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एकादशी व्रत कथा ब्लॉग एकादशी और कई पौराणिक कथाओं के बारे में विस्तार से बताता है। यह ब्लॉग सनातन धर्म से जुड़े हर रहस्य को उजागर करने में सक्षम है। एकादशी ब्लॉग के माध्यम से हम आप सभी तक पूरे वर्ष में पड़ने वाली सभी 26 एकादशी की कथा को विस्तार से लेकर आए है। इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी को सनातन धर्म से जुड़ने का एक अवसर प्राप्त होने जा रहा है।
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Kamada Ekadashi: कामदा एकादशी व्रत महात्म्य कथा | कामिका एकादशी व्रत कथा महात्म
॥ अथ कामदा एकादशी व्रत माहात्म्य ॥
प्रिय भक्तो कामदा एकादशी को कामिका एकादशी भी कहते है। एकादशी का पुण्य शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता क्योकि वेद और शाश्त्र भी एकादशी व्रत महात्मा को सम्पूर्ण रूप से व्यक्त करने में असमर्थ रहे है और नेति-नेति कहकर इस व्रत के प्रभावों को बताते है।
कामदा या कामिका एकादशी व्रत कथा
कुन्ती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान अब आप मुझे श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की सविस्तार कथा सुनाइए। उस एकादशी का नाम तथा उसकी विधि क्या है। उस में कौन से देवता की पूजा होती है।
श्रीकृष्ण भगवान बोले- हे राजन! मैं एकादशी की कथा कहता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो। एक समय इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोक हित के लिए नारदजी से कहा था। एक समय नारद जी ने पूछा कि पितामह! आज मेरी श्रावण माह के कृष्णपक्ष की एकादशी की कथा सुनने की इच्छा है। अतः अब आप एकादशी की व्रत कथा विधि सहित सुनाइये। भीष्म पितामह नारदजी के वचनों को सुनकर बोले-हे नारद जी आपने मुझसे यह अत्यन्त सुन्दर प्रश्न किया है अब आप ध्यान लगाकर सुनिये।
श्रावण माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम कामदा है। इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। कामदा एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन्हें गंगा स्नान के फल से भी बड़ा फल मिलता है। यही फल सूर्य, चन्द्र ग्रहण, केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से मिलता है।
श्रीविष्णु भगवान के पूजन का फल समुद्र और बन सहित पृथ्वी दान करने और सिंह राशि वालों को गोदावरी नदी में स्नान के फल से भी अधिक होता है। व्यतीपात में गण्डक नदी में स्नान करने से जो फल मिलता है। वह फल भगवान की पूजा करने से मिल जाता है। भगवान की पूजा का फल श्रावण मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के फल के बराबर है।
अतः भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न बन सके तो श्रावण माह के कृष्णपक्ष की कामदा एकादशी से का व्रत अवश्य करना चाहिए। आभूषण से युक्त बछड़ा सहित गौ दान करने से जो फल मिलता है, वह फल कामदा एकादशी के व्रत से मिल जाता है।
जो उत्तम द्विज श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिदा एकादशी का व्रत करते हैं तथा श्री विष्णु भगवान की पूजा करते हैं उससे समस्त वेद, नाग, किन्नर पितृ आदि की पूजा हो जाती है। हे नारद स्वयं भगवान ने अपने मुख से कहा है कि मनुष्यों को अध्यात्म विद्या से जो फल मिलता है उसका अधिक फल कामिदा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। इस व्रत के करने से मनुष्य अन्तिम समय अनेक दुःखों से युक्त यमराज तथा नर्क के दर्शन नहीं करता। कामिदा एकादशी के व्रत तथा रात्रि के जागरण से मनुष्य को कुयोनि नहीं मिलती और अन्त में स्वर्गलोक को जाता है।
जो उत्तम मनुष्य श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिदा एकादशी को तुलसी से भक्ति पूर्वक श्री विष्णु भगवान की पूजा करते हैं वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इससे इस प्रकार अलग रहते हैं जिस प्रकार कमल जल में रहता हुआ भी जल से अलग रहता है। भगवान की तुलसी दल से पूजा करने का फल एक भार स्वर्ण और चार भार चाँदी के दान के फल के बराबर है। श्री विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि, आभूषण आदि की अपेक्षा तुलसी दल से अधिक प्रसन्न होते हैं। जो मनुष्य भगवान की तुलसीदल से' हो जाते हैं। पूजा करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट
हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अत्यन्त प्रिय श्री तुलसीजी को नमस्कार करता हूँ। तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है। तुलसीजी को जल से स्नान कराने से मनुष्य की समस्त यमयातनायें नष्ट हो जाती हैं। जो मनुष्य तुलसी जी को भक्ति पूर्वक भगवान के चरण कमलों में अर्पित करता है उसे मुक्ति मिलती है।
जो मनुष्य एकादशी के दिन भगवान के सामने दीप जलाते हैं उनके पितृ स्वर्गलोक में सुधा का पान करते हैं। जो मनुष्य भगवान के सामने घी या तिल के तेल का दीपक जलाते हैं उनको सूर्य लोक में भी सहस्त्रों दीपकों का प्रकाश मिलता है। इस व्रत के करने से ब्रह्म हत्या, ब्राह्मण-हत्या आदि सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं और इस लोक में सुख भोगकर अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिदा एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को जाते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
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