पूर्वजों का श्राद्धकर्म करना आवश्यक क्यों ?

पितृपक्ष अर्थात वह समय जो हमे उनके लिए कुछ करने का अवसर प्रदान करता है जिनकी वजह से आज हमारा अस्तित्व है अर्थात हमारे पूर्वज। यदि हमारे पूर्वज न होते तो आज हम भी ना होते, न ही ये परिवार होता, न यह सुख, समृद्धि, वैभव और ये जीवन ही होता। पितृ पक्ष में पितरो की अपनी सन्तानो से आशा और उनकी सन्तानो के कर्तवो की समस्त पौराणिक जानकारी आज आपको इस लेख के माध्यम से प्राप्त होगी।  Pitra Paksha विशेष महत्त्व | P itru Paksha Rituals ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है। कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। ये लहरें, तरंगें न केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती हैं। श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति सद्गति, मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है। इसके अलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।  मनुस्मृति में लिखा है- यदाति विधिवत् सम्यक् श्रद्धासमन्वितः ।  तत्तत् पितॄणां भवत

Swami Parmanand Giri Ji Maharaj Vishesh Vyaktitva

परमानन्द जी महाराज का व्यक्तिव

नमस्कार दोस्तों आज हम आप सभी के समक्ष एक ऐसे महात्मा के बारे में चर्चा करने आए हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव समाज की सेवा को समर्पित कर दिया। जिन्होंने निस्वार्थ भाव से समस्त मानव जाति की आजीवन सेवा की और आज भी पूरे विश्व में एक युगपुरुष के रूप में पूजे जाते हैं जिन्हें हम सभी युगपुरुष महामंडलेश्वर स्वामी श्री परमानंद जी महाराज के नाम से जानते हैं। 

स्वामी जी के जीवन चरित्र के बारे में जितनी भी गाथाएं कहीं जाए वह कम है। स्वामी जी का चरित्र और उनके जीवन के मुख्य प्रसंगों के विषय में हम पहले ही बहुत से लेखो में चर्चा कर चुके हैं। अखंड परम धाम के नाम से स्वामी जी का आश्रम विद्यमान है जहां से चारों तरफ स्वामी जी ज्ञान का प्रकाश फैलाते आ रहे हैं। भारत भूमि सदैव से ऋषि-मुनियों की भूमि रही है।  इस पवित्र भूमि पर सदैव से वेद मंत्रों के आलाप गूंजते रहे हैं और वेद मंत्रों के इन्हीं आलापों के कारण भारतवर्ष की भूमि पवित्र बनी हुई है। 

स्वामी श्री परमानंद जी महाराज सदैव से एक ही बात पर विचार करते आ रहे हैं और अपनी समस्त कथाओं में और अपने उपदेशों में उन्होंने केवल राम नाम के महत्व को समझाने का प्रयास किया है। वह सदैव यही कहते आए हैं किस हार्ड मांस के इस शरीर में अगर कुछ है तो केवल राम है। राम है तो हम हैं राम नहीं तो हम नहीं। राम के सिवा इस समस्त संसार में कुछ भी नहीं। स्वामी जी के पावन उपदेशो को सुनकर समस्त मानव जाति आज कृतार्थ हो रही है। 

उन के सानिध्य में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट भी संगठित हुई जिसमें स्वामी जी को एक मुख्य पद प्रदान किया गया। स्वामी जी के दिशा निर्देशों में राम मंदिर की कार्य प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा हैं और समस्त कासेवक स्वामी श्री परमानन्द जी महाराज के सानिध्य से कृतार्थ हो रहे हैं। 

यूं तो महापुरुषों के जीवन की व्याख्या करना हर किसी के लिए सहज नहीं है। महापुरुष अपनी ही धुन में रमे रहते हैं जैसे कि स्वामी श्री परमानंद जी महाराज लोक कल्याण हितार्थ श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में शामिल हुए। उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस से लेकर राम जन्मभूमि ट्रस्ट के संगठित होने तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिस कारण आज समस्त भारतवर्ष के सनातन प्रेमी स्वामी जी को अपना प्रिय मानते हैं क्योंकि सनातन धर्म की संपूर्ण समझ को आमजन तक समझाने का श्रेय परम श्रद्धेय श्री स्वामी परमानंद जी महाराज को जाता है। 

जैसे हम सभी ने हमेशा परमानंद जी महाराज के प्रवचन में सुना होगा कि वो एक बात सदैव कहते हैं कि "जा मरने से जग डरे, मेरे मन परमानंद" अर्थात मृत्यु से सारा संसार डरता है परंतु जो आत्म ज्ञानी होता है वह मृत्यु के भय से कभी भयभीत नहीं होता क्योंकि वह जानता है कि मृत्यु से डरना नहीं चाहिए क्योंकि मृत्यु वह स्थिति है जहां आत्मा को परम आनंद की प्राप्ति होती है। 

अगर कुछ पीछे छूटता है तो वह केवल यह शरीर है जो कि सदा नश्वर था और नश्वर ही रहेगा परंतु इसके अंदर जो दिव्य चेतना स्वरुप परमात्मा का अंश अर्थात आत्मा है वह अजर अमर है और वह इस शरीर को त्यागते ही परमपिता परमेश्वर में विलीन होकर परमानंद की अनुभूति करती है। अतः किसी भी जीव को मृत्यु आने पर शोक नहीं करना चाहिए। 

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