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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

अहंकार: मै का घमंड | लकड़हारे का 5 बोरी अनाज

 मै का घमंड ?? 

मित्रों आज का शीर्षक है "मैं का घमंड" अर्थात हर प्राणी में मौजूद उसका अहंकार ही उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है परंतु हम अपने अहंकार को अपने मैं को ही अपना सबसे प्रिय मित्र मानते हैं और उसी को मित्र मानकर जीवन में अनेकों गलतियां करते चले जाते हैं। जैसे अपने अहंकार में आकर दूसरों का दिल दुखा देते हैं और ईश्वर को नाराज कर देते हैं जिसका खामियाजा कभी ना कभी अपने जीवन काल में हमें बहुत ना पड़ता है। 
ईश्वर की कृपा और मनुष्य के अहंकार से जुड़ी एक कथा आज याद आती है। यह कथा एक गरीब लकड़हारे की है जो लकड़ी काट कर अपना जीवन जीता था। वह बहुत गरीब था। उसे भरपेट भोजन की व्यवस्था भी ना हो पाती थी। वह मेहनत तो करता था पर बहुत कम अनाज ही उसको प्राप्त हो पाता था जिससे उसका पेट नहीं भर पाता था परंतु उस लकड़हारे में एक मानवीय गुण था जो बहुत कम लोगों में पाया जाता है कि वह लकड़हारा गरीब होने के बाद भी बहुत दयालु स्वभाव का था।  उसे अपने दुख के साथ-साथ दूसरे गरीबों का भी दुःख दिखता था। 
एक बार वह लकड़हारा जंगल में लकड़ियां काट रहा था तभी उसे दूर से आता हुआ एक साधु दिखाई पड़ा। वह साधु बहुत ही तेजस्वी था। उनको देखकर लकड़हारे के मन में यह बात आई की यह महात्मा कोई साधारण पुरुष नै लगते क्योकि इनमें तेज है। 
उस लकड़हारे ने उन दिव्य महापुरुष को प्रणाम करके उनसे प्रार्थना की की हे मुनिवर आप तो अध्यात्म से जुड़े हुए हैं। आपने तो ईश्वर के दर्शन किए ही होंगे। आप से मेरी प्रार्थना है कि जब कभी भी आपको ईश्वर के दर्शन हो तो उनसे मेरे कष्ट  का कारन पूछते हुवे बोलियेगा की मैं बहुत मेहनत करता हूँ पर फिर भी दुखी रहता हूँ और भर पेट भोजन भी नहीं खा पता। मेरे इतना मेहनत करने पर भी मेरा पेट क्यों नहीं भर पाता। लकड़हारे की प्रार्थना सुनकर वह साधु अर्थात वे मुनिवर वहां से चले गए। 
कुछ समय बीतने के बाद एक दिन वहीं साधु उस लकड़हारे को फिर से जंगल में मिला और मुनिवर को देखकर उस लकड़हारे ने मुनि से पूछा कि हे महात्मा क्या आपने मेरा प्रश्न ईश्वर से पूछा? क्या आपने उनसे मेरे दुख का कारण पूछा?
तब वह महात्मा बोले हे लकड़हारे मैंने तुम्हारे कष्ट के बारे में ईश्वर से जब पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि तुम्हारे संपूर्ण जीवन में तुम्हारे भाग्य में केवल 5 बोरी अनाज ही लिखा है। इसीलिए भगवान तुम्हें रोज थोड़ा-थोड़ा ही अनाज प्रदान करते हैं ताकि तुम अपनी पूर्ण आयु जी सको क्योंकि तुम्हारी कुल आयु की अवधि ईश्वर ने 60 वर्ष तय की है। 
महात्मा की बात सुनकर लकड़हारा व्यथित हो उठा और दुखी मन से उसने महात्मा से बोला कि हे महात्मा अब जब अगली बार आपको भगवान के दर्शन हो तब आप उनसे मेरी तरफ से प्रार्थना कीजिएगा कि मेरे संपूर्ण जीवन का अनाज वे मुझे एक ही बार में प्रदान कर दे क्योंकि मेरा पेट नहीं भर पाता। अगर वे मुझे एक साथ मेरा 5 बोरी अनाज प्रदान कर देंगे तो कम से कम 1 दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूंगा। लकड़हारे की अब प्रार्थना सुनकर मुनिवर फिर से वहां से चले गए। 
मुनिवर के जाने के पश्चात अगले दिन से ही एक आश्चर्यजनक घटना घटित होनी शुरू हो गई। अगले दिन प्रातः जब उस लकड़हारे की आंख खुली तो उसके घर पर 5 बोरी अनाज रखा मिला। उस 5 बोरी अनाज को देखकर वह लकड़हारा व्याकुल हो उठा और उसको लगा कि लगता है ईश्वर ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए मेरे संपूर्ण जीवन का अनाज मुझे एक साथ ही प्रदान कर दिया है। 
