथिट्टा शहर से 72 किलोमीटर, तिरुवनंतपुरम से 191 किलोमीटर और कोच्चि से 210 किलोमीटर दूर है। यहां जाने का पारंपरिक मार्ग एरुमेली (40 किलोमीटर) से है। Sa

अयप्पा स्वामी का जीवन परिचय | सबरीमाला के अयप्पा स्वामी कौन है?

अयप्पा स्वामी, हिंदू धर्म के एक देवता हैं। उन्हें धर्मसस्थ और मणिकंदन भी कहा जाता है। उन्हें विकास के देवता के रूप मे माना जाता है और केरल में उनकी खास पूजा होती है। अयप्पा को धर्म, सत्य, और धार्मिकता का प्रतीक माना जाता है। अक्सर उन्हें बुराई को खत्म करने के लिए कहा जाता है। अयप्पा स्वामी को भगवान शिव और देवी मोहिनी का पुत्र माना जाता है।

Swami Sharaname Ayyappa Sharaname

मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, तब शिव जी उनपर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। इसके प्रभाव से स्वामी अयप्पा का जन्म हुआ। इसलिए अयप्पा देव को हरिहरन भी कहा जाता है। 

अयप्पा स्वामी के बारे में कुछ और बातें:

अयप्पा स्वामी का मंदिर केरल के सबरीमाला में है।
अयप्पा स्वामी को अयप्पन, शास्ता, और मणिकांता नाम से भी जाना जाता है।
अयप्पा स्वामी को समर्पित एक परंपरा है, जिसे अयप्पा दीक्षा कहते हैं। यह 41 दिनों तक चलती है। इसमें 41 दिनों तक न चप्पल पहनते हैं और न ही नॉनवेज खाते हैं।
मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर एक ज्योति दिखती है. मंदिर आने वाले भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं।

क्या अयप्पा स्वामी और कार्तिकेय एक ही हैं?

नहीं, अयप्पा स्वामी और कार्तिकेय एक ही नहीं हैं। अयप्पा, भगवान शिव और देवी मोहिनी के पुत्र हैं। वहीं, कार्तिकेय, भगवान शिव और मां पार्वती की संतान हैं।
 कार्तिकेय मोर की सवारी करते हैं, वहीं अयप्पा बाघिन की सवारी करते हैं। 
अयप्पा स्वामी, भगवान शिव के तीसरे पुत्र हैं। गणेश और कार्तिकेय की तरह अयप्पा बहुत ज़्यादा चर्चित नहीं हैं। लेकिन दक्षिण भारत में अयप्पा की बड़ी संख्या में भक्त हैं, जो पूरे श्रद्धाभाव से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

सबरीमाला भगवान कौन है?

सबरीमाला मंदिर, भगवान अयप्पा को समर्पित है। अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, और मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। अयप्पा को विकास का देवता माना जाता है और केरल में उनकी विशेष रूप से पूजा की जाती है।
सबरीमाला मंदिर, केरल के पतनमतिट्टा ज़िले में पेरियार टाइगर अभयारण्य के भीतर सबरिमलय पहाड़ पर स्थित है। यह विश्व के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है, और यहाँ प्रतिवर्ष 4 से 5 करोड़ श्रद्धालु आते हैं।
कहा जाता है कि सबरीमाला मंदिर का नाम, रामायण कथाओं में जिस शबरी का उल्लेख है, उनके नाम पर पड़ा है। भगवान राम ने शबरी के आदर और श्रद्धा से जूठे फल खाए थे।

सबरीमाला मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

सबरीमाला मंदिर के प्रति केरल के लोगों में गहरी आस्था है, इसलिए पूरे साल सैकड़ों लोग मंदिर में भगवान अयप्पा के दर्शनों के लिए आते हैं। ये मंदिर करीब 800 साल पुराना माना जाता है। भगवान अयप्पा के दर्शनों के लिए देश और विदेश से पूरे साल भर श्रद्धालु आते रहते हैं।

भगवान अयप्पा की पूजा घर पर कैसे करें?

भगवान अयप्पा की पूजा घर पर करने के लिए, आप ये तरीके अपना सकते हैं:
घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में सफ़ेद कपड़ा बिछाएं।
चावल की ढेरी पर पीतल का कलश रखें।
कलश में जल, दूध, अक्षत, इत्र, सुपारी, मूंग, और सिक्के डालें।
लोटे के मुख पर अशोक के पत्तों पर नारियल रखें।
अय्यप्पा कलश स्थापित करें और विधिवत पूजन करें।
श्लोक गाते हुए, दीपक जलाकर, और भगवान को घी अर्पित करते हुए पादी पूजा पूरी करें।
भगवान अयप्पा की तस्वीर पर माला चढ़ाएं।
निर्दिष्ट समय पर, परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य को निलाविलक्कु (शुभ दीपक) जलाना चाहिए। 
अयप्पा स्वामी की पूजा के लिए, पूजा कक्ष में रखी गई मूर्तियों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। नैवेद्यम की नियमित पेशकश और अन्य अनुष्ठान (उपचार, दीपक, धूप आदि जलाना) नियमित रूप से किए जाने चाहिए. 
दक्षिण भारत की एक परंपरा है, जिसे अयप्पा दीक्षा कहते हैं। यह 41 दिनों तक चलती है। इसमें 41 दिनों तक न चप्पल पहनते हैं और न ही नॉनवेज खाते हैं। 

