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Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?

Tulsi Mala: तुलसी की माला किस दिन पहने? तुलसी की माला कब नही पहनी चाहिए?  तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं अपितु सनातन धर्म में तुलसी को देवी अर्थात माता का स्थान प्रदान किया गया है। तुलसी के महत्व की बात करें तो बिन तुलसी के भगवान भोग भी स्वीकार नहीं करते, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है। तुलसी माला का आध्यात्मिक महत्व हिंदू और बौद्ध परंपराओं में गहराई से निहित है। यहाँ कुछ प्रमुख पहलू हैं: देवताओं से संबंध भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण: तुलसी को हिंदू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है, जो अक्सर भगवान विष्णु और उनके अवतारों से जुड़ा होता है, जिसमें भगवान कृष्ण भी शामिल हैं। माना जाता है कि तुलसी माला पहनने के लिए उनके आशीर्वाद और सुरक्षा को आकर्षित करने के लिए माना जाता है। पवित्रता और भक्ति का प्रतीक शुद्धता: तुलसी संयंत्र अपनी पवित्रता के लिए श्रद्धा है। तुलसी माला पहनने से विचारों, शब्दों और कार्यों में पवित्रता बनाए रखने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भक्ति: यह आध्यात्मिक प्रथाओं के प्रति समर्पण और समर्पण का एक निशान है। भक्तों ने मंत्रों और प्रार्थनाओं का जप करने के लिए...

मोहिनी एकादशी व्रत कथा | मोहिनी एकादशी की दुर्लभ कथा | मोहिनी एकादशी महात्म कथा

॥ अथ मोहिनी एकादशी माहात्म्य ॥

धर्मराज युधिष्ठिर बोले-हे कृष्ण! वैशाख माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम तथा क्या कथा है? इसकी व्रत करने की कौन सी विधि है? सो सब विस्तार पूर्वक कहिए।
श्रीकृष्ण भगवान बोले कि हे धर्मनन्दन! मैं एक कथा कहता हूँ जिसको महर्षि वशिष्ठ जी ने श्रीरामचन्द्रजी से कहा था। श्रीरामचन्द्रजी बोले-हे गुरुदेव! आप मुझसे कोई ऐसा व्रत कहिए जिससे समस्त पाप और दुःख नष्ट हो जावें ।

मेहिनी एकादशी की दुर्लभ कथा
Mohini Ekadashi Vrat Katha

महर्षि वशिष्ठ बोले-हे राम! आपके नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है, इसलिए आपका यह प्रश्न लोक हित में अवश्य होगा। वैशाख माह के शुक्लपक्ष में एकादशी होती है उसका नाम मोहिनी है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त पाप तथा दुःख छूट जाते हैं। इसके व्रत के प्रभाव से प्राणी मोह जाल से छूट जाता है। अतः हे राम! इस एकादशी का व्रत दुःखी मनुष्यों को अवश्य ही करना चाहिए। एकादशी के व्रत से मनुष्य के समस्त पाप दुःख नष्ट हो जाते हैं। अब आप इसकी कथा सुनिये।
सरस्वती नदी के किनारे एक भद्रावती नगरी में एक धनपाल नाम का धनधान्य से पुण्यवान एक वैश्य रहता था। वह अत्यन्त धर्मात्मा था और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेकों भोजनालय, प्याऊ, कुआ, तालाब, धर्मशाला आदि बनवाये। उसने सड़को के किनारे अनेक वृक्ष लगवाये। उस वैश्य के पांच पुत्र थे। उसका सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी था। वह दूसरों की स्त्रियों के साथ भोग-विलास करता था। वह महान नीच था और देवता पितृ आदि को नहीं मानता था। वह अपने पिता के धन को बुरे व्यसनों में खर्च किया करता था। इस पर उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से बाहर निकाल और उसकी निन्दा करने लगे।
घर से निकाल देने के बाद धन नष्ट हो जाने पर वेश्याओं ने तथा गुण्डों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख और प्यास से दुःखी रहने लगा। अब उसने चोरी करने का विचार किया और रात्रि में चोरी करने लगा। एक दिन वह पकड़ा गया और राजा ने उसे कारागार में बन्द कर दिया। कारागार में राजा ने उसको बहुत दुःख दिये और उससे नगर छोड़ने को कहा अंत में वह दुःखी होकर नगरी को छोड़ गया और जंगल में रहने लगा। वह बहेलिया बन गया और धनुष बाण से पशु-पक्षियों को मार 'से २ कर लाने लगा।
एक दिन वह पापी भूख और प्यास से व्याकुल खाने की खोज में निकल पड़ा और कोटिन्य ऋषि के आश्रम पर जा पहुंचा। उस समय वैशाख का महीना था। कोटिन्य ऋषि गंगा स्नान करने आये थे। उन के भीगे वस्त्रों के छींटे मात्र से इस पापी को कुछ सुबुद्धि प्राप्त वह पापी मुनि के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगा-हे मुनि! मैंने अपने जीवन में बहुत से पाप किये हैं। आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण और बिना धन का उपाय बतलाइये। तब ऋषि बोले कि तू ध्यान देकर सुन तू तू वैशाख माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कर इस एकादशी का नाम मोहनी है। इसका व्रत करने से तेरे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे। मुनि के वचनों को सुनकर वह बहुत खुश हुआ और मुनि की बतलाई हुई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया ।
हे रामजी! उस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गये और अन्त में गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक गया। इस व्रत से मोह आदि भी नष्ट हो जाते हैं। इसके माहात्म्य को श्रवण व पठन से एक सहस्त्र गौदान के बराबर पुण्य मिलता है।

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