उस अनाज को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने संपूर्ण अनाज को एक साथ ही पका लिया और भरपेट भोजन खुद भी किया और दूसरे गरीब और भूखों को भी सारा अनाज खिलाया। 
उस दिन उसने अपना पेट भी भरा और बाकी भूखे लोगों का भी पेट भरा। जो गरीब थे, भूखे थे, जिन्हें कई दिनों से भोजन प्राप्त नहीं हुआ था, ऐसे सभी गरीब लोगों को बुलाकर उसने अपना संपूर्ण अनाज उन सब में बांट दिया और स्वयं भी खा लिया। भोजन पकाने और गरीबों को भोजन खिलाने के दौरान उसे अपने काम पर जाने का समय नहीं मिला और वह लकड़िया नहीं काट पाया और उस दिन थक हार कर सो गया। 
अगले दिन जब उस लकड़हारे की आंख खुली तब फिर से यही चमत्कार उसके साथ हुआ और उसके घर पर फिर से 5 बोरी अनाज रखा मिला। वह विस्मय में था कि अब यह 5 बोरी अनाज कहां से आया परंतु कोई उत्तर प्राप्त ना होते देख उसने उस सारे अनाज को फिर से पका लिया और अपना पेट भी भरा और बाकी लोगों का भी पेट भरा। 
वह खुद भी खाता व् अन्य गरीबों को भी खिलाता। यही चमत्कार उसके जीवन में दिन-प्रतिदिन होता रहा और प्रत्येक दिन जब सुबह उसकी आंख खुलती तो उसके घर पर उसे 5 बोरी अनाज मिल जाता और वह खाना पकाने और गरीबों को भोजन कराने में ही अपना दिन व्यतीत करने लगा परन्तु उसे अपने काम पर जाने का समय ही नहीं मिल पाता था। 
फिर अचानक से 1 दिन उसको उन्हीं महात्मा जी के दर्शन हुए जिनसे उसने ईश्वर तक अपनी प्रार्थना पहुंचाने की बात की थी। उस लकड़हारे ने अपार हर्ष के साथ मुनि के दर्शन किए और अचंभित होकर उसने मुनि से कहा की हे मुनिवर आपने तो कहा था कि मेरे संपूर्ण जीवन काल में केवल 5 बोरी अनाज ही लिखा है परंतु देखिए मुझे तो प्रतिदिन 5 बोरी अनाज मेरे घर पर ही ईश्वर की कृपा से प्राप्त हो जाता है। आखिर ये चमत्कार कैसे होता है? कृपया कर मेरे अज्ञान के द्वार को खोलकर मुझे प्रकाश दिखाइए। 
उसके इस प्रकार प्रार्थना करने पर मुनिवर बोले हे लकड़हारे तुम्हारे भाग्य में तो केवल 5 बोरी अनाज ही लिखा था परंतु तुमने अपने भाग्य में लिखे उस पांच बोरी अनाज को अपने जीवन और अपनी भविष्य की चिंता न करते हुए अन्य गरीब और भूखों को बांट कर खिला दिया। इसलिए ईश्वर तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हो गए और अब भगवान् तुमको उन गरीबों के भाग्य का अनाज भी प्रदान करते हैं ताकि तुम खुद भी पेट भर खा सको और उनको भी खिला सको। 
इस कथा का सारांश यह निकल कर आता है कि जीवन में जिसको जो भी प्राप्त होता है वह सब कुछ ईश्वर की इच्छा से ही होता है। हम तो केवल निमित्त मात्र होते हैं और हमें अपने निमित्त होने का भी घमंड हो जाता है। 
अतः इस कथा के माध्यम से हम सभी को यह समझना होगा कि हमें निमित्त होने का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि सबको उनके भाग्य अनुसार जो कुछ भी प्राप्त होता है वह केवल और केवल ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त होता है। हम तो अपने बालक को भी कोई खिलौना दिलाते समय मन में अहंकार करने लगते हैं कि मैंने दिलाया। किसी गरीब को खिलाते समय अहंकार करते हैं कि मैंने खिलाया परंतु वास्तविकता तो यह है कि ईश्वर की कृपा से किसी गरीब को भोजन खिलाते समय, किसी गरीब को कपड़ा पहनते समय हम निमित्त बन जाते हैं और भगवान हमारे माध्यम से उन गरीबों का कल्याण करते हैं और हमें निमित्त बनाकर उस दान का पुण्य भाग हमें प्रदान कर देते हैं। 
भगवान कितने दयालु हैं, कितने कृपालु हैं क्योंकि वे अकारण ही कृपा कर देते हैं। अतः हमें कभी भी अहंकार या घमंड नहीं करना चाहिए और अपने मैं को सदा-सदा के लिए त्याग देना चाहिए। 

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