भगवान अयप्पा का कौन सा दिन है?

अय्यप्पा या सबरीमाला संस्था से जुड़ा दिन शनिवार है. भक्त शनिवार या उथ्रम के दिन माला पहनना शुभ मानते हैं. उथ्रम श्री अय्यप्पन का जन्म नक्षत्र है। 
अय्यप्पा दीक्षा का महत्व जाति, पंथ और भाषा से परे एक शांतिपूर्ण जीवन जीना, नियमों और विनियमों के साथ जीवन का एक तरीका, भगवान की प्राप्ति के लिए लगातार ध्यान करना है। 41 दिनों की तपस्या के दौरान इन नियमों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाता है।

क्या भगवान अयप्पा की शादी हुई है?

कुछ मंदिरों में अयप्पा को ब्रह्मचारी योगी के रूप में दिखाया जाता है। हालांकि, कुछ मंदिरों में, जैसे कि त्रावणकोर के पास अचंकोविल सस्था मंदिर, उन्हें दो पत्नियां पूर्णा और पुष्कला के साथ-साथ एक बेटा सत्यक के साथ एक विवाहित व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। 
किंवदंतियों के मुताबिक, मलिककप्पुरा देवी भगवान अयप्पा से शादी करना चाहती थीं, लेकिन वह अनिच्छुक थे. देवी के अनुरोध पर, भगवान ने कहा कि जब भी कोई कन्यास्वामी (जो पहली बार माला पहनता है और सबरीमाला आता है) सबरीमाला नहीं आता है, तो वह उससे विवाह कर लेंगे। 
अयप्पा की शादी क्यों नहीं हुई, इस बारे में एक और किंवदंती है। इसके मुताबिक, एक लड़ाई के बाद, एक युवती ने अय्यप्पन के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। हालांकि, उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि उन्हें जंगल में जाने, ब्रह्मचारी का जीवन जीने और भक्तों की प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए नियुक्त किया गया है।

अयप्पा मंत्र

भगवान अयप्पा के कुछ मंत्र ये हैं:
"ओम नमो भगवते महा विष्णुाय"
"ओम् अग्ने यशस्विन् यशसेममर्पयेन्द्रावतीमपचितीमिहावह। अयं मूर्धा परमेष्ठी सुवर्चाः समानानामुत्तमश्लोको अस्तु। भद्रं पश्यन्त उपसेदुरग्रे तपो दीक्षामृषयः सुवर्विदः"
"ॐ मदगजारूढ महशास्त ललाटतिलक चषकहस्त नीलकञ्चुक लोकवश्याकर्षण ज्वालय तापय तापय वेगय वेगय शीघ्रमाकर्षय स्वाहा"
"शास्त्रे तुभयाम नामो नमहा"
"ओम स्वामीये शरणम् अय्यप्पा" 
अयप्पा को भगवान शिव और भगवान विष्णु की शक्तियों और गुणों का संगम माना जाता है। अयप्पा की पूजा भारत के दक्षिणी राज्यों, खासकर केरल में की जाती है।

अय्यप्पा का मतलब क्या होता है?

अय्यप्पा का मतलब होता है पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ। अय्यप्पा नाम भगवान विष्णु और भगवान शिव से जुड़ा है, इसलिए इसका मतलब भगवान विष्णु भी होता है। 
 अय्यप्पा को विकास के देवता माना जाता है। 
 उन्हें सामग्री, भक्ति, और साधना के देवता के रूप में भी जाना जाता है. अय्यप्पा को सबरीमाला नामक पर्वतीय श्रद्धालु स्थल पर खासतर समर्पित माना जाता है। 

अयप्पा की पूजा का फल क्या है?

भगवान अयप्पा की पूजा करने से कई फ़ायदे होते हैं:
मानसिक घबराहट दूर होती है।
कलह से मुक्ति मिलती है।
बिज़नेस में सफलता मिलती है।
शनि के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
बढ़ी हुई खुशहाली, उपलब्धियों और समृद्धि का अनुभव होता है। 
भगवान अयप्पा को धर्म सृष्टा के रूप में भी जाना जाता है। इन्हें वैष्ण्वों और शैवों के बीच एकता के प्रतीके के रूप में देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने अपने लक्ष्य को पूरा किया था और सबरीमाल में इन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। 
अयप्पा दीक्षा का महत्व जाति, पंथ और भाषा से परे एक शांतिपूर्ण जीवन जीना, नियमों और विनियमों के साथ जीवन का एक तरीका, भगवान की प्राप्ति के लिए लगातार ध्यान करना है।

अय्यप्पन किसका अवतार है?

कुछ पुराणों में, अय्यप्पा को शास्ता का अवतार माना जाता है। कम्बन रामायण, महाभागवत के अष्टम स्कंध, और स्कन्दपुराण के असुरकाण्ड में जिस शिशु शास्ता का उल्लेख है, अय्यप्पन उसी के अवतार माने जाते हैं। कथाओं के मुताबिक, शास्ता का जन्म मोहिनी और शिव के समागम से हुआ था। 
अय्यप्पा को भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिश्रण माना जाता है। 
 अय्यप्पा का नाम भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीक है. अय्यप्पा का मतलब होता है हमेशा युवा। 
 अय्यप्पा विकास के देवता माने जाते हैं और केरल में विशेष रूप से पूज्य हैं। 
अय्यप्पा का प्रसिद्ध मंदिर केरल के सबरीमाला में है। दुनिया भर से लोग अय्यप्पा के दर्शन के लिए आते हैं।

क्या अय्यनार और अय्यप्पन एक ही हैं?

कुछ क्षेत्रों में, अय्यप्पा और अय्यनार को एक ही देवता माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी उत्पत्ति एक जैसी है। हालांकि, कुछ लोग इन्हें अलग मानते हैं क्योंकि इनकी पूजा पद्धति अलग है। अय्यप्पन एक योद्धा देवता हैं। 
 वहीं, अय्यनार एक सुरक्षा देवता हैं। 
अय्यप्पन का तमिलनाडु के संरक्षक देवता अय्यनार से ऐतिहासिक संबंध हो सकता है। 
 अय्यनार एक तमिल देवता हैं। इनकी पूजा दक्षिण भारत और श्रीलंका में होती है। 
 अय्यप्पन का सबसे प्रसिद्ध मंदिर केरल की पतनमथिट्टा पहाड़ियों पर स्थित सबरीमाला मंदिर है।

अयप्पा ने किस राक्षस का वध किया था?

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, अयप्पा ने जल राक्षस महिषासुर और राक्षसी महिषी का वध किया था। 
अयप्पा ने महिषी का वध तब किया था जब वह अपनी मां के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गई थी। 
 महिषी, महिषासुर की बहन थी और उसका चेहरा भैंस की तरह था। देवताओं से अपने भाई के वध का बदला लेने के लिए महिषी ने ब्रह्मा जी की तपस्या की थी। ब्रह्मा जी ने उसे मनचाहा वर दिया था।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित क्यों है?

सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। मंदिर प्रबंधन का कहना है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं, इसलिए युवा महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। 
सबरीमाला मंदिर, भगवान अयप्पा को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव और मोहिनी (भगवान विष्णु का रूप) के पुत्र अयप्पा हैं। जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था, तो भगवान शिव उन पर मोहित हो गए थे। इसी वजह से अयप्पा का जन्म हुआ।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर दो पक्ष हैं:

एक पक्ष का कहना है कि महिलाओं को बराबरी का हक मिलना चाहिए और उनकी एंट्री मंदिर में होनी चाहिए।
वहीं, दूसरा पक्ष सालों से चली आ रही परंपरा से छेड़छाड़ नहीं चाहता। 
2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिषि ने दावा किया था कि मंदिर में स्थापित भगवान अयप्पा अपनी शक्तियां खो रहे हैं। 1991 के बाद से, महिलाओं और लड़कियों (10 वर्ष से 50 वर्ष की आयु तक) को कानूनी रूप से मंदिर में प्रवेश करने से मना कर दिया गया। 
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी है। 

सबरीमाला मंदिर में पूजा करने का शुभ मुहूर्त क्या है?

सबरीमाला मंदिर में सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक पूजा होती है। मंदिर में सुबह, दोपहर, और शाम की पूजा होती है। मंदिर दोपहर 1:30 बजे से शाम 4:00 बजे तक बंद रहता है।
मंदिर में मंडला पूजा (लगभग 15 नवंबर से 26 दिसंबर), मकरविलक्कु या "मकर संक्रांति" (14 जनवरी), और महा थिरुमल संक्रांति (14 अप्रैल) और हर मलयालम महीने के पहले पांच दिनों के दौरान पूजा होती है।
मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं। लेकिन, 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर मनाही है।

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