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Vishnu Sahasranama Stotram in Sanskrit

Vishnu Sahasranama Stotram विष्णु सहस्रनाम , भगवान विष्णु के हज़ार नामों से बना एक स्तोत्र है। यह हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र और प्रचलित स्तोत्रों में से एक है। महाभारत में उपलब्ध विष्णु सहस्रनाम इसका सबसे लोकप्रिय संस्करण है। शास्त्रों के मुताबिक, हर गुरुवार को विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से जीवन में अपार सफलता मिलती है। इससे भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि आती है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से मिलने वाले फ़ायदे: मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यश, सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सफलता, आरोग्य, और सौभाग्य मिलता है। बिगड़े कामों में सफलता मिलती है। कुंडली में बृहस्पति के दुष्प्रभाव को कम करने में फ़ायदेमंद होता है। भौतिक इच्छाएं पूरी होती हैं। सारे काम आसानी से बनने लगते हैं। हर ग्रह और हर नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है । विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने के नियम: पाठ करने से पहले पवित्र होना ज़रूरी है। व्रत रखकर ही पाठ करें। व्रत का पारण सात्विक और उत्तम भोजन से करें। पाठ करने के लिए पीले वस्त्र पहनें। पाठ करने से पहले श्रीहरि विष्णु की विधिवत पूजा

उनचास मरुत का क्या अर्थ है ? | वायु कितने प्रकार की होती है?

Unchaas Marut | उनचास मरुत

तुलसीदास ने सुन्दर कांड में, जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।

अर्थात : जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो तब परमेश्वर की इच्छा से समस्त 49 मरुत हवाएं अपने चरम पर चलने लगी, जिस कारण लंका धू-धू करके जलने लगी। 
हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।
49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ। तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि हवा अर्थात वायु कितने प्रकार की होती है? 
वह एक आम इंसान की भांति अपनी छोटी सी बुद्धि के कारण केवल इतना ही समझते हैं कि जल में चलने वाली वायु, आकाश में चलने वाली वायु, पृत्वी पर चलने वाली वायु, सब एक ही है परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि हमारे वेदों में साफतौर पर आकाश, जल, थल, पाताल अदि में चलने वाली वायु को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है और उनके अलग-अलग नाम भी बताए गए हैं। 
इतना ही नहीं अगर हम ध्यान से पढ़ें तो वहां पर हमें अलग-अलग प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है जिनके गुण भी अलग-अलग बताए गए हैं क्योंकि आकाश में, जल में, अंतरिक्ष में, पाताल में सब जगह अलग-अलग प्रकार की वायु ही चलती है। अलग होने कारण इनकी विशेषता और गुण भी एक-दुसरे से भिन्न है। 
ये 7 प्रकार हैं- 1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।*
1. प्रवह : प्रवह नाम की वायु आकाश में मेघ मंडल के भीतर स्थित होती है। यही वह वायु है जो आकाश में स्थित बादलों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित अर्थात प्रवाहित करती रहती है। अत्यधिक ग्रीष्म ऋतु पड़ने पर, अत्यधिक सर्दी होने पर जो मेघ आकाश में स्थित होते हैं उनको समुद्र के जल से सिंचित करके उन बादलों को वर्षा योग्य बनाने का श्रेय भी इसी प्रवह नाम की वायु को दिया जाता है।

 2. आवह : वेदों में वर्णित जो दूसरी प्रकार की वायु है उसका नाम आवह है। इस वायु का निवास स्थान सूर्य मंडल में माना जाता है। सूर्य मंडल को घुमाने की प्रक्रिया में ईश्वरी शक्ति द्वारा आवह प्रकार की वायु को ही ध्रुव के द्वारा आबद्ध करके सूर्य मंडल को घुमाने की प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है। 

3. उद्वह : वेदों में जो तीसरे प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है उसका नाम उद्वह है। उद्वह प्रकार की वायु का प्रतिष्ठित स्थान चंद्र मंडल में माना जाता है। ईश्वरी शक्ति द्वारा इस वायु के द्वारा ही चंद्र मंडल को घुमाने की प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए ध्रुव से इस वायु को संबद्ध कर के चंद्र मंडल को घुमाया जाता है।  

4. संवह : वेदों में वर्णित चतुर्थ प्रकार की वायु है उसका नाम संवह माना जाता है। इस वायु को ध्रुव से आबद्ध उसके संपर्क से संपूर्ण नक्षत्र मंडल को घुमाने की प्रक्रिया दैवीय शक्तियों द्वारा की जाती है। वेदों में स्पष्ट रूप से वर्णित है की संवह नाम की वायु का निवास स्थान नक्षत्र मंडल है। 

5. विवह : वेदों में जो पांचवी प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है उसका नाम विवह है। विवह नाम की वायु का निवास स्थान ग्रह मंडल को माना जाता है। ईश्वरीय शक्तियों द्वारा विवह नाम की वायु को ध्रुव से संबंध करके समस्त ग्रह मंडल को गति प्रदान की जाती है। इसी कारण समस्त ग्रह अपनी दिशा में घूमना प्रारंभ कर देते हैं। 

6. परिवह : वेदों में वर्णित छठे प्रकार की वायु का नाम परिवह माना जाता है। परिवह नाम की वायु का निवास स्थान सप्त ऋषि मंडल को माना जाता है। इस वायु को ध्रुव से सम्बद्ध करके दिव्य शक्तियों के द्वारा सप्त ऋषि मंडल को संचालित करने के लिए सप्त-ऋषियों को गति प्रदान की जाती है। सप्तर्षियों को सप्त ऋषि मंडल में भ्रमण करने में सहायता प्रदान करने के लिए परिवह नमक वायु का उपयोग किया जाता है। 

7. परावहवेदों में वर्णित सांतवे प्रकार की वायु का नाम पर परावह माना जाता है। परावह नाम की वायु का निवास स्थान ध्रुव मंडल को माना जाता है। इस वायु के द्वारा जी ध्रुव मंडल के साथ अन्य मंडल एक स्थान पर स्थित रहते हैं। 
वेदो में वर्णित सांतो वायुओं के ७-७ गण भी मने जाते है जो अलग-अलग लोको में भ्रमण करते रहते है।  जैसे अंतरिक्ष, इंद्रलोक, ब्रह्मलोक, भूलोक की पश्चिम दिशा, पूर्व दिशा, उत्तर दिशा, दक्षिण दिशा इत्यादि। 
अतः हम कह सकते है की 7*7=49 अर्थात कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
कितना अद्भुत ज्ञान है ये। हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात हो सकती है बस हमे उस ज्ञान को ग्रहण करने की लालसा होनी चाहिए।

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