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सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

पापमोचनी एकादशी महात्म्य कथा | पापमोचनी एकादशी महात्म्य | Papmochani Ekadashi Vrat Katha

॥ अथ पापमोचनी एकादशी माहात्म्य ॥

धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे भगवान! मैंने फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य सुना अब आप चैत्र माह के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में बतलाइये। इस एकादशी का नाम, इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है तथा विधि क्या है? सो सब सविस्तार पूर्वक कहिये ।
श्री कृष्ण भगवान बोले-हे राजन! एक समय मान्धाता ने लोमश ऋषि से ऐसा ही प्रश्न पूछा था तब लोमश ऋषि ने उत्तर दिया हे राजन! चैत्र माह के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है।
प्राचीन समय में एक चैत्ररथ वन में अप्सरायें वास करती थीं। वहां हर समय बसन्त रहता था। उस वन में एक मेधावी नामक मुनि तपस्या करते थे। वे शिव भक्त थे। एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा उनको मोहित करने के लिए सितार बजाकर मधुर २ गाने गाने लगी। उस समय शिव के शत्रु अनंग (कामदेव) भी शिव भक्त मेधावी मुनि को जीतने के लिए तैयार हुए। कामदेव ने उस सुन्दर के भ्रू को धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यंचा (डोरी बनाई) उसके नेत्रों को उसने संकेत बनाया और कुचों को कुरी बनाया। उस मंजुघोषा अप्सरा को सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव अपने शत्रुभक्त को जीतने को तैयार हुआ।
इस समय मेधावी मुनि भी युवा तथा हृष्ट पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दण्ड धारण कर रखा था। उन मुनि को देखकर मंजुघोषा ने मधुरवाणी से वीणा पर गाना शुरू किया। मेधावी मुनि भी मंजुघोषा के मधुर गान पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गये। वह अप्सरा उन मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर आलिंगन करने लगी। वह उसके सौन्दर्य पर मोहित होकर शिवरहस्य को भूल गये और काम के वशीभूत होने के कारण उन्हें दिन रात्रि का कुछ भी ध्यान न रहा। एक दिन मंजुघोषा उस मुनि से बोली हे मुनि! अब मुझे बहुत समय हो गया है। स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए उस अप्सरा के ऐसे वचनों को सुनकर मुनि बोले-हे सुन्दरी! तू तो आज इस संध्या को आई है। अभी प्रातःकाल तक ठहरो। मुनि के वचनों को सुनकर वह उनके साथ रमण करने लगी और फिर उसने मुनि से कहा बहुत समय बिता दिया। 

हे मुनिदेव ! अब आप मुझे स्वर्ग को जाने की आज्ञा दीजिये। मुनि बोले-अरी! अभी तो कुछ भी समय नहीं हुआ है अभी कुछ और देर ठहर इस पर वह अप्सरा बोली-हे आपकी रात्रि तो बहुत लम्बी है। अब आप सोचिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया। उस अप्सरा के वचनों को सुनकर मुनि को ज्ञान प्राप्त हो गया और समय का विचार करने लगे। जब रमण करने का समय का प्रमाण ५७ साल ७ माह और ३ दिन ज्ञात हुआ तो उस अप्सरा को काल का रूप समझने लगे। वह महान क्रोधित हुए और तप नाश करने वाली अप्सरा की तरफ देखने लगे। उनके अधर कांपने लगे और इन्द्रियाँ व्याकुल होने लगीं। वह मुनि उस अप्सरा से बोले- हे दुष्ट! मेरे तप को नष्ट करने वाली! तू अब मेरे श्राप से पिशाचिनी हो जा। तू महान पापिनी और दुराचारिणी है। तुझे धिक्कार है।
उस मुनि के श्राप से वह पिशाचनी हो गई तब वह बोली- हे मुनि! अब मुझ पर क्रोध को त्यागकर प्रसन्न हो जाओ और इस शाप का निवारण कीजिये। तब मुनि को कुछ शांति मिली और पिशाचिनी से बोले-रे दुष्ट! मैं शाप से छूटने का उपाय बतलाता हूं। चैत्र माह के कृष्णपक्ष की जो एकादशी है उस का नाम पापमोचनी है उस एकादशी का व्रत करने से तेरी पिशाचनी की देह छूट जायेगी। इस प्रकार ने उसको समस्त विधि आदि बतला दी और अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये! च्वयन ऋषि अपने पुत्र को देखकर बोले रे पुत्र! तूने यह क्या किया? तेरे समस्त तप नष्ट हो गये हैं। मेधावी बोले हे पिताजी मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। आप उसके छूटने का कोई उपाय बतलाइये। च्यवन ऋषि बाले-हे तात! तुम चैत्र माह के कृष्णपक्ष को `पापमोचनी नाम की एकादशी का विधि तथा भक्ति पूर्वक व्रत करो, वचनों को सुनकर मेधावी ऋषि ने पापमोचनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास किया उसके प्रभाव से इनके समस्त पाप नष्ट हो गये। मंजुघोषा अप्सरा भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से पिशाचनी की देह से छूट गई और सुन्दर रूप धारण करके स्वर्गलोक को चली गई।
लोमश बोले-हे राजन! इस पापमोचनी एकादशी के प्रभाव से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी कथा के श्रवण व पढ़ने से एक हजार गोदान करने का फल मिलता है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या करने वाले, अगम्बा गमन करने वाले आदि के पाप नष्ट हो जाते हैं। और अन्त में स्वर्ग को जाते हैं। 

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