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Showing posts from August, 2022

सनातन धर्म में कुल कितने पुराण हैं?

सनातन धर्म के अनगिनत पुराणों का अनावरण पुराणों में समाहित गहन रहस्यों को उजागर करने की यात्रा पर निकलते हुए सनातन धर्म के समृद्ध ताने-बाने में आज हम सभी गोता लगाएंगे। प्राचीन ग्रंथों की इस खोज में, हम कालातीत ज्ञान और जटिल आख्यानों को खोजेंगे जो हिंदू पौराणिक कथाओं का सार हैं। पुराण ज्ञान के भंडार के रूप में कार्य करते हैं, जो सृष्टि, नैतिकता और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली ब्रह्मांडीय व्यवस्था के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। प्रत्येक पुराण किंवदंतियों, वंशावली और दार्शनिक शिक्षाओं का खजाना है जो लाखों लोगों की आध्यात्मिक मान्यताओं को आकार देना जारी रखते हैं। आइए हम कहानियों और प्रतीकात्मकता की भूलभुलैया से गुज़रते हुवे रूपक और रूपक की परतों को हटाकर उन अंतर्निहित सत्यों को उजागर करने का प्रयास करें जो सहस्राब्दियों से कायम हैं। हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इन पवित्र ग्रंथों के पन्नों में मौजूद देवताओं, राक्षसों और नायकों के जटिल जाल को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं, जो मानव अस्तित्व का मार्गदर्शन करने वाले शाश्वत सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। हिंदू धर्म में पुराणों का म...

Swami Parmanand Giri Ji Maharaj Vishesh Vyaktitva

परमानन्द जी महाराज का व्यक्तिव नमस्कार दोस्तों आज हम आप सभी के समक्ष एक ऐसे महात्मा के बारे में चर्चा करने आए हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव समाज की सेवा को समर्पित कर दिया। जिन्होंने निस्वार्थ भाव से समस्त मानव जाति की आजीवन सेवा की और आज भी पूरे विश्व में एक युगपुरुष के रूप में पूजे जाते हैं जिन्हें हम सभी  युगपुरुष  महामंडलेश्वर स्वामी श्री परमानंद जी महाराज के नाम से जानते हैं।  स्वामी जी के जीवन चरित्र के बारे में जितनी भी गाथाएं कहीं जाए वह कम है। स्वामी जी का चरित्र और उनके जीवन के मुख्य प्रसंगों के विषय में हम पहले ही बहुत से लेखो में चर्चा कर चुके हैं। अखंड परम धाम के नाम से स्वामी जी का आश्रम विद्यमान है जहां से चारों तरफ स्वामी जी ज्ञान का प्रकाश फैलाते आ रहे हैं। भारत भूमि सदैव से ऋषि-मुनियों की भूमि रही है।  इस पवित्र भूमि पर सदैव से वेद मंत्रों के आलाप गूंजते रहे हैं और वेद मंत्रों के इन्हीं आलापों के कारण भारतवर्ष की भूमि पवित्र बनी हुई है।  स्वामी श्री परमानंद जी महाराज सदैव से एक ही बात पर विचार करते आ रहे हैं औ...

देवरहा बाबा की जीवनी? | देवरहा बाबा का जीवन परिचय

देवरहा बाबा का जन्म स्थान   आज हम आप सभी के समक्ष एक ऐसे संत की जीवनी लेकर आए हैं जो अपने आप में एक चमत्कारी व्यक्तित्व के स्वामी थे। जिनके जन्म के विषय में किसी को भी संपूर्ण ज्ञान नहीं कि उनका जन्म कब कहां और किस अवस्था में हुआ था। उनके विषय में जो कथाएं प्रचलित हैं, जो साधारण जनमानस जानता है, वह यह है कि उनका जन्म भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जिले में हुआ था।  क्या देवरहा बाबा की आयु 250 वर्ष थी? |  क्या देवरहा बाबा की आयु 500 वर्ष थी? |  क्या देवरहा बाबा की आयु 900 वर्ष थी? मुख्य रूप से देवरहा बाबा देवरिया में रहने के कारण प्रसिद्ध हुए और देवरिया में इस महान संत की उत्पत्ति के कारण ही इनका नाम देवरहा बाबा हुआ। विभिन्न संतो के विचारों के अनुसार उन पर लिखित किताबों के अनुसार यह बात स्पष्ट होती है कि देवरहा बाबा अपने संपूर्ण जीवन में एक लंबी आयु प्राप्त करने के पश्चात ही उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया। कोई उनकी आयु 200 साल के लगभग बताता है, तो कोई संत उनकी आयु 500 साल, तो कोई 900 साल भी बताते हैं परंतु उनके जन्म के विषय में किसी ...

रोज सुबह किस मंत्र को पढ़ना चाहिए ? | प्रतिदिन किस मंत्र को पढ़ना चाहिए? | Subah Padhne Wale Mantra

मंत्र जाप क्यों किया जाता है? |  मंत्र शक्ति का प्रभाव क्या है? पौराणिक काल से ही सनातन धर्म में मंत्रो और उनकी अद्भुत शक्ति को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि देव पूजा, देव यज्ञ और वैदिक अनुष्ठानों में संस्कृत में मंत्रों का उच्चारण करके देवताओं को संतुष्ट किया जा सकता है और पौराणिक काल में इसी विधि से देवताओं को संतुष्ट किया जाता रहा है।  मंत्रों के दिव्य शक्ति का रहस्य सनातन काल से ही चला रहा है। वैदिक काल से ही समस्त मंत्रों को संस्कृत भाषा में लिखा गया क्योंकि संस्कृत दैविय भाषा कहलाई जाती है अर्थात संस्कृत में समस्त मंत्रों का उच्चारण देवताओं को प्रसन्न करने का अति सरल साधन माना जाता रहा है।  अतः किसी भी देवता को प्रसन्न करने के लिए उनके लिए बनाए गए मंत्रों का सिद्ध संस्कृत उच्चारण सर्वोत्तम साधन माना जाता रहा है।  मंत्र शक्ति के प्रभाव के बारें में प्राचीन वेद और पुराणों में अनेको कथाये और प्रसंग प्रचलित है। मंत्र शक्ति के विषय में तो यहाँ तक कहा जाता है की यदि मंत्र सिद्ध हो जाये तो साधक के लिए संसार की कोई भी वास्तु दुर्लभ ...

महादेव भक्त भृंगी की कथा | शिवभक्त भृंगी के अभिमान की कथा | Teen Per Wale Bhringi Ki Katha

तीन पैर वाले भृंगी की कथा  देवाधिदेव महादेव के असंख्य गणों मे एक गण हैं भृंगी जो की एक महान शिवभक्त है।  भगवान शिव ने गणों का राजा श्री गणेश को बनाया। इसलिए शिवजी के जितने भी गण हैं वह सब गणेश जी के अधीन रहते हैं। शिव के गणों में नंदी, श्रृंगी, भृंगी, वीरभद्र का वास माना जाता है और इन्हीं शिव भक्तों में भृंगी भी एक विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि वह महादेव से अत्यधिक प्रेम करते हैं।  यह सभी गण प्रेत भगवान शिव और माता पार्वती से अत्यधिक प्रेम करते हैं यही कारण है कि जहां जहां भगवान शिव और माता पार्वती जाते हैं वहाँ समस्त शिव गण उनके साथ रहते हैं।  भगवान शिव का संग इन सभी गणों को अत्यधिक प्रिय है। यही कारण है कि शिव परिवार के समीप रहना, उनके साथ रहना ही इन समस्त गण प्रेतों क प्रमुख उद्देश्य है।  भगवान शिव के विभिन्न गणों के संबंध में बहुत सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से सबसे अधिक प्रचलित कथा वीरभद्र की है जिनकी उत्पत्ति शिव के बाल से हुई। वीरभद्र की उत्पत्ति का प्रमुख उद्देश्य प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करना था क्योंकि प्रजापति दक्ष के कारण माता ...

श्रावण मास पुत्रदा एकादशी महात्म्य | पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल पक्ष कथा | Putrada Ekadashi Shravan Katha

॥ अथ पुत्रदा एकादशी माहात्म्य ॥  ॐ  नमो भगवते वासुदेवाय नमः  प्रिय भक्तों आज हम आप सभी के समक्ष पुत्रदा एकादशी की कथा सुनाएंगे। साल में पड़ने वाली 2 पुत्रदा एकादशियो में से आज की कथा श्रावण मास में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी की है।  इस एकादशी का व्रत अपने आप में क्या महत्व रखता है और इस एकादशी की कथा को सुनने और इसके व्रत को रखने से कौन-कौन से पुण्य फल प्राप्त होते हैं।  इन समस्त विषयों की जानकारी आज की कथा में हम आप सब को प्रदान करेंगे।  हमारी आशा है और पूर्ण विश्वास है कि आप सभी ध्यान पूर्वक, प्रेम पूर्वक भगवान की इस कथा को सुनेंगे और श्रद्धा अनुसार भगवान की पूजा अर्चना कर अपने व्रतों को संपन्न करेंगे।  चलिए शुरू करते हैं।  पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (श्रावण मास) धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान! अब आप मुझे श्रावण माह के शुक्लपक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इस एकादशी का नाम तथा इस की विधि क्या है? सो सब कहिये। श्री मधुसूदन बोले कि हे राजन्! अब आप शांति पूर्वक श्रावण माह के शुक्लपक्ष की एकादशी की कथा सुनिये। इस कथा के श्रवण मात्र से ही वाजपेय य...