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Showing posts from December, 2023

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

Aryabhata: आचार्य आर्यभट का जीवन परिचय

जब बात भारत के इतिहास की होती है तो अनेको ऐसी बाते खुल कर सामने आती है जिनको जानने के बाद हमे ये अहसास होता है की हमारे पूर्वज कितने ज्ञानी थे।सनातन धर्म की नींव रखने वाले हमारे पूर्वजों ने संसार की प्रगति के लिए जो योगदान दिया था उसे कभी नकारा नहीं जा सकता। आज हम ऐसे ही एक महान विद्वान की बात करेंगे जिन्होंने समस्त संसार में अपनी प्रतिभा से भारत के नाम का झंडा गाड़ दिया। आइए जानते हैं उस महान विद्वान आर्यभट के बारे में। गणितज्ञ आर्यभट  Acharya Aryabhata आचार्य आर्यभट (476-550 ईस्वी) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। आर्यभट ने 'आर्यभटीय' नामक एक ग्रंथ लिखा था। इस ग्रंथ में उन्होंने ज्योतिषशास्त्र के कई सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। आर्यभट ने अपने ग्रंथ में अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 (476) लिखा है। आर्यभट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने 23 साल की उम्र में ही 'आर्यभटीय' नामक ग्रंथ लिखा था। आर्यभट के शिष्य प्रसिद्ध खगोलविद वराह मिहिर थे। आर्यभट ने वर्गमूल निकालना, द्विघात समीकरणों को हल करना, और ग्रहण की भविष्...

पीपल का पूजन क्यों? | सनातन धर्म में पीपल को पूजनीय क्यों माना जाता है?

पौराणिक काल से ही सनातन धर्म में वृक्षों को पूजनीय माना जाता है। शास्त्रों पुराणों में आनेको ऐसे वृक्षों की व्याख्या मिलती है जिनकी सनातन धर्म में आज भी पूजा होती है। हिंदू धर्म में पीपल, बरगद, आम, बिल्व, और अशोक को पवित्र माना गया है। इनके अलावा, भारत में पीपल, तुलसी, वट वृक्ष, केला, और बेलपत्र जैसे पेड़ों की पूजा की जाती है।  Peepal Ka Ped ( Ficus religiosa or sacred fig plant) शास्त्रों में पीपल को देव वृक्ष कहा गया है। ऐसा कहा जाता है कि इस पेड़ के हर पत्ते पर देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है। तैत्तिरीय संहिता में प्रकृति के सात पावन वृक्षों में पीपल की गणना है और ब्रह्मवैवर्तपुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी उल्लेख मिलता है। पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् विष्णु का रूप है। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत् पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् व...

Ekadashi: Mokshada Ekadashi Vrat Katha | मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

संसार के सभी व्रतों में एकादशी का व्रत विशेष महत्व रखता है। यू तो सनातन धर्म में बताए गए प्रत्येक व्रत को करने से प्राणी के सतोगुण की वृद्धि होती है, उसका चित शुद्ध होता है और साधक का आध्यातिक कल्याण होता है परंतु जो प्राणी ज्यादा व्रत इत्यादि न कर सके उनको एकादशी का व्रत करने का अनुग्रह शास्त्रों द्वारा किया गया है। ॥ अथ मोक्षदा एकादशी महात्म्य ॥ श्री युधिष्ठर बोले कि हे भगवान! आप सबको सुख देने वाले हैं और जगत के पति हैं इसलिये मैं आपको नमस्कार करता हूँ। कृपाकर मेरे एक संशय को दूर कीजिये। मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम क्या है। उस दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है और उसकी विधि क्या है? भगवन मेरे इन प्रश्नों का उत्तर देकर मेरे संदेह को दूर कीजिये। भगवान श्री कृष्णजी बोले हे राजन! आप ने अन्यन्त उत्तम प्रश्न किया है। आप ध्यान पूर्वक सुनिये मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष की एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन श्रीदामोदर भगवान की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिये। अब मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से नरक मे...