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एकादशी व्रत कथा ब्लॉग एकादशी और कई पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से बताता है। यह ब्लॉग सनातन धर्म से जुड़े हर रहस्य को उजागर करने में सक्षम है। एकादशी ब्लॉग के माध्यम से हम आप सभी तक पूरे वर्ष में पड़ने वाली सभी 26 एकादशी की कथा को विस्तार से लेकर आए है। इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी को सनातन धर्म से जुड़ने का एक अवसर प्राप्त होने जा रहा है।
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Mahabharat: Bhishma Dwara Nishedh Bhojan
भीष्म निषेध भोजन
नमस्कार दोस्तों आज हम आप सभी के समक्ष महाभारत कालीन ऐसे ज्ञान को लेकर आए हैं जिस ज्ञान को जानना आज के समय में अत्यंत आवश्यक हो चुका है क्योंकि आज का प्राणी अपनी नासमझी के कारण प्रत्येक दिन गलतियों पर गलतियां करता चला जाता है और अपने ही कर्मों के कारण दुखी रहता है अर्थात इन दुखों से मुक्ति पाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम सबको अपने वेद, पुराण, शास्त्रों, भगवत गीता और विभिन्न प्रकार के धर्म ग्रंथों का अनुसरण करना चाहिए जैसे रामायण व् महाभारत आदि।
यह समस्त धर्म ग्रन्थ हमारे लिए प्रमाण है कि हमें किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। हमें किन चीजों को अपने जीवन काल में करना चाहिए और किन चीजों को नहीं करना चाहिए। अगर हम इन समस्त धर्म शास्त्रों को प्रमाण के रूप में समझेंगे तो हमसे कभी भी कोई गलती नहीं होगी और हम पाप करने से बचेंगे और व्यर्थ के दुखों से मुक्त हो सकेंगे।
महाभारत में उल्लेख मिलता है कि भीष्म पितामह ने अपने पांडव अर्जुन को अनेकों बार शिक्षाएं दी। उनके लिए कौरव और पांडव सभी प्रिय थे परंतु समस्त कौरवों और पांडवों में उन्हें अर्जुन अत्यधिक प्रिय था।
अर्जुन सबसे छोटे होने के साथ-साथ भीष्म पितामह के सबसे प्रिय थे। वह बहुत ही आज्ञाकारी थे और पितामह की प्रत्येक बात को शिरोधार्य करके अपने पग को आगे बढ़ाते थे। यही कारण है कि भीष्म पितामह सदैव चाहते थे कि अर्जुन से कभी भी जीवन में कोई गलती ना हो। इसलिए अर्जुन को उन्होंने कई ऐसे रहस्य ज्ञान की बातें बताई जिनको जानकर अर्जुन ने अपने संपूर्ण जीवन में कभी भी उन गलतियों को नहीं किया और आज मानव कल्याण के लिए वह सारे रहस्य हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
जैसे अर्जुन के पूछने पर भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया कि कब और किस प्रकार का भोजन मनुष्य को नहीं करना चाहिए। भीष्म पितामह ने अर्जुन को बताया कि हे अर्जुन यु तो अन्न साक्षात माता अन्नपूर्णा का स्वरूप माना गया है परंतु फिर भी भोजन कई प्रकार के होते हैं सात्विक राजसिक और तामसिक। इनमें भी चार प्रकार के ऐसे भोजन होते है जिनका सेवन निषेध मन गया है।
वह चार प्रकार का भोजन कौन सा होता है इस पर भीष्म पितामह ने विस्तार से अर्जुन को समझाया और कहा की प्रथम निषेध भोजन उस भोजन को कहा जाता है जिस भोजन को कोई लांघ कर चला जाता है अर्थात जिस भोजन की थाली को या भोजन को या फिर किसी खाद्य पदार्थ को किसने लांघा हो, उस भोजन को करना सर्वत्र निषेध है। उस भोजन को करने से दोष लगता है क्योंकि ऐसा भोजन जो किसी के द्वारा लगाया लांघ गया है उसे नाले में पड़े कीचड़ के समान ही माना जाता है। अतः किसी के द्वारा लांघा गया भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
आगे बढ़ते हुए निषेध भोजन की श्रृंखला में भीष्म पितामह ने उस भोजन को निषेध बताया जिस भजन में किसी का बाल पड़ा हो अर्थात अगर भोजन की थाली में या पके हुए भोजन में किसी का केश या बाल पड़ा है तो वह भोजन पूर्ण रूप से निषेध माना गया है। उस भोजन को कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा भोजन दरिद्रता का प्रतीक माना गया है। ऐसा भोजन ग्रहण करने से मनुष्य को दरिद्रता ग्रस्त लेती है।
इसलिए सदैव भोजन करने से पूर्व अपने भोजन की थाली को ध्यान से देखें कि उसमें किसी का बाल ना पड़ा हो क्योंकि किसी का बाल अगर आपके भोज्य पदार्थ में है तो ऐसा भोजन खाने योग्य नहीं होता। अतः सदैव भोजन ग्रहण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपके भोजन में कभी भी किसी का बाल या केश न पड़ा हो।
निषेध भोजन की श्रृंखला में आगे बढ़ते भीष्म पितामह ने तीसरे नंबर पर उस भोजन को निषेध बताया जिस भोजन की थाली पर किसी के द्वारा ठोकर लग गई हो अर्थात जिस भोजन की थाली पर या जिस खाद्य सामग्री पर किसी के पैर की ठोकर लग चुकी हो, या किसी का पाव लग गया हो, तो ऐसा भोजन भीख में मिले हुए भोजन के समान होता है। अतः उस भोजन का उसी समय त्याग कर देना चाहिए क्योंकि ऐसा भोजन खाने से कभी भी आप की पुष्टि नहीं होगी। ऐसा भोजन भिष्टा के समान माना जाता है।अतः कभी भी ठोकर लगे हुए भोज्य पदार्थ को ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि ठोकर लगे हुए भोज्य पदार्थ को ग्रहण करना सर्वत्र निषेध माना गया है।
निषेध भोजन की श्रृंखला में आगे बढ़ते हुए भीष्म पितामह ने अर्जुन को चौथे नंबर पर उस भोजन को खाना वर्जित बताया है जो भोजन पति और पत्नी एक थाली में खाते हैं अर्थात अगर पत्नी अपने पति के साथ उसी की थाली में भोजन करती है तो ऐसा भोजन निषेध बताया गया है क्योंकि ऐसे भोजन को करना और मदिरा पीना दोनों एक समान ही माना गया है।शास्त्रों में भी यह वर्णित है कि कभी भी पत्नी को अपने पति के साथ एक थाली में भोजन नहीं करना चाहिए परंतु पति के भोजन करने के पश्चात यदि पत्नी उसी थाली में भोजन ग्रहण करती है जिस थाली में उसके पति ने भोजन ग्रहण किया है तो उस स्त्री का वह भोजन चारों धामों के प्रसाद के तुल्य हो जाता है और उसे चारों धामों का पुण्य प्राप्त होता है।
निषेध भोजन का वर्णन करते-करते भीष्म पितामह अर्जुन को यह भी समझाने लगे कि हे अर्जुन निषेध भोजन की श्रृंखला को मैंने तुम्हें बता दिया परंतु इन्हीं श्रृंखलाओं के साथ एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है और स्मरणीय है वह यह है कि यदि किसी पिता की पुत्रियां हैं या एक पुत्री हो या अनेक पुत्रियां हो अगर वह पुत्रियां कुंवारी हैं अर्थात अभी उनकी शादी नहीं हुई तो कुंवारी पुत्रियों को अपने पिता के साथ उनकी थाली में ही भोजन करना चाहिए।
ऐसा करने से वह पुत्रियां अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं। जब कुंवारी लड़कियां अपने पिता के साथ उन्हीं की थाली में भोजन करती हैं तो उनके पिता की कभी भी किसी भी परिस्थिति में अकाल मृत्यु नहीं होती। अतः सभी कुंवारी कन्याओं को अपने पिता के साथ उनकी थाली में ही भोजन ग्रहण करना चाहिए और ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे ईश्वर मेरे पिता की कभी भी अकाल मृत्यु न हो और उन्हें दीर्घायु प्राप्त हो।
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