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Showing posts from October, 2023

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

गायत्री मंत्र: अनंत काल से परे पवित्र ध्वनि की खोज

गायत्री मंत्र, प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों से निकला एक पवित्र मंत्र है, जो समय को पार करने और हमें परमात्मा से जोड़ने की शक्ति रखता है। अपनी मनमोहक धुन और गहरे अर्थ के साथ, इसने सदियों से दुनिया भर के आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को मोहित किया है। गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता क्यों? केवल कुछ शक्तिशाली छंदों में, गायत्री मंत्र सार्वभौमिक सत्य के सार को समाहित करता है और हमें अपने आंतरिक ज्ञान को जागृत करने के लिए आमंत्रित करता है। इन पवित्र शब्दों के भीतर एक गहरा रहस्य छिपा है - कहा जाता है कि गायत्री मंत्र में अपार परिवर्तनकारी ऊर्जाएँ हैं। जप करने से या यहां तक कि केवल इसके कंपन को सुनने से, व्यक्ति शांति, आध्यात्मिक विकास और उच्च लोकों से जुड़ाव की गहरी भावना का अनुभव कर सकता है। अपने रहस्यमय गुणों से परे, गायत्री मंत्र हमारे दैनिक जीवन के लिए व्यावहारिक लाभ प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि यह मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है, भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देता है और करुणा और प्रेम जैसे दिव्य गुणों को विकसित करता है। इसके दिव्य स्पंदन के प्रति समर्पण करके, हम अपने आप को अनंत संभावन...

वृन्दावन में प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा का अनावरण: भक्ति और ज्ञान

संपूर्ण वृंदावन कृष्ण की भूमि है। कृष्ण का जन्म स्थान है क्योंकि वृंदावन में मथुरा बसा हुवा है और मथुरा में वृंदावन। कृष्ण ने मथुरा की जेल में जन्म लिया और वृंदावन के हर कण में वास किया। कृष्ण के हृदय में राधा ने निवास किया और राधा के हृदय में कृष्ण ने सदा निवास किया। यही कारण है की इतने युगों के बीतने के बाद भी आज कृष्ण के प्रेम की गूंज संपूर्ण वृंदावन में सुनाई पड़ती है राधा के नाम से।  आज जितने भक्त भगवान श्री कृष्ण को पूजते हैं उससे कहीं अधिक भक्त भगवती लाडली श्री राधे के अनुयाई है, जो हर पल राधे-राधे बोलते हैं। वृंदावन में हर किसी के मुख से आपको श्री राधे का नाम सुनाई पड़ जाएगा क्योंकि वह जानते हैं की यदि परम गति को प्राप्त करना है और कृष्ण की कृपा को प्राप्त करना है तो राधा का नाम जपना पड़ेगा। राधा की वो देवी है जिन्होंने कृष्ण के ह्रदय पटल पर सदैव राज किया है।  वृन्दावन: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय पवित्र नगरी वृन्दावन में, शांत मंत्रों और फूलों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू के बीच, एक आध्यात्मिक प्रकाश का उदय हुआ, जिसने अनगिनत भक्तों के दिलों को मंत्रमुग्ध क...

पितृपक्ष विशेष: पिंडदान करने की परंपरा क्यों?

पितृपक्ष विशेष में जानेंगे की पिंडदान करने की परंपरा क्यों है और इसके क्या लाभ हैं? क्या पिंडदान अनिवार्य होता है? पिंडदान न करने से क्या होता है? पिंडदान क्यों करना चाहिए? हिंदूधर्म में पिंडदान की परंपरा वेदकाल से ही प्रचलित है। मरणोपरांत पिंडदान किया जाता है। दस दिन तक दिए गए पिंडों से शरीर बनता है। क्षुधा का जन्म होते ही ग्यारहवें व बारहवें दिन सूक्ष्मजीव श्राद्ध का भोजन करता है। ऐसा माना जाता है कि तेरहवें दिन वह यमदूतों के इशारे पर नाचता हुआ यमलोक चला जाता है। पितरों के मोक्ष के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है और इसका बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। योगवासिष्ठ में बताया गया है- आदी मृता वयमिति बुध्यन्ते तदनुक्रमात् ।  बंधु पिण्डादिदानेन प्रोत्पन्ना इवा वेदिनः ॥   - योगवासिष्ठ 3/35/27 अर्थात् प्रेत अपनी स्थिति को इस प्रकार अनुभव करते हैं कि हम मर गए हैं और अब बंधुओं के पिंडदान से हमारा नया शरीर बना है। चूंकि यह अनुभूति भावनात्मक ही होती है, इसलिए पिंडदान का महत्त्व उससे जुड़ी भावनाओं की बदौलत ही होता है। ये भावनाएं प्रेतों-पितरों को स्पर्श करती हैं। पिंडदानादि पाकर...

पितृपक्ष विशेष: मृतक का तर्पण क्यों?

पितृपक्ष विशेष में आज हम जानेंगे कि संसार में किसी भी प्राणी के मरने के बाद उसका तर्पण क्यों किया जाता है? तर्पण करने से मृतक के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है।  मृतक का तर्पण जो संसार में आया है उसको एक दिन संसार को छोड़कर जाना पड़ेगा यह सत्य है इसे मानव जानता तो है पर स्वीकार नहीं करना चाहता। सनातन धर्म में मनुष्य के जीवन को 16 संस्कारो में विभक्त किया जाता है जिसमे सोलुवा संस्कार अंतिम संस्कार है जिसे मृतक के पुत्र द्वारा किया जाता है।  यदि मृतक का अंतिम संस्कार पूर्ण विधान से न किया जाए तो जीवात्मा को मुक्ति नहीं मिलती है।  इसीलिए सनातन कॉल से ही ये नियम प्रजापति दक्ष ने बनाया था की जब भी कोई प्राणी संसार में मरेगा तो उसका तर्पण करना अनिवार्य होगा। विधि विधान से किया गया तर्पण जीवात्मा को सद्गति प्रदान करने में सक्षम होता ह्यै।  म नुस्मृति में तर्पण  म नुस्मृति में तर्पण को पितृ-यज्ञ बताया गया है और सुख-संतोष की वृद्धि हेतु तथा स्वर्गस्य आत्माओं की तृप्ति के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण का अर्थ पितरों का आवाहन, सम्मान और क्षुधा मिटाने से ही है